अधूरी ख्वाहिशों के साथ यूं चुपके से विदा हो गयीं इंदिरा

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अधूरी ख्वाहिशों के साथ यूं चुपके से विदा हो गयीं इंदिरा

न सीएम बन सकीं और न बेटे को राजनीति में स्थापित कर सकीं

46 साल राजनीति की, इलाज के लिए प्रदेश में एक अदद बेड नहीं मिला

नेता प्रतिपक्ष डा. इंदिरा हृदयेश उत्तराखंड की राजनीति में महिला सशक्तीकरण का एक बड़ा आधार स्तंभ था जो आज ढह गया। अपने 46 साल के राजनीतिक सफर में नेता प्रतिपक्ष इंदिरा ने अनेकों चुनौतियों का सामना किया और अनेक जिम्मेदारियों का निर्वहन किया। उनकी दो ख्वाहिशें अधूरी रह गयी। एक सीएम बनने का और दूसरे अपने बेटे को राजनीति में स्थापित करने का। संभव है कि अब उनका बेटा सुमित उनकी राजनीतिक विरासत संभाल लें। 80 वर्षीय इंदिरा इन दो ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए अंतिम समय तक राजनीति में जुटी रही। दिल्ली में कांग्रेस बैठक में भाग लेने के लिए पहुंची इंदिरा का निधन हृदयाघात से हो गया।

7 अप्रैल 1941 को अयोध्या में जन्मी डा. इंदिरा हृदयेश ने अध्यापन क्षेत्र से करियर शुरू किया। उनका विवाह 1967 में हृदयेश कुमार के साथ हुआ। 1974 में पहली बार गढ़वाल-कुमाऊं शिक्षक कोटे से उन्होंने यूपी विधान परिषद में इंट्री की। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। विधान परिषद चुनाव में सर्वाधिक मतों से जीतने का रिकार्ड भी इंदिरा के नाम रहा। 2000 में जब अनन्तिम सरकार में वो नेता विपक्ष रही। 2002 में एनडी सरकार में लोक निर्माण विभाग समेत कई जिम्मेदारियां रही। 2012 से 2017 की कांग्रेस सरकार में वो वित्त मंत्री रहीं। इस दौरान जब बहुगुणा की कुर्सी खतरे में थी तो सीएम बनने के लिए उन्होंने पूरा जोर लगा दिया था लेकिन बाजी हरीश रावत के हाथ लग गयी।

46 साल के लंबे राजनीति जीवन में डा. इंदिरा हृदयेश ने अनेकों चुनौतियों का सामना डटकर किया। पुरुषों का वर्चस्व रहते हुए भी उन्होंने अपने विरोधियों को खूब सबक सिखाया। लेकिन उनकी अपने बेटे सुमित का राजनीति में स्थापित करने की हसरत बाकी रह गयी। 2018 के नगर निगम चुनाव में वे अपने बेटे को मेयर का टिकट दिलाने में तो कामयाब हो गयी लेकिन जिता नहीं सकी। उन्होंने आरोप लगाया कि भितरघात के कारण सुमित हार गया।

पिछले साल उन्हें कोरोना हो गया तो उन्हें देहरादून के मैक्स अस्पताल में एक अदद बेड नहीं मिला। इसके बाद वो इलाज के लिए गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में गयी। विचारणीय बात यह है उत्तराखंड के राजनीति के इस लंबे इतिहास में कोई भी पहाड़ी नेता यहां एक अच्छा अस्पताल नहीं तैयार करवा सका कि जिसमें नेताओं और अफसरों का इलाज हो सकें। कांग्रेस की हाल में चल रही गुटबाजी में इंदिरा को प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम के खेमे का गिना जा रहा था, हरीश रावत के साथ गुटबाजी की खबरें आम हैं। भले ही कांग्रेस में जबरदस्त गुटबाजी चल रही हो और कांग्रेस का अस्तित्व खतरे में हो, लेकिन इंदिरा कांग्रेस की एक आधार स्तंभ रही हैं और उनके चुनावों से ठीक पहले यूं गुपचुप चले जाना कांग्रेस के लिए विशेषकर प्रीतम सिंह के लिए एक बड़ा झटका है।

डा. इंदिरा हृदयेश उत्तराखंड से पहली कद्दावर महिला नेता थी और संभवत रहेंगी। वो प्रदेश के लिए महिला सशक्तीकरण की मिसाल हैं। यह प्रदेश के लिए अपूरणीय क्षति है। उनका यूं गुपचुप चले जाना अखरता है। विनम्र श्रद्धांजलि।