गोरखपुर। यूपी के गोरखपुर जंगल कौड़िया और कैंपियरगंज ब्लाक के दर्जनभर गांवों में सब्जी की खेती करने वाली महिलाओं को अब निराई, गोड़ाई और मिट्टी चढ़ाई का काम झुककर नहीं करना पड़ता। वह सिर उठाकर काम कर रही हैं। इसका समाधान किया साइकिल हल ने और इसे देखकर सभी कह उठते है कि समस्याओं का कितना सुंदर हल है।
जंगल कौड़िया और कैंपियरगंज ब्लाक के कई गांवों में किसान सब्जी की उन्नत खेती करते हैं। चूंकि खेत छोटे हैं, इसलिए बैल वाले हल और ट्रैक्टर का इस्तेमाल संभव नहीं। निराई, गोड़ाई और मिट्टी चढ़ाई का काम कुदाल, फावड़ा या खुरपी से करना पड़ता है। समय और श्रम लगने के साथ लगातार झुककर काम करने से स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें भी आने लगी।
किसानों के लिए काम करने वाली संस्था गोरखपुर एन्वायरन्मेंटल एक्शन ग्रुप ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय की मदद से जंगल कौड़िया के पचगांवा में किसान गोष्ठी की तो महिला किसानों ने इस समस्या को साझा किया। तब किसान हरिश्चंद्र ने साइकिल हल की चर्चा की, जिसे उन्होंने बिहार के पश्चिमी चंपारण में देखा था।
विचार उपयोगी लगा तो ग्रुप ने हल बनाने में मदद की। हरिश्चंद्र की अगुआई में मेघनाथ, रामनिवास, शांति देवी, सुभावती, बीरबल आदि ने लोहा कारीगर चौमुखा निवासी ओम और धर्मपुर निवासी मुन्नीलाल की मदद ली। कई प्रयोग के बाद तीन फाल वाला साइकिल हल तैयार किया गया। हल बनाने में 2,400 रुपये लगे, लेकिन किसानों को सुविधा हुई। अब 13 गांवों में 400 से अधिक किसान इस हल का इस्तेमाल कर रहे हैं।
किसान हरिश्चंद्र का कहना है कि इससे प्रति एकड़ 2,100 रुपये बच रहे। जो किसान हल नहीं बनवा पा रहे, ग्रुप उन्हें 10 रुपये प्रतिदिन के मामूली किराये पर उपलब्ध करा रहा है। साइकिल के एक पहिए में तीन फाल वाले पतले हल को नट-बोल्ट से फिक्स किया गया है। दो फाल 8-8 सेमी और एक 5.5 सेमी लंबा है। तीनों की एक दूसरे से दूरी 15 सेमी है। साइकिल के चिमटे में दो हत्थे लगाकर उसे धकेलकर चलाने लायक बनाया गया है। स्त्री हो या पुरुष, इसे बिना झुके आसानी से चला सकते हैं।