गोगा माड़ी पर भंडारे का आयोजन ,रुड़की शहर विधायक प्रदीप बत्रा ने श्रद्धालुओं को परोसा प्रसाद रूपी खाना,कहा गोगाजी की स्मृति में आयोजित मेला साम्प्रदायिक सद्भाव का अनूठा प्रतीक

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रुड़की प्रभारी मो मुकर्रम मलिक

रुड़की गोगा माड़ी पर भंडारे का आयोजन किया गया जिसमें रुड़की शहर के साथ ही आसपास की बस्तियों के श्रद्धालुओं ने भी भागीदारी की। विशेषकर महिलाओं और बच्चों ने गोगा जाहरवीर की मूर्ति के दर्शन कर मन्नतें मांगी । रुड़की शहर विधायक प्रदीप बत्रा ने श्रद्धालुओं को प्रसाद रूपी भोजन पुष्कर धार्मिक लाभ उठाया। शहर विधायक प्रदीप बत्रा ने बतौर मुख्य अतिथि कहा है कि गोगा जाहरवीर चौहान की प्रसिद्धि पूरी दुनिया में है फैली हुई है। उनकी स्मृति में आयोजित मेले सांप्रदायिक सद्भाव के प्रतीक है। गोगा जाहरवीर चौहान के अनुयायियों हर गांव बस्ती शहर कस्बों में मौजूद है। उन्होंने भंडारा आयोजित कराने पर अरविंद कश्यप हुआ है अन्य सभी सहयोगियों की सराहना की। वहीं भाजपा नेता अरविंद कश्यप के संचालन में आयोजित कार्यक्रम में वक्ताओं ने गोगा जाहरवीर चौहान जी के बारे में विस्तार से जानकारी दी। जिसमें उन्होंने कहा है कि चौहान वंश में राजा पृथ्वीराज चौहान के बाद गोगाजी वीर और ख्याति प्राप्त राजा हुए। जयपुर से लगभग किमी दूर स्थित सादलपुर के पास दत्तखेड़ा (ददरेवा) में गोगादेवजी का जन्म स्थान है। दत्तखेड़ा चुरू के अंतर्गत आता है। गोगादेव की जन्मभूमि पर आज भी उनके घोड़े का अस्तबल है और सैकड़ों वर्ष बीत गए लेकिन उनके घोड़े की रकाब अभी भी वहीं पर विद्यमान है। उक्त जन्म स्थान पर गुरु गोरक्षनाथ का आश्रम भी है और वहीं है गोगादेव की घोड़े पर सवार मूर्ति।

भक्तजन इस स्थान पर कीर्तन करते हुए आते हैं और जन्म स्थान पर बने मंदिर पर मत्था टेककर मन्नत माँगते हैं। आज भी सर्पदंश से मुक्ति के लिए गोगाजी की पूजा की जाती है. गोगाजी के प्रतीक के रूप में पत्थर या लकडी पर सर्प मूर्ती उत्कीर्ण की जाती है. लोक धारणा है कि सर्प दंश से प्रभावित व्यक्ति को यदि गोगाजी की मेडी तक लाया जाये तो वह व्यक्ति सर्प विष से मुक्त हो जाता है. भादवा माह के शुक्ल पक्ष तथा कृष्ण पक्ष की नवमियों को गोगाजी की स्मृति में मेला लगता है। जो साम्प्रदायिक सद्भाव का अनूठा प्रतीक है। श्रावण शुक्ल पूर्णिमा से लेकर भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा तक गोगा मेड़ी के मेले में वीर गोगाजी की समाधि तथा गोगा पीर व जाहिर वीर के जयकारों के साथ गोगाजी तथा गुरु गोरक्षनाथ के प्रति भक्ति की अविरल धारा बहती है। भक्तजन गुरु गोरक्षनाथ के टीले पर जाकर शीश नवाते हैं फिर गोगाजी की समाधि पर आकर ढोक देते हैं। प्रतिवर्ष लाखों लोग गोगा जी के मंदिर में मत्था टेक तथा छड़ियों की विशेष पूजा करते हैं। गोगा जाहरवीर जी की छड़ी का बहुत महत्त्व होता है और जो साधक छड़ी की साधना नहीं करता उसकी साधना अधूरी ही मानी जाती है क्योंकि मान्यता के अनुसार जाहरवीर जी के वीर छड़ी में निवास करते है । सिद्ध छड़ी पर नाहरसिंह वीर सावल सिंह वीर आदि अनेकों वीरों का पहरा रहता है। छड़ी लोहे की सांकले होती है जिसपर एक मुठा लगा होता है । जब तक गोगा जाहरवीर जी की माड़ी में अथवा उनके जागरण में छड़ी नहीं होती तब तक वीर हाजिर नहीं होते ऐसी प्राचीन मान्यता है । ठीक इसी प्रकार जब तक गोगा जाहरवीर जी की माड़ी अथवा जागरण में चिमटा नहीं होता तब तक गुरु गोरखनाथ सहित नवनाथ हाजिर नहीं होते

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