भारत के साथ नेपाल के सीमावर्ती जिलों में जनसांख्यिकीय बदलाव
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
दोनों देशों की सांस्कृतिक विरासत भी एक है और उत्तराखंड में भारत-नेपाल बॉर्डर पर बसे लोगों की ज़रूरतें भी समान हैं सीमावर्ती ऊधम सिंह नगर, चम्पावत और पिथौरागढ़ के साथ ही अब नेपाली जिलों में भी तेजी वसे जनसांख्यिकीय बदलाव (डेमोग्राफिक चेंज) हो रहा है। 26 जनवरी को जारी नेपाल की जनगणना में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। यह बदलाव अचानक नहीं हुआ है।2012 से 22 के मध्य के वर्षों में पूरा समीकरण बदला है। गोरखाओं की आबादी में तो 18,860 की कमी आई है। वहीं, भारत से लगते नेपाली जिले कैलाली और कंचनपुर की जनसंख्या वृद्धि दर सामान्य पहाड़ी जिलों के 0.93 के सापेक्ष 1.54 प्रतिशत अधिक है। इसी प्रकार कंचनपुर की वार्षिक वृद्धि दर 1.32 प्रतिशत दर्ज की गई है। नेपाल के केंद्रीय सांख्यिकी विभाग के अनुसार 2012 में कैलाली की जनसंख्या सात लाख 75 हजार 709 थी। अब यह बढ़कर नौ लाख 11 हजार 155 तक पहुंच गई है। यानी कुल एक लाख 35 हजार 446 आबादी बढ़ी। ठीक इसी प्रकार कंचनपुर की जनसंख्या चार लाख 51 हजार 248 से बढ़कर पांच लाख 17 हजार 645 हो गई है। 10 साल में इस प्रमुख सीमांत जिले की आबादी में 66 हजार 397 का इजाफा हुआ है। सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार भारत से लगते नेपाली जिलों में आए जनसांख्यिकीय बदलाव में अहम वजह पलायन है। नेपाल के मूल निवासी पलायन कर दूसरे शहरों में काम के लिए गए। लेकिन एक समुदाय विशेष ने पहाड़ का रुख कर वहां के संसाधनों पर कब्जा जमा लिया। बीते दस वर्षों में इन्होंने खुद को इतना सक्षम बना लिया कि सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक व्यवस्था को भी प्रभावित करने लगे हैं। चीन और नेपाल से सटे पिथौरागढ़ के दो कस्बों धारचूला और जौलजीबी को अतिसंवेदनशील श्रेणी में रखा गया है। सीमावर्ती इन क्षेत्रों में बड़ा जनसांख्यिकीय बदलाव हुआ है। सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार, पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ नेपाल के रास्ते उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल में सक्रिय है। जून 2000 में भी भारत–नेपाल सीमा पर तेजी से बन रहे धर्म विशेष के स्थलों से सावधान रहने की चेतावनी जारी गई थी। अब नेपाली जिलों में तेजी से आए बदलाव सतर्क करने वाले हैं लिपुलेख दर्रा कालापानी के पास एक सुदूर पश्चिमी स्थान है, जो नेपाल और भारत के बीच का सीमा क्षेत्र है. भारत और नेपाल दोनों कालापानी को अपने क्षेत्र के अभिन्न अंग के रूप में दावा करते हैं. भारत उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के हिस्से के रूप में और नेपाल धारचूला जिले के हिस्से के रूप में इसे अपना क्षेत्र मानता है.