अपने भीतर के सूर्य को उदय करें, निरोग रहें व्यायाम करें
यदि किसी को आत्मज्ञान की या आंतरिक ऊर्जा की थोडी-सी झलक भी मिलती है तो उतने में भी उसका जीवन अत्यन्त प्रकाशित महसूस होता है।
यदि किसी के भीतर आंतरिक ऊर्जा का संपूर्ण जागरण हो जाए तो उसका व्यक्तित्व कितना प्रकाशित व प्रेरक बन जाएगा।
हर व्यक्ति के अंदर उसकी जीवात्मा में सूर्य के समान प्रकाश मौजूद है, लेकिन वह चित्त के आवरण में ढका रहता है।
जो व्यक्ति अपना आत्मदर्शन कर पाते हैं, वे उस प्रकाश तक पहुंचते है और तब उनका व्यक्तित्व आलोकित हो उठता है।
सूर्य और मनुष्य में बहुत सारी बातें एक समान हैं। दोनों में अनन्त ऊर्जा समाहित है। दोनों में प्रकाश की कोई सीमा नहीं है। दोनों में ही दूसरों को जीवन देने की अदभुत शक्ति है।
विज्ञान की शब्दावली में भले ही सूर्य के पास व्यक्ति की तरह मन नहीं है, लेकिन आध्यात्मिक दृष्टि से सूर्य इस जगत की आत्मा है, इस जगत का केन्द्र है, सृष्टि के सारे घटना क्रमों का मुख्य स्त्रोत सूर्य है और सूर्य, परमात्मा का साक्षात दृश्य रूप व प्रत्यक्ष देवता है।
सूर्य निरन्तर लोगों को अनुशासन, संतुलन व निरन्तरता की सीख देता है। उसका उदय व अस्त होना, दोनो ही बिशेष हैं। सूर्य के चढने और डूबने, दोनो के ही मायने हैं।
हम कभी यह सोच भी नहीं सकते कि कल सूर्य होगा भी या नहीं। भले ही वह दिखाई न दे, बादलो के कुहासों में छिपा हो, फिर भी यह भरोसा होता है कि वह है। लेकिन इस तरह का भरोसा हम स्वयं पर नही कर पाते, अपनी ऊर्जा का अनुभव नही कर पाते, अपने प्रकाश को महसूस नही करते।
दूसरों से ईर्ष्या, जलन, शरमिंदगी, संकोच व घृणा में हम अपनी बहुत सारी ऊर्जा बेकार कर देते हैं। छोटी छोटी बातो पर हम अपना धैर्य खो बैठते हैं। खुद को साबित करने व प्रतिक्रिया देने में जुट जातें हैं। इसका परिणाम यह होता है कि हम अपनी मंजिल तक नहीं पहुंच पाते और बीच मार्ग में ही अपनी ऊर्जा खो देते हैं। यह स्थिति पढाई, कैरियर, स्वास्थ्य, नौकरी, रिश्तें आदि सभी पर लागू होती है, क्योंकि हम अपने कार्य व विश्राम के बीच संतुलन बनाना नहीं सीखते।
सूर्य से यह सीखा जा सकता है कि हम अपने कार्य व विश्राम के बीच संतुलन कैसे बिठाऐं। हम भी सूर्य के समान हर दिन नए जोश और उत्साह के साथ कार्य की शुरूआत करें। सूर्य के समान ही धीरे धीरे अपने गुणों , अपनी क्षमताओं को बढाऐं, फिर अपनी सीमाओं को समझे, होश में रहें, विश्राम करें और जिस तरह श्याम के समय सूर्य अस्त होता है, विश्राम करता है, उसी तरह दिन भर के कार्यों के बाद अपनी बैटरी को रिचार्ज करने के लिए हम विश्राम करें; क्योंकि कार्य के समान विश्राम भी जरूरी है।
हमारे कार्यो का प्रभाव केवल हम पर नहीं पडता, वरन् दूसरो पर भी पडता है। हमारे कार्यो के प्रभाव से दूसरो को भी मार्गदर्शन व प्रेरणा मिलती है। हमारा सही दिशा में पूरी एकाग्रता से काम करना, संभावनाओं के नए रास्ते खोलता है। जब भी हम अपने कार्यों को प्रभावकारी ढंग से करते हैं, तब हमारे कठिन से कठिन कार्य भी आसानी से पूरे हो जाते हैं। अपने काम के लिए हमारे अंदर पूरा जोश और उत्साह होना ही हमें ऊर्जा से भर देता है और कार्य के प्रति हमारी दृढता सभी प्रकार की बाधाओं को दूर कर देती है।
यदि हमारे अंदर साहस व दृढता की उष्मा है और बुरे से बुरे हालात में भी आशा व उम्मीद की किरण हमारे अंदर जिंदा है तो चाहे स्थिति कैसी भी हो, उस दौर में हमारी जीवन यात्रा शुभ ही होती है। इस यात्रा के दौर में सबसे अहम बात है कि अपनी आंतरिक ऊर्जा को व्यर्थ नष्ट होने से बचाया जाए और उसे सही दिशा में लगाया जाए। इसके साथ ही अपनी आंतरिक ऊर्जा को बढाने के निम्न उपाय भी किए जाऐं-
1. जहां तक संभव हो, दिमाग को शांत रखा जाए, क्योंकि किसी भी अंग की तुलना में हमारे दिमाग को सबसे अधिक ऊर्जा चाहिए, अतः हमें अपनी ऊर्जा को बेकार की चिंताओं, शिकायतों व व्यर्थ के कार्यो में नहीं गंवाना चाहिए।
2. अपनी आंतरिक ऊर्जा को बढाने के लिए उचित शारीरिक व मानसिक पोषण का ध्यान रखना चाहिए। पोषक तत्वों से भरपूर, उचित मात्रा में किया गया आहार हमारी ऊर्जा को निरन्तर बढाता है।
3. कार्य के साथ साथ विश्राम को भी पर्याप्त समय देना चाहिए, इसलिए दिनभर के कार्योके बाद हमें विश्राम करने में कंजूसी नहीं करनी चाहिए।
4. नियमित व्यायाम करें और शरीर को सक्रिय व मजबूत बनाने का प्रयास करें।
5. हंसना हंसाना और दूसरों की मदद करना भी हमें ऊर्जा से सराबोर करता है।
इस तरह उपरोक्त बातें हमारें अंदर की ऊर्जा को सक्रिय बनाने में हमारी मदद करती हैं और हमारे भीतर छिपी हुई सूर्य के समान ऊर्जा को उजागर करती हैं।