देहरादून: जीरो टॉलरेंस। ये वो दो शब्द हैं जो बीते चार वर्षों में प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और उनके सिपहसालारों द्वारा सबसे ज्यादा इस्तेमाल किए गए हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टालरेंस का त्रिवेंद्र एंड कंपनी द्वारा ऐसा ढोल पीटा गया, मानो प्रदेश से भ्रष्टाचार का नामो निशान मिट गया हो और वाकई में रामराज आ गया हो। मगर असलियत इससे पूरी तरह उलट है। न तो उनके राज में प्रदेश से भ्रष्टाचार का मिटा और न ही रामराज स्थापित हुआ। बल्कि इन चार वर्षों में त्रिवेंद्र सरकार ऐसे लोगों को ईनाम देकर खुश करती रही है जिन पर भ्रष्टाचार के न केवल गंभीर आरोप हैं, बल्कि विभागीय जाचों में वे आरोप सही भी पाए गए हैं।
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ऐसा ही एक मामला सिडकुल में सामने आया है, जहां डायरेक्टर (प्लानिंग) के पद एक ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति कर दी गई जिन्होंने लोक निर्माण विभाग में चीफ इंजीनियर के पद पर रहते हुए एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) द्वारा चलाई जा रही एक योजना में नियम कानूनों को पूरी तरह ताक पर रख कर लगभग 2000 मिलियन डॉलर राशि का अनुबंध स्वीकृत करा दिया।इस अनुबंध के लिए जरूरी विभागीय प्रशासनिक एवं वित्तीय स्वीकृति तक नहीं ली गई। मामला सामने आने पर जब जवाब मांगा गया तो विभाग को अंगूठा दिखा दिया गया।
आइए पूरे मामले को क्रमवार समझते हैं
उत्तराखंड राज्य सड़क निवेश कार्यक्रम के तीसरे चरण के अतर्गत 9 अक्टूबर 2014 को लोक निर्माण विभाग उत्तराखंड और Lea International Ltd. (LEA) और Lea Associates South Asia Pvt. Ltd. (LISA) के बीच प्रोग्राम परफार्मेंस ऑडिटर (PPA) तथा प्रोग्राम मैनेजमेंट कंसल्टेंट (PMC) के लिए क्रमश: 215 मिलियन डॉलर और 1778 मिलियन डॉलर की राशि का अनुंबध किया गया।योजना के लिए लिए धनराशि मुहैया कराने वाली संस्था एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) के नियमों के मुताबिक अनुंबंध को मंजूरी दिए जाने से पहले संबंधित अधिकारियों द्वारा प्रशासनिक एवं वित्तीय स्वीकृति लिया जाना अनिवार्य था।
लेकिन तत्कालीन परियोजना निदेशक, मुख्य अभियंता लोकेश शर्मा ने बिना प्रशासनिक और वित्तीय स्वीकृति लिए उक्त अनुबंध जारी कर दिए। बाद में पृथक से स्वीकृति जारी की गई।
6 मार्च 2018 को प्रदेश के तत्कालीन अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश ने लोक निर्माण विभाग के प्रमुख अभियंता को पत्र लिख कर एडीबी के नियमों के मुताबिक अनुंबंध को मंजूरी दिए जाने से पहले संबंधित अधिकारियों द्वारा प्रशासनिक एवं वित्तीय स्वीकृति न लिए जाने को लेकर स्पष्टीकरण देने तथा आगे की कार्रवाई करने को कहा। लोक निर्माण विभाग द्वारा तत्कालीन परियोजना निदेशक लोकेश शर्मा से स्पष्टीकरण मांगा गया लेकिन उन्होंने इस पर कोई जवाब नहीं दिया। इस बीच लोकेश शर्मा सेवानिवृत हो गए।
विभागीय जांच में लोकेश शर्मा द्वारा नियमों का पालन न किए जाने की बात सामने आने के बाद उनके खिलाफ उचित कार्रवाई की जानी चाहिए थी, मगर हैरानी की बात यह है कि उत्तराखंड सरकार ने उन्हें दंडित करने के बाद सिडकुल में डायरेक्टर (प्लानिंग) के पद पर नियुक्ति देकर पुरस्कृत कर दिया।
यह कार्य उसी त्रिवेंद्र सरकार द्वारा किया गया जो स्वयं को भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस का ढोल पीटती है। हैरानी की एक बात यह भी है कि जिन तत्कालीन अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश द्वारा वर्ष 2018 में इस मामले में जांच के आदेश दिए थे, वे वर्तमान में प्रदेश के मुख्य सचिव पद पर आसीन हैं।
इतना ही नहीं, मुख्य सचिव ओम प्रकाश सिडकुल बोर्ड के अध्यक्ष भी हैं। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि जिस बोर्ड के वे अध्यक्ष हैं, उसी बोर्ड में डायरेक्टर प्लानिंग जैसे बेहद अहम पद पर ऐसा व्यक्ति तैनात है जिसने एडीबी के नियमों का खुला उल्लंघन किया है।इतना ही नहीं, सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि लोकेश शर्मा के कार्यकाल को विस्तार दिए जाने की तैयारी की जा रही है।मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कंठाहार माने जाने वाले मुख्य सचिव ओम प्रकाश की जानकारी में पूरा मामला होने के बावजूद लोकेश शर्मा पर उनकी मेहरबानी गंभीर सवाल खड़े करती है। देखने वाली बात होगी कि नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत इस पर क्या एक्शन लेते हैं।