भिटौली दिलाती हैं बहु बेटियों को मायके की याद: वृक्षमित्र डॉ सोनी।
देहरादून: देवभूमि उत्तराखंड जहाँ पर अनोखी रीति रिवाज व परंपराएं देखने को मिलती है वही चैत्र मास आते ही कई पर्व व त्योहारे सुरु हो जाते हैं जहाँ फूलदेई पर्व पर घरों के देहलीज पर रंग बिरंगे फूलों को डाला जाता है वही ब्याही बेटियों को इस महीने का खासा इंतजार रहता हैं कि मेरे माता पिता व भाई भिटौली लेकर आएंगे।
विलुप्त होते भिटौली परम्परा पर पर्यावरणविद् वृक्षमित्र डॉ त्रिलोक चंद्र सोनी कहते हैं समय परिवर्तन ने भिटौली परंपरा को धीरे धीरे समाप्त कर दिया है पर्वतीय ग्रामीण क्षेत्रों में जब आवागमन के संसाधन नही हुआ करते थे बेटी अपने ससुराल से सालभर में मायके वाले से मिलने नही आ पाती थी उस समय खेती बाड़ी, पशुपालन जैसे कामो से फुरसत भी नही मिलती थी ऐसे में कैसे अपनी लाडली ब्याही बेटी से मिला जाय तब बसंत आगमन पर फूलदेई संक्रान्त पर बेटी से भेंट करनी की परंपरा बनाई इसी को भिटौली कहते हैं भिटौली का अर्थ भेंट व मिलने से है। उस समय भिटौली देने के लिए मिलो चलकर ब्याही बेटी को पूड़ी पकोड़े, कलेऊ, दूध से बनी खास पकवान व धोती, साड़ी, पहनने के वस्त्र उपहार में देते थे ब्याही बेटी को चैत्र मास का बेसब्री से इंतजार रहता था कब आएंगे मेरे मैत (मायके) वाले मुझे भिटौली लेकर। भिटौली की परम्परा पूरे चैत्र मास में चलती हैं मायके पक्ष के सदस्यों को जब भी चैत के महीने में समय मिले वे उस समय भिटौली लेकर बेटी के ससुराल चले जाते है। बेटी अपने मायके से आये सदस्य को देखकर बहुत खुश होती हैं जो पूड़ी, पकोड़े, कलेऊ पकवान मायके से आये होते है उन्हें आस पड़ोस में भी बाटती हैं और अपने मायके से आये धोती साड़ी व वस्त्रों को अपने पड़ोसियों को दिखाती हैं मुझे मेरे मायके वाले ये भिटौली में लाए हैं यही नही बेटी के मायके वालों का इंतजार आस पड़ोस वालो को भी रहता हैं हर घर की बेटी मायके से आये पकवानों को अपने पड़ोसियों को बाटती हैं लेकिन धीरे धीरे यह परंपरा खत्म होती जा थी है और पैसे भेजने में सिमटकर रह गई हैं हमे अपने बुजुर्गों की यह परंपरा जीवित रखनी चाहिए अपने बेटियों को ससुराल में भिटौली भेजनी चाहिए ताकि हमारे आनेवाली पीढ़ी इस परंपरा को देखकर इसे जीवित रख सके मैने भी मोखमपुरा देहरादून में अपनी बहिन कुन्ती देवी को एक पौधे के साथ भिटौली देकर भाई होने का जिम्मेदारी निभाई आप भी अपने ब्याही बेटी को मायके में भिटौली देवे तभी हमारी यह भिटौली की परम्परा जीवित रहेगी।