आखिर कब थमेगा ये वंशवाद का सिलसिला….?
सीट हथियाने के लिए मृतक नेता के परिजन को टिकट देना कहां उचित..?
भाजपा ने महेश जीना को दिया टिकट, कांग्रेस ने गंगा पंचोली को
गुणानंद जखमोला
सल्ट विधानसभा का उपचुनाव 17 अप्रैल को होगा। यह सीट विधायक सुरेंद्र सिंह जीना के निधन से खाली हुई। महेश जीना सुरेंद्र के भाई हैं। भाजपा ने उन्हें टिकट देकर सहानुभूति वोटों को हथियाने की परम्परागत चाल चली हैं। चाहे भाजपा हो, कांग्रेस या कोई अन्य दल। आखिर यह परम्परा कहां तक उचित है और कब तक चलेगी। एक विधायक 25-30 साल तक सीट नहीं छोड़ता। यानी उस इलाके के नेताओं की वैकेंसी समाप्त हो जाती है। इस बीच विधायक का निधन हो जाएं तो उसके परिजन को टिकट दे दिया जाता है। कारण, पार्टी के लिए सीट निकालना आसान हो जाता है, जनता दयालु होती हैं और वोट दे देती है लेकिन बाद में पश्चाताप करती है। कोई भी सीट ले लो। जनता इसके दुष्परिणाम भुगतती है। दया के दम पर बनाया गया नेता निकम्मा निकलता है। इससे दोहरा नुकसान होता हैॅ। वर्षों से पार्टी के लिए अथक मेहनत करने वाले नेता को टिकट नहंी मिलती और जनता को अच्छा नेता नहीं मिलता। जनता ही इस सिलसिले को रोक सकती है वरना ये नेता जनता को अपनी जागीर समझ लेंगे। यानी ये लोकतंत्र न हुआ, जागीरदारी हो गयी। ऐसा तो अंग्रेजों के काल में भी नहीं होता था। यदि किसी जागीरदार का बेटा नहीं होता तो जागीर हड़प ली जाती थी। अब तक उत्तराखंड में जितने भी उपचुनाव हुए, वहां पार्टियां इमोशनल कार्ड खेलती है, लेकिन वशवाद की यह बेल जनता के लिए गले की फांस बन जाती है। सल्ट की जनता को समझना होगा कि क्या सही है और क्या गलत?