उत्तराखंड में न्यूज चैनलों को दिए गए विज्ञापनों का झूठा प्रचार क्यों?

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उत्तराखंड में न्यूज चैनलों को दिए गए विज्ञापनों का झूठा प्रचार क्यों?

देहरादून । हाल के दो दिन से एक खबर सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही है। खबर सूचना विभाग द्वारा न्यूज चैनलों को जारी विज्ञापनों को लेकर है। लिखा जा रहा है कि एक अमुक चैनल को इतनी रकम के विज्ञापन दिए गए। समझाया ये जा रहा है कि जैसे इस चैनल को नियम कायदों को ताक पर रखकर सबसे ज्यादा रकम के विज्ञापन जारी किए गए हों। जबकि ऐसा है ही नहीं।

उत्तराखंड सूचना विभाग में 25 न्यूज चैनल सूचीबद्ध हैं जिनको विभाग समय समय पर विज्ञापन जारी करता है। सूचना विभाग द्वारा तय रेट पर विज्ञापन जारी होते हैं और रेट तय चैनल के प्रसारण पर तय होता है। उत्तराखंड सूचना विभाग में न्यूज 18 और नेपाल 1 चैनल कोे 1200 रुपये प्रति 10 सेकंड के हिसाब से विज्ञापन जारी होते हैं, बाकी तमाम चैनल्स को 800 रुपये प्रति 10 सेकंड के हिसाब से।

अब सवाल ये उठता है कि सिर्फ एक चैनल के विज्ञापनों पर सवाल क्योें उठाए जा रहे हैं? सवाल नेपाल 1 चैनल को लेकर उठाए गए हैं। प्रचारित किया जा रहा है कि इस चैनल को करोड़ों के विज्ञापन जारी किए गए। ये प्रचारित किया गया कि इस चैनल को चलाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के सलाहकार थे।

तो क्या सच में मुख्यमंत्री के सलाहकार रहते हुए चैनल के संचालक ने बेजा फायदा उठाया? सवाल तो यही है ना? अगर ये सवाल नहीं है तो ऐसा झूठा प्रचार क्यों किया जा रहा है। इस खबर में सभी सूचीबद्धा चैनलों की लिस्ट प्रकाशित की जा रही है और उनको मिले विज्ञापनों की रकम का जिक्र भी है।

अगर नेपाल 1 चैनल से ज्यादा विज्ञापन दूसरे चैनल को मिले हैं तो उसका नाम इस तरह का झूठा प्रचार करने वाले क्यों नहीं प्रकाशित कर रहे हैं? वजह साफ है कि उनको सिर्फ नेपाल 1 चैनल को प्रचारित करना है। प्रचार करने वाले का मकसद भी साफ होता कि वो सिर्फ इस चैनल के संचालक को बदनाम करने की नीयत से ही ये सब कर रहा है।

दो बातें हैं। सोशल मीडिया पर उसके इस झूठे प्रचार से आम जन में चैनल और चैनल के संचालक के बारे में भ्रामक प्रचार कराना है। साथ ही विभाग और विभाग के अधिकारियों पर भी उंगली उठती है।

जब हम चैनलों को मिले विज्ञापनों की रकम की पूरी सूची प्रकाशित कर रहे हैं तो सोशल मीडिया पर सिर्फ और सिर्फ नेपाल 1 चैनल और उसके संचालक का नाम लेकर उसे बदनाम करने की कोशिश करने वाले को ये सूची क्यों नहीं दिखती और वो पूरी सूची को प्रकाशित क्यों नहीं कर रहा है?

इन उक्त बातों से तो साफ है कि ऐसी खबर को प्रचारित करने वाले का ध्येय क्या है? 

एक और बात कर ली जाए। उत्तराखड में तमाम बड़े अखबार भी तो प्रकाशित होते हैं। उनके विज्ञापनों की लिस्ट क्यों नहीं छाप रहा है वो झूठा प्रचारित करने वाला? साफ है कि उसका मकसद एक है। एक अमुक चैनल और उसके संचालक को बदनाम करना । वरना, उत्तराखंड में मुख्य अखबारों और चैनलों से जुड़े तमाम पत्रकार इस सच्चाई को जानते हैं कि अखबारों को सबसे ज्यादा रकम के विज्ञापन जारी होते हैं। उसकी अपनी वजहै है। उत्तराखड में घर घर अखबारों की पहुंच है, चैनलों की नहीं।

दूसरी बात सूचना विभाग के अफसरान की करनी जरूरी है। ऐसी खबरों से सूचना विभाग के अधिकारियों को भी बदनाम करने की कोशिश की जाती रही है। उत्तराखंड के तमाम चैनल्स और अखबारों के पत्रकारों की सीधी पहुंच अधिकारियों तक है। सूचना विभाग के अधिकारियों के दरवाजे हमेशा पत्रकारों के लिए खुले रहते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण ये है कि अगर अधिकारी अपने कमरे में मौजूद नहीं रहता तब भी उत्तराखंड में मुख्य धारा से जुड़े तमाम पत्रकार उनके कमरे में सीधे दाखिल होकर वहीं बैठकर उस अमुक अधिकारी का इंतजार करते हैं।

इससे बड़ा पारदर्शी रवैया और क्या हो सकता है एक अधिकारी का? इसके अलावा तमाम जानकारियां विभाग आरटीआई के मार्फत अगर उपलब्ध करा रहा है और उस सूचना का विश्लेषण करके अगर कहीं कुछ गलत नहीं दिख रहा है तो फिर इस तरह के झूठे प्रचार सोशल मीडिया पर क्यों किए जा रहे हैं?

साफ है कि इस तरह का प्रचार करने वाले किसी और फिराक में हैं। उनका ये मकसद तो कतई नहीं है कि सही सूचना आम जन तक पहुंचे। धिक्कार है ऐसे तथाकथित पत्रकारों पर।