अल्मोड़ा में तांबे के बर्तन इन दिनों बाजार की बढ़ा रहे शोभा

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कैलाश जोशी /रमेश जड़ोत अल्मोड़ा

अल्मोड़ा : दीपावली धनतेरस का त्यौहार नजदीक हैं। ऐसे मे बाजार बर्तनों से सज चुका है। अल्मोड़ा में तांबे के बर्तन इन दिनों बाजार की शोभा बढ़ा रहे हैं। अल्मोड़ा का तांबा हैंडीक्राफ्ट न केवल देश में बल्कि विदेशों तक में फेमस है।

 

यहीं कारण है कि अल्मोड़ा को तांब्र नगरी के रूप में भी जाना जाता है। यहां का तांबा कारोबार लगभग 400 साल पुराना माना जाता है। हालांकि धीरे धीरे सरकारों की उपेक्षा के कारण आज यह व्यवसाय सिमट चुका है। लेकिन स्थानीय दुकानदार आज भी तांबे के इस हस्तनिर्मित व्यवसाय को जिंदा बनाए हुए हैं।

जिससे तांबे के इन कारीगरों की रोजी रोटी चल रही है।
ताम्ब्र नगरी के रूप में विख्यात अल्मोड़ा में एक जमाने में काफी मात्रा में तांबे का काम होता था। यहां के टम्टा मौहल्ले में तांबे का उद्योग हुआ करता था। आज से 3 दशक पहले तक टम्टा मोहल्ला की गलियों से गुजरते वक्त हर वक्त टन टन की आवाजें सुनाई पड़ती थी।

दरअसल यह आवाज तांबे के बर्तन बनाने वाले कारीगरों के घरों से आती थी। यहां दिन रात मेहनत करके वे तांबे के बड़े सुन्दर बर्तनों को आकार दिया करते थे। 400 साल पुराना अल्मोड़ा का तांबा उद्योग धीरे धीरे चौपट हो गया। आज से कुछ दशक पहले तक अल्मोड़ा के टम्टा मोहल्ले में करीब 72परिवार इस व्यवसाय से जुड़े थे।

जो अब घटकर एक दर्जन भी नहीं रह गए हैं। यह बचे खुचे ताम्ब्र कारीगर अब स्थानीय दुकानदारों के बदौलत ही इस व्यवसाय को बचाये हुए हैं। अल्मोड़ा ताम्ब्र व्यवसाय को आज भी काराखाना बाजार में स्थित अनोखे लाल व हरिकिशन नामक दुकान ने जिंदा रखा है। यह दुकान विगत 60 सालों से यहां के स्थानीय शिल्पियों के बनाए तांबे के बर्तनों को बाजार दे रही है।

जिससे टम्टा मौहल्ला के इन कारीगरों को आज भी रोजगार मिला हुआ है। यह दुकान तांबे के बर्तनों के लिए काफी प्रसिद्ध है। जहाँ परम्परागत हस्त निर्मित ताँबे के विभिन्न बर्तन मिलते हैं। जिनकी आज भी काफी डिमांड है।

टम्टा मोहल्ला के तांबे के कारीगर राजेश टम्टा के मुताबिक सरकारों ने तो उनके व्यवसाय को प्रोत्साहित करने काम नहीं किया। सरकारों की उदासीनता के कारण उनका करोबार तो चैपट हो गया। लेकिन स्थानीय व्यवसायियों के कारण आज भी उन्होंने इसको रोजगार का जरिया बनाया हुआ है। वहीं कारीगर मदन मोहन टम्टा का कहना है कि उनका इस पेशे में पूरी उम्र गुजर गई। एक दौर में यह व्यवसाय काफी उफान पर था।

लेकिन अब यह व्यवसाय नाम मात्र का रह गया। अब उन्हें स्थानीय दुकानदारों के कारण ही रोजगार मिला हुआ है। अल्मोड़ा के टम्टा मोहल्ला से बने तांबे के तौले समेत कई बर्तन आज भी नेपाल जाते हैं। यहीं नहीं केदारनाथ, बद्रीनाथ समेत तमाम मंदिरों के तांबे के छत्र , मूर्तियां यहीं बनाई जाती है। यहां ताम्ब्र कारीगरों द्वारा बनाए गए परम्परागत तौले, गागर, फौला, परात, पूजा के बर्तन के अलावा वाद्य यंत्र रणसिंघा, तुतरी आदि बहुत प्रसिद्ध हैं।

कारखाना बाजार में विगत 60 सालों से तांबे बर्तनों के लिए प्रसिद्ध अनोखे लाल हरिकिशन प्रतिष्ठान के व्यवसायी संजीव अग्रवाल ‘‘टीटू’’ के अनुसार टम्टा मौहल्ला के कारीगर आज भी अपनी कला को जिंदा रखे हुए हैं। हर गांवों में शादी विवाह में भोजन बनाने में प्रयुक्त होने वाले तांबे के तौले यहीं बनाए जाते हैं। यहीं नहीं तांबे के हस्तनिर्मित तौले , फौले नेपाल समेत आज भी देश के कई हिस्सों में जाते हैं।

कलश समेत पूजा पाठ की अन्य सामग्री भी यहीं से बनकर अन्य जगहों को जाती है। वह बताते हैं कि तांबे का पानी स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक माना जाता है। अल्मोड़ा में हस्तनिर्मित तांबे के बर्तन शुद्ध तांबे के होते हैं। जिनको कारीकर पिघलाकर हथौड़े से पीटपीटकर बनाते हैं।

संजीव अग्रवाल बताते हैं कि दीपावली के समय में तांबे के बर्तनों की काफी डिमांड रहती है। इस बार उन्होंने तांबे क्लश व पूजा के बर्तनों में कुमाऊॅ की लोक चित्रकला ऐंपढ़ का डिजाइन भी उकेरा गया है।
स्थानीय दीप भगत के अनुसार यह दुकान आजादी से पहले से ही तांबे के बर्तनों का कारोबार कर रही है। यहां तांबे की हस्तनिर्मित कलाकृतियों से सुसज्जित बर्तनों का अनोखा कलेक्शन मिल जाता है। जो देश में कहीं नहीं मिल पाता है। इसीलिए यहां बाहर से आने वाले विदेशी भी इससे आकषित होते हैं। इसकी डिमांड आज भी बाजार में काफी देखी जाती है।