जनरल खंडूड़ी की राजनीतिक विरासत संभालेंगे बलूनी!
एक अच्छे नेता से अधिक अच्छे इंसान के गुणों से जनता का मनमोहा
कैंसर जैसी बीमारी से जंग लड़ी, गांव से शुरू किया अभियान
क्या राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी प्रदेश में पूर्व मेजर जनरल बीसी खड़ूड़ी की राजनीतिक विरासत संभालने की तैयारी में हैं? क्या अगला विधानसभा चुनाव बलूनी के नेतृत्व में होगा? क्या बलूनी निशंक और त्रिवेंद्र पर भारी पड़ेंगे? ऐसे ही कई सवाल इन दिनों सियासी हलकों में तैर रहे हैं। इन कयासांे को तब और बल मिला जब बलूनी अपने मूल गांव नकोट पहुंचे और भावुक हो गये। ग्रामीणों ने उन्हें सिर-माथे पर बिठा लिया। बीमारी की अवधि को छोड़ दिया जाएं तो अनिल बलूनी पिछले चार साल के दौरान उत्तराख्ंाड को लेकर सबसे गंभीर और सक्रिय सांसद हुए हैं। हाल में उन्होंने पूर्णागिरि और कोटद्वार के लिए जनशताब्दी की सौगात दी है। उनकी गांव की ओर चलो मुहिम को जबरदस्त रिस्पांस मिला है। सबसे अहम बात यह है कि अनिल बलूनी की छवि एक गंभीर और पहाड़ के प्रति समर्पित नेता की रही है। उनका विवादों से कोई नाता नहीं रहा है? उनके प्रशंसक अधिक हैं और आलोचक कम।
राज्यसभा सांसद बलूनी की सक्रियता को देख कर ही भाजपा में अंदरूनी खलबली है। सूत्रों का कहना है कि त्रिवेंद्र समर्थक सबसे पहले उनके हाल में चलाए गये अभियान और उनके द्वारा किये गये कार्यों पर सवाल उठाएंगे। हालांकि बलूनी ने स्पष्ट कहा कि अगला विधानसभा चुनाव त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। इसके बावजूद इस बात कोई आसानी से नहीं पचा पा रहा है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि त्रिवेंद्र पूरे साल खूब छवि भी चमका लें, लेकिन उन पर जो फिसड्डी सीएम का तमगा जुड़ गया है वो उनके लिए खासी मुसीबत बन गये हैं। सूत्रों का कहना है कि भाजपा विधायकों में बगावत को देखते हुए दायित्वों का बंटवारा किय गया है। लेकिन एक दर्जन से भी अधिक विधायक त्रिवेंद्र से खासे नाराज हैं। इसमें उनके एक निकटस्थ सलाहकार का बड़ा योगदान है।
इस बीच आम आदमी पार्टी ने त्रिवेंद्र की मुसीबतें बढ़ाई हैं कि उनके साथ एक मंत्री और चार विधायक जा रहे हैं। इंदिरा एक दर्जन भाजपा विधायकों पर नजर गड़ाए हुए है। तो आरएसएस सूत्र मानते हैं कि भाजपा के 18 विधायकों के टिकट नहीं बदले गये तो ये चुनाव बुरी तरह से हार जाएंगे। यानी भाजपा यदि सत्ता में दोबारा आना चाहती है तो उसे त्रिवेंद्र पर लगे दाग को धोना होगा या फिर चेहरा बदलना होगा। यदि पार्टी सीएम चेहरा बदलेगी तो निशंक और बलूनी ही होंगे। निशंक केंद्र सरकार में हैं और उनकी नितिन गड़करी से निकटता है लेकिन अनिल बलूनी की अमित शाह, राजनाथ सिंह, स्मृति ईरानी, डा. हर्षवर्धन समेत अधिकांश केंद्रीय मंत्रियों से धनिष्ठता है और पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता होने का लाभ उन्हें मिलेगा ही। उनकी मजबूती का अंदाजा इसी बात से भी लगाया जा सकता है कि उन्हें प्रियंका गांधी का बंगला अलाट किया गया है।
बहरहाल, यह राजनीति है। यहां कब कौन किस करवट बैठेगा, कहा नहीं जा सकता है, लेकिन भाजपा और उनके विरोधी दल भी मानते हैं कि अनिल बलूनी की स्वच्छ छवि और सक्रियता निश्चित तौर पर भाजपा को लाभ पहुंचा सकती है। हां, इतना जरूर है कि त्रिवेंद्र समर्थकों के माथे पर पसीना और सलवटें हैं।