बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था का दंश पहाड़ों में

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बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था का दंश पहाड़ों में

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला 

प्रदेश में बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था का हाल किसी से छिपा नहीं है. आलम यह है कि पहाड़ी जनपद तो दूर राजधानी देहरादून में भी सरकारी अस्पतालों के मरीजों को कई बीमारियों की सर्जरी करवाने के लिए प्राइवेट अस्पतालों के भरोसे रहना पड़ता है. हालत यह है कि कई एडवांस सर्जरी की सुविधा राज्य के अधिकतर जिलों में मौजूद ही नहीं है. ऐसे हालातों में लोगों के पास देहरादून या हल्द्वानी जाकर सर्जरी करवाना एकमात्र विकल्प रहता है. चिंता की बात यह है कि कई बीमारियों में तो सर्जरी को लेकर यहां के भी सरकारी अस्पताल असहाय दिखाई देते हैं बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था का दंश झेलना पड़ रहा है। मेडिकल कालेज से सांस रोग और पेट की समस्या जैसी छोटी बीमारी से ग्रसित दो मरीजों को भी मेडिकल कालेज से रेफर किया गया। दो दिनों में ही पांच से अधिक मरीजों को सुशीला तिवारी अस्पताल हल्द्वानी के लिए रेफर किया जा चुका है। जिससे मरीजों को फिलहाल तो मेडिकल कालेज की सुविधाएं मिलती नहीं दिखाई दे रहीं हैं।सरकार ने पहाड़ों में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए अल्मोड़ा में मेडिकल कालेज को स्वीकृति दी। यहां करोड़ों की इमारतें तैयार हुईं। आक्सीजन जनरेशन प्लांट, एनआइसीयू, पीआईसीयू, वायरोलाजी लैब आदि स्थापित किए गए। जल्द ही एनएमसी के निरीक्षण होने की आस के साथ यहां कक्षाओं के संचालन को हरी झंडी का भी इंतजार है। कालेज में कुल 45 फैकल्टी में प्रोफेसर, असिस्टेंट प्रोफेसर, सीनियर रेजीडेंट, जूनियर रेजीडेंट समेत कुल 135 डाक्टर तैनात हैं। इसके बाद भी पहाड़ों में अब तक मरीजों को बदहाल स्वास्थ्य सुविधाओं का दंश झेलना मजबूरी बन गया है। पिथौरागढ़ जिले के बेरीनाग निवासी को परिजन उपचार के लिए अल्मोड़ा मेडिकल कालेज लेकर पहुंचे। सुबह से यहां विभिन्न जांचों के बाद मरीज में आंत की समस्या निकली। जिसके बाद उसे काफी पेट दर्द के बीच हल्द्वानी रेफर करना पड़ गया। ये मरीज हुए रेफर  पहाड़ों का केंद्र माने जाने वाले अल्मोड़ा में मेडिकल कालेज स्थापित कर यहां बागेश्वर, पिथौरागढ़ और चम्पावत जिलों के लोगों के लिए भी बेहतर सुविधाएं मुहैया कराने की योजना थी। तीनों जिलों का रेफरल केंद्र अल्मोड़ा है। जिसके चलते इन जिलों से काफी संख्या में मरीज उपचार को पहुंचते हैं। शुक्रवार को रेफर होने वाले में एक बागेश्वर और एक पिथौरागढ़ जिले के मरीज भी थे। मेडिकल कालेज होने के बाद भी एसटीएच मरीजों को रेफर होना बड़ी समस्या है। इमरजेंसी में पांच और आइपीडी में मात्र तीन मरीज हैं भर्ती 250 से अधिक बेड वाले मेडिकल कालेज में शुक्रवार की सुबह मात्र नौ मरीज भर्ती रहे। जिसमें से एक मरीज को रेफर कर दिया गया। जबकि दोपहर तक सिर्फ आठ भर्ती मरीजों का इलाज चल रहा था। इसमें से आईपीडी में मात्र तीन और पांच मरीज इमरजेंसी में भर्ती किए गए हैं। इससे पूर्व अन्य मरीज गुरवार की देर रात तक रेफर हो चुके हैं। रेफर होने वाले मरीज सर्जीकल केस के हो सकते हैं, फिलहाल आपरेशन नहीं हो रहे हैं। अन्य मरीजों को यहां सुविधाएं मुहैया करवाई जा रहीं हैं। उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में आज भी स्वास्थ्य सुविधाएं लचर है। पहाड़ में आज की स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति किसी से छिपी नहीं। पहाड़ों में न ही पर्याप्त चिकित्सक हैं, न स्टाफ। वहीं, चिकित्सा उपकरणों की स्थिति से भी सब वाकिफ है। आए दिन पहाड़ों से दुखद खबरें आती रहती हैं। उत्तराखंड में स्वास्थ्य सेवाएं पटरी से उतर चुकी हैं। खास तौर से भौगोलिक विषमताओं वाले यहां के पर्वतीय क्षेत्रों में मातृ एवं शिशुओं की देखभाल के सरकारी इंतजा़म अति दयनीय दशा में हैं। पहाड़ के दुर्गम क्षेत्रों के हालात और भी ज़्यादा खराब हैं।यहां के प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र स्वयं गंभीर रूप से बीमार हैं। इन केंद्रों में पानी व बिजली जैसी बुनियादी सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं होने से ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि यह केन्द्र किस तरह संचालित हो रहे होंगे। इन बीमार प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों व अस्पतालों पर आश्रित रोगी सिर्फ भगवान भरोसे ही आते हैं। बहरहाल देवभूमि के नाम से प्रसिद्ध उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में खस्ताहाल स्वास्थ्य व्यवस्था एक तरफ जहां इस क्षेत्र के लचर प्रशासनिक व्यवस्था को दर्शाता है वहीं दूसरी ओर सरकार की उदासीनता पर भी सवाल खड़ा करता है। ऐसी स्थिति में यहां के लोगों का जीवन किस प्रकार कठिनाइयों से गुज़रता होगा, इसकी कल्पना करना भी मुश्किल है। यही कारण है कि गांव के लोग पहाड़ पर अपनी पैतृक ज़मीन और घर को छोड़कर नीचे मैदानी इलाकों में स्थाई रूप से बस चुके हैं।तिब्बत से लगा पूरा सीमांत इलाका बहुत तेज़ी से जनशून्य होता जा रहा है। यदि सरकार इस विशाल सीमा क्षेत्र में चिकित्सा, स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, संचार की अच्छी सेवाएं उपलब्ध नहीं कराती तो यह आगे चलकर निश्चित ही देश की सुरक्षा के लिए बहुत हानिकारक साबित हो सकता है।