उत्तराखंड प्रवासियो के मध्य समाजसेवी व वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीप्रकाश कांडपाल के निधन के मायने

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उत्तराखंड प्रवासियो के मध्य समाजसेवी व वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीप्रकाश कांडपाल के निधन के मायने
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सी एम पपनैं/कैलाश जोशी अकेला 

नई दिल्ली। दिल्ली मे उत्तराखंड के प्रवासीजनो के मध्य, प्रतिभाओं की एक बडी खान रही है। अपनी जनसंख्या के अनुपात, विभिन्न क्षेत्रों में, अधिकाधिक प्रतिभाओं को जन्म देने का उत्तराखंड को सौभाग्य मिला है। बड़े पैमाने पर प्रतिभा पलायन, उत्तराखंड से बाहर होता रहा है। एक छोटा-मोटा उत्तराखंड तो उत्तराखंड के बाहर बस गया है। महानगरों दिल्ली, कोलकता, मुंबई के अलावा देश के अनेकों प्रदेशों के शहरों में भी। देश का ऐसा कोई कार्यक्षेत्र नहीं है, जहां कोई न कोई उत्तराखंडी किसी न किसी, अच्छे पद पर ना हो। एक विशाल प्रतिभाशाली वर्ग जो, उत्तराखंड का है, जिनमें शिक्षक, समाज वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री, संस्कृतिकर्मी, पत्रकार, लेखक व अधिवक्ता हैं। वैश्वीकरण से भी उत्तराखंड की बौद्धिक संपदा विश्व के अनेक राष्ट्रों में अच्छी नौकरियों और पेशों में लगकर परिवार सहित बसे हैं।

प्रवास में भी उत्तराखंड इन प्रतिभाओं के मन में बसा रहा है। जनसेवा व समाज उत्थान में अटूट विश्वास रखते हुए उनकी क्षमता, अनुभव और भौतिक संपदा का लाभ, उत्तराखंड को मिले, इसके लिए उनमें से कई उत्तराखंडी सदैव, प्रय़त्नशील रहे हैं। अपनी माटी से उखड़कर भी आत्मिक रुप से प्रवासी बन्धु, अपनी माटी से जुड़ा रहना चाहता है। ऐसे प्रवासियों में एक नाम प्रमुखता से आता था, श्रीप्रकाश कांडपाल का, जो स्कूली जीवन से ही प्रतिभाशाली रहे। बाद के दिनों में प्रभावशाली व परोपकारियों में गिने जाने लगे। पेशे से वे, सर्वोच्च न्यायालय दिल्ली में एक वरिष्ठ अधिवक्ता थे। समाजसेवा के श्रेत्र में लोगों के बीच आजीवन सुपरिचित बने हुए रहे।

दुखद रहा विगत दो वर्ष से श्रीप्रकाश कांडपाल जी बीमार थे। एम्स दिल्ली मे उनका उपचार चल रहा था। कल सायंकाल उन्होंने एम्स में 91वर्ष की उम्र मे, अंतिम सांस ली। सतत, आजीवन समाज सेवा मे लीन रहे, श्रीप्रकाश कांडपाल जी की मृत्यु ने न सिर्फ दिल्ली में प्रवासरत उत्तराखंडियो को, बल्कि देश- विदेश मे प्रवासरत तथा उत्तराखंड के सम्पूर्ण जनमानस को शोक मे डुबो दिया है।

श्रीप्रकाश कांडपाल जी के संदर्भ मे, उत्तराखंड के प्रवासी जनमानस को समझना होगा, याद रखना होगा, कि किसी प्रतिभा की परख सिर्फ इससे नहीं होती कि, उसने अपने लिए कितना किया? वह कितना सफल रहा? बल्कि यह इससे ज्यादा महत्वपूर्ण है कि, उसने अपने समाज तथा मानवता के लिए क्या योगदान दिया तथा वह कितने लंबे समय तक, अपने किए से, नई पीढ़ी को प्रेरित व प्रभावित करता रहा है। अवलोकन कर ज्ञात होता है कि, श्रीप्रकाश कांडपाल एक समाजसेवी के नाते, आजीवन स्वयं की उम्र सबंधी कुछ शारीरिक कमजोरी की जद में रहते हुए भी, अपना अधिकांश समय उत्तराखंडवासियों चाहे वे उत्तराखंड में रह रहे हो या दिल्ली प्रवास में, उनकी भलाई की सोच, चाहे वह किसी के इलाज से संबन्धित हो या प्रेरणा या सलाह के, प्रत्येक दिन उन्हें ऐसे जरुरतमंद लोगो के काम में लिप्त देखा जा सकता था। कौशल्या पार्क हौज़खास दिल्ली में जहां वे वर्तमान में रहते थे या आर के पुरम हो या ईस्ट निजामुद्दीन या लोधी कांप्लेक्ष, अक्सर उनके घर पर जरुरतमंद लोगों की आवाजाही देखी जा सकती थी। मोबाईल व टेलीफोन की घंटी का स्वर, कभी थमता नहीं था, यह जानने के लिए कि उनसे कब मिल सकते हैं।

युवाकाल से ही समाजसेवा में अग्रणी रहे, श्रीप्रकाश कांडपाल का सन् 1972 में रानीखेत से दिल्ली आगमन के बाद से, समाजसेवा का दायरा विस्तृत होता चला गया था। नि:स्वार्थभाव से दिल्ली जैसे महानगर में, जहां किसी भी व्यक्ति को एक मिनट का समय निकालना मुश्किल होता है। यह समाजसेवी इस महानगरीय जीवन में भी हमेशा, स्वंय को उत्तराखंड के लोगों के दुखदर्द में लिप्त रखता था। विगत छह दशको में लोगो के लिए उनसे जो बन पडता था, उन्होंने किया। कभी किसी को, निराश नहीं किया था।

श्रीप्रकाश कांडपाल का जन्म 28 सितम्बर सन् 1931 को ग्राम पाली, जिला अल्मोड़ा में हुआ था, जहां उनके पिता, धर्मदत्त कांडपाल स्कूल में हैड़मास्टर थे। चार बहनों व चार भाईयों में वे सबसे बड़े थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा पहली से सातवी (तब मिडिल) तक मानिला के खुड़ीधार स्थित सरकारी स्कूल में हुई थी। सन् 1944-49 इन्टर तक की पढ़ाई जीआईसी अल्मोड़ा से व उच्चशिक्षा व एलएलबी बरेली कालेज (आगरा विश्वविद्यालय) से, सन् 1953 मे पूर्ण हुई थी। श्रीप्रकाश कांडपाल जी स्कूल व कालेज में होनहार छात्र के रुप में जाने जाते थे। सदैव टापर रहे थे।

सन् 1954 से उन्होंने रानीखेत में वकालत आरंभ की थी। सन् 1956 में, कैंटबोर्ड रानीखेत का चुनाव जीता था। उनकी प्रतिभा को देख, उन्हे चेयरमैन फाइनैंस कमेटी के पद पर नवाजा गया था। तब श्रीप्रकाश जी 25 वर्ष 1 माह के थे। नियम था की 25 वर्ष से कम उम्र का सदस्य, यह पद ग्रहण नही कर सकता। स्वतंत्रता आंदोलन में परिवार के बड़े बुजुर्गों का आंदोलनकारी होना व उनका जेल जाना तथा महात्मा गांधी के सन् 1942 के सत्याग्रह में, ताऊ बद्रीदत्त कांड़पाल को गोली लगना, ऐसी घटनाए रही, जिनके प्रभाव से श्रीप्रकाश जी भी अछूते नहीं रहे थे। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य रहे और सन् 1957, 1959, 1962, 1967 व 1969 में उन्होंने चंद्रभानु गुप्त जो उत्तर प्रदेश के कई बार मुख्य मंत्री रहे थे, के चुनाव का संचालन किया था। यही कारण था, श्रीप्रकाश जी गुप्त जी के निकटतम लोगो में रहे थे। इन चुनावों में गुप्त जी सन् 1957 व 1959 के चुनाव तो हारे, लेकिन बाद के चुनावों में नेहरु की सलाह पर, रानीखेत विधानसभा क्षेत्र से जीत हासिल कर मुख्यमंत्री बने थे। कांड़पाल जी की सलाह पर नारायण दत्त तिवारी को आरंभिक चरण में मंत्रीमंड़ल में स्थान मिलना, तब की उत्तरप्रदेश की राजनीति में श्रीप्रकाश कांडपाल जी के कद को आंका जा सकता था।

सन् 1961 से 1969 तक श्रीप्रकाश कांडपाल, स्याल्दे ब्लाक प्रमुख के पद पर रहे थे। सन् 1967 के विधानसभा चुनाव में चंद्रभानु गुप्त चाहते थे कि श्रीप्रकाश जी, पहाड़ से विधायक का चुनाव लड़े, लेकिन हरिदत्त कि वरिष्ठता व हट को देखते हुए श्रीप्रकाश कांडपाल जी राह से हट गए थे। सन् 1974 में श्रीप्रकाश जी, दो भागों में विभक्त कांग्रेस पार्टी की ओल्ड़ कांग्रेस से, श्रीमती इंदिरा गांधी की नीतियों के विरोध स्वरुप, रानीखेत विधानसभा क्षेत्र से विधायक का चुनाव लड़ा था व चंद वोटो से गोविंद सिंह महरा से हार कर, दूसरे नंबर पर रहे थे। तब एच एन बहुगुणा चाहते थे कि, श्रीप्रकाश कांड़पाल अगर चुनाव जीतते तो, उन्हें प्रदेश का वित्त या गृह विभाग सौंप दिया जाता, लेकिन ऐसा, नही हो सका था।

सन् 1973 में कांडपाल जी रानीखेत में एसडीएम रही, आईएएस अधिकारी सुमिता चक्रवर्ती के साथ विवाह बंधन में बंधे थे। दिल्ली प्रवास में अपनी पत्नी के साथ सरकारी फ्लैटों में रहते हुए भी उनका घर, जरुरतमंद उत्तराखंडवासियों के लिए सदा खुला रहता था। लोग बड़े भरोसे के साथ, उनकी प्रेरणा, परामर्श व मदद से अविभूत रहते थे।

श्रीप्रकाश कांड़पाल वर्तमान में दिल्ली प्रवास में रह रहे करीब 25 लाख उत्तराखंडवासियों की सांस्कृतिक, सामाजिक व राजनीति जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में हो रहे ह्रास पर चिंता व्यक्त कर, पहाड़ी प्रवासियों को सचेत व सजग रहने की ओर इंगित करते रहते थे।

दिल्ली प्रवास में सन् 1945 के आस-पास बनी संस्था अल्मोड़ा ग्राम कमेटी व सन् 1968 में स्थापित पर्वतीय कला केन्द्र जैसी नामी संस्थाओं के अलावा श्रीप्रकाश कांडपाल जी, अनेकों अन्य सामाजिक व सांस्कृतिक संस्थाओ की भलाई के लिए सदा प्रयत्नशील रहे थे। अल्मोड़ा ग्राम कमेटी से सन् 1990 में जब उन्हे जोड़ा गया, उक्त संस्था बिखराव पर थी, और संस्था के अंदर समानांतर चुनाव व मुकदमे बाजी व संस्था की संपत्ति तथा धन को हड़पने जैसी गतिविधिया, चल रही थी। कांडपाल जी ने, अपने बुद्धि-विवेक से, संस्था के लोगों द्वारा चल रहे आपसी संस्थागत मुकदमें बंद करवा, अनेक अन्य प्रबुद्ध लोगों को इस संस्था से जोड़ कर न सिर्फ इस संस्था को टूटने से बचाया, बल्कि धन व संपत्ति की लूट पर भी, लगाम लगवाई थी। अल्मोड़ा ग्राम कमेटी की दिल्ली के पौश इलाके साउथ एक्स में, करोड़ों की संपत्ति व लाखो रुपया बैंक बैलेंस वाली नामी संस्थाओ मे जानी जाती है। कांडपाल जी इस संस्था के अनेको वर्षो तक अध्यक्ष रहे। वर्तमान में संस्था के ट्रस्ट के वे अंतिम निर्णायक ट्रस्टी थे।

दिल्ली प्रवास में बनी, अनेकों छोटी-बड़ी व ग्राम स्तर पर बनाई गई संस्थाए, जो आज भटक कर छोटी-छोटी बातों व शक के आधार पर टूट कर, अपना आधार व अस्तित्व गंवा रही हैं, इस दुविधा पर कांड़पाल जी का मत था कि, इन सभी प्रवासी संस्थाओ को जोड़ कर एक संस्था बनाई जाए, जो दिल्ली में चल रहे अन्य समाजों, संगठनो व कमेटियों के लिए एक उदाहरण पेश कर सके। इस प्रतिनिधि संस्था में छोटी-बड़ी सभी संस्थाओं के अध्यक्ष मुख्य कमेटी में हो। केंद्रिय समिति बने। उत्तराखंड़ के सभी सांसद व पूर्व मुख्यमंत्री प्रतिनिधि सभा में रखे जाए। समय-समय पर दिल्ली के उन स्थानों में जहां उत्तराखंड़ के लोग अधिकांश संख्या में रहते है, सांस्कृतिक व सामाजिक सम्मेलनों के माध्यमों से, मेल मिलाप कर, गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाए। जरुरतमंदो की मदद, संस्था के माध्यम से की जाए। ऐसा कर दिल्ली प्रवास में उत्तराखंड़ के सामाजिक व सांस्कृतिक ह्रास को रोका जा सकता है। ऐसा कर दिल्ली महानगर में प्रवासी उत्तराखंड़ी बंधुओ की भविष्य की पीढी के लिए एक मजबूत व सुरक्षित आधार की नींव रखी जा सकती है। अन्यथा दिल्ली प्रवास में पहचान के अभाव में प्रवासी उत्तराखंड़ी अपना अस्तित्व ही खो देगें।

श्रीप्रकाश कांडपाल जी के जीवित रहते, दुर्भाग्य रहा, दिल्ली प्रवास मे गठित सैकडो संस्थाए, समझ नहीं पायी। एक मन नही बना सकी। उसका लाभ-हानि का आंकड़ा सबके सामने है। दिल्ली में उत्तराखंड के प्रवासियो द्वारा गठित, संस्थाओ के प्रबुद्धजनो को अन्य समाजों से जुडे संस्थाओ के लोगों की तुलना में कितना महत्व दिया जाता है या दिया जाता रहा है, इस सबका आंकलन करना होगा। करीब तीस लाख उत्तराखंड के प्रवासियो को एक सांझा मंच, श्रीप्रकाश कांडपाल जी की सोच व प्रेरणास्वरूप गठित करना, समय की मांग भी है और श्रीप्रकाश कांडपाल जी को सच्ची श्रधांजलि भी।

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