‘मठों’ की सियासत पर डगमगाते तीरथ – 1
योगेश भट्ट
तकरीबन दो साल तक अब बदला,तब बदला के बाद उत्तराखडं में नेतृत्व परिवर्तन तो हुआ मगर हालात नहीं बदले। भाजपा हाईकमान द्वारा प्रचंड जनादेश वाली सरकार की कमान त्रिवेंद्र सिंह रावत से वापस लेकर तीरथ सिंह रावत को सौंपने के बाद राज्य के हालात और भी बदतर हो चले हैं। राज्य का सिस्टम तो गर्त में है ही, ‘मठों’ यानी सियासी ध्रुवों की सियासत के चलते राज्य में भाजपा की सियासी डगर भी कठिन होती जा रही है।
जनता के बीच नायक की छवि बनाने की कोशिश में नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत अपने ही फैसलों, घोषणाओं और बयानों पर घिरने लगे हैं। वह कहना कुछ चाहते हैं और कह कुछ और जाते हैं। कभी उनकी जुबान फिसल रही है तो कभी उनके सामान्य ज्ञान और आधी आबादी को लेकर सोच पर सवाल उठ रहे हैं। तीरथ के बोलों पर सड़क से संसद तक उबाल उठा है, सोशल मीडिया और टीवी चैनलों में तीरथ जबरदस्त तरीके से ट्रोल हो रहे हैं। यह सही है कि तीरथ से लगातार चूक हो रही है मगर उनका ट्रोल होना सिर्फ चूक ही नहीं बल्कि उनके खिलाफ एक सोची समझी सियासत भी है।
यहां तक कहा जाने लगा है कि यह सब अगले मुख्यमंत्री के लिए हो रहा है। आगे क्या होगा यह तो नहीं कहा जा सकता, हां, त्रिवेंद्र के फैसलों को पलटते हुए पारी शुरू करने वाले तीरथ पहले ही पायेदान पर डगमगाने लगे हैं। पूर्व के मुख्यमंत्रियों की तरह ही उनकी भी फजीहत शुरू हो गई है। उनके कोरोना पॉजिटिव होकर एकांतवास में जाने को ‘डैमेज कंट्रोल’ की रणनीति माना जा रहा है।
उधर अचानक त्रिवेंद्र से राज्य की कमान हटाकर तीरथ को मिली तो त्रिवेंद्र को लेकर सहानुभूति का माहौल बनने लगा। ‘तीरथ से तो त्रिवेंद्र ही भले’ के सर्वे भी निकलने लगे लेकिन त्रिवेंद्र के लिए सहानुभूति उस वक्त खत्म होने लगी जब उनके करीबियों के कारनामे खुलने लगे। उनके सलाहकारों और करीबियों ने चार साल में किस तरह करोड़ों के वारे-न्यारे किए इसके सनसनीखेज खुलासे हो रहे हैं, जिसके चलते ‘जीरो टॉलरेंस’ का नारा देने वाले त्रिवेंद्र खुद कटघरे में हैं।
कुल मिलाकर सियासी तौर पर उत्तराखंड इन दिनों बेहद दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति से गुजर रहा है। प्रचंड बहुमत के बावजूद सियासी षडयंत्रों और अस्थिरता के बीच ही राज्य की पूरी व्यवस्था झूल रही है। अलग-अलग पावर सेंटर बने मठों की मुख्यमंत्री बनने की इच्छा राज्य की सियासत पर भारी पड़ रही है। भाजपा की सियासत में इन मठों की कहानी फिर कभी, फिलवक्त इतना ही कि मठों की सियासत से सत्ता का खेल बिगड़ता नजर आ रहा है। राज्य में भाजपा की सियासत में ध्रुव बने कुछ नेताओं की छवि दिनों-दिन खराब होती जा रही है तो दिल्ली में बैठे उत्तराखंड के कुछ नेताओं की इमेज बिल्डिंग चल रही है।
चलिए उत्तराखंड में सत्ता के बिगड़ते खेल पर नजर दौड़ाते हैं। हालिया स्थिति यह है कि पूरे प्रदेश में त्रिवेंद्र सिंह रावत की फोटो के साथ ‘बातें कम और काम ज्यादा’ के होर्डिंग्स हट चुके हैं। उनकी जगह अब तीरथ की फोटो के साथ ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास’ स्लोगन वाले होर्डिंग्स ने ले ली है। प्रदेशभर में बदले स्लोगन और बदले होर्डिंग्स सियासी बदलाव की पूरी कहानी बयां कर रहे हैं।
दुर्भाग्य देखिए, उत्तराखंड में ये होर्डिंग्स उस वक्त बदल रहे थे, जब त्रिवेंद्र सरकार के साथ ही उत्तर प्रदेश में पारी शुरू करने वाली योगी सरकार जनता के सामने अपने चार साल का रिपोर्ट कार्ड रख रही थी। योगी सरकार दावा कर रही थी कि यूपी में जो दशकों में नहीं हुआ वह पिछले चार साल में हुआ है। चार साल में उत्तर प्रदेश देश की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। ‘ईज आफ डूइंग बिजनेस’ रैंकिंग में यूपी दूसरे स्थान पर है। बेरोजगारी दर 17.5 फीसदी से घटकर मार्च 2021 में 4.1 फीसद तक आ चुकी है।
उधर यूपी की योगी सरकार अपनी उपलब्धियों का बखान कर रही थी तो उत्तराखंड में सरकार बीते चार वर्षों पर बात करने से बच रही थी। चार साल पूरे होने पर त्रिवेंद्र सरकार ने जो कार्यक्रम तय किए थे, मुख्यमंत्री बदलते ही वे सभी कार्यक्रम निरस्त कर दिए गए। करोड़ों रुपये की प्रचार सामग्री रातों-रात ठिकाने लगा दी गई।
ऐसा नहीं है कि उत्तराखंड में सरकार की कोई उपलब्धि नहीं थी, उपलब्धियां थी मगर सरकार किस मुंह से उन्हें गिनाती। त्रिवेंद्र को हटाकर भाजपा हाईकमान खुद ही उन पर सवालिया निशान लगा चुका था। हां, त्रिवेंद्र की विदाई नहीं हुई होती तो निसंदेह उत्तराखंड में भी बड़ा जलसा होता। सरकार और संगठन दोनो ही जश्न मनाकर उपलब्धियां गिनाते। सरकार की ‘इमेज बिल्डिंग’ पर सरकारी खजाना लुटाया जाता, करोड़ों की बंदरबांट होती। त्रिवेंद्र सरकार की इसके लिए तैयारियां भी पूरी थी मगर नियति को तो कुछ और ही मंजूर था।
विडंबना देखिए, जिस वक्त त्रिवेंद्र सरकार के चार साल पूरे होने का जश्न मनाना तय था, तब तक त्रिवेंद की विदाई हो चुकी थी। दस दिन पहले मुख्यमंत्री बने तीरथ रावत अपने विवादित बयानों को लेकर सोशल मीडिया में जबरदस्तर तरीके से ट्रोल हो रहे थे। तीरथ विवाद में तो आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना भगवान राम और कृष्ण से करने पर, इसके बाद तो मानो यह सिलसिला ही बन गया। इस बयान पर तीरथ के पुतले फुंकने शुरू हुए ही थे कि तब तक सीएम का लड़कियों के रिप्ड जींस पहनने को लेकर एक बयान जबरदस्त तरीके से मीडिया में वायरल हो गया।
हालांकि यह बयान उन्होंने पहनावे को संस्कृति से जोड़ते हुए एक अलग संदर्भ में दिया लेकिन इसे आधी आबादी के खिलाफ मानते हुए खूब हवा दी गई। फटी जींस और हैशटैग रिप्ड जींस तीरथ के नाम से सोशल मीडिया पर यह अभी तक ट्रेंड हो रहे हैं। तीरथ ने खेद जताकर इस मामले को शांत करने की कोशिश की थी कि इस बीच दो नए बयान और सामने आ गए जिनसे तीरथ की पूरे देश में किरकिरी हो रही है।
दरअसल एक सरकारी कार्यक्रम में तीरथ अपने भाषण के दौरान यह कह गए कि भारत दो सौ साल तक अमेरिका का गुलाम रहा। इतना ही नहीं इसी भाषण में उन्होंने यह भी कहा, ‘लॉकडाउन के दौरान सरकार ने दो यूनिट वालों को 10 किलो राशन दिया और 20 यूनिट वालों को एक कुंतल। इस पर लोगों को एक दूसरे से जलन होने लगी कि 20 यूनिट वालों को एक कुंतल क्यों ? इसमें दोष किसका है ?उन्होंने बीस पैदा किए और आपने दो..’
इसका अर्थ यह निकाला गया कि मुख्यमंत्री ने कहा कि जिन्हें जलन हो रही है गलती उनकी है, उन्हें भी बीस बच्चे पैदा करने चाहिए थे। मुख्यमंत्री के दोनो बयान लपके जा चुके हैं। आम लोगों में तीखी प्रतिक्रिया है, तीरथ के सामान्य ज्ञान पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। तीरथ को सियासी मात देने वालों के लिए ये बयान हथियार बन गए हैं। ……..जारी