प्रतिबंधित प्लास्टिक कोरोनाकाल में बना जीवन रक्षक

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प्रतिबंधित प्लास्टिक कोरोनाकाल में बना जीवन रक्षक

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला 

कोरोना महामारी के दौर में दुनियाभर में 80 लाख टन प्लास्टिक कचरा निकला है। इसमें से 25 हजार टन प्लास्टिक कचरा महासागर में जा चुका है। नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार महासागर में एकत्र हुआ ये प्लास्टिक कचरा अगले तीन से चार वर्षों में तटीय क्षेत्रों या समुद्र तल में एकत्र होगा जो दुनिया के लिए एक नई परेशानी का सबब बन सकता है।रिपोर्ट के अनुसार प्लास्टिक कचरे का एक छोटा सा भाग खुले महासागर में जाएगा। इसके बाद ये महासागर के मध्य भाग में जाएगा और वहां पर कचरे का एक छोटा सा भाग दिखने लगेगा। इसके बाद ये कचरा आर्कटिक महासागर में जमा होने लगेगा।वैज्ञानिकों का कहना है कि महामारी के दौर में मास्क, दस्ताने व फेस शील्ड का इस्तेमाल बढ़ने से प्लास्टिक कचरे की मात्रा बढ़ी है। शोधकर्ताओं का कहना है कि महामारी में बढ़ा प्लास्टिक कचरा नदियों और महासागरों के लिए समस्या का एक नया रूप है।जिस प्लास्टिक को प्रतिबंधित करने का निर्णय लिया गया, कोरोनाकाल में वही सबसे बड़ा जीवनरक्षक बना। पीपीई किट से लेकर संक्रमितों के सामान को रखने के लिए प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जा रहा है। दरअसल, उत्तराखंड में सिंगल यूज प्लास्टिक पर रोक की तैयारी लंबे समय से चल रही है। इसके खतरे को देखते हुए इसे प्रतिबंधित करने का निर्णय लिया गया।शुरुआत में प्रदेश सरकार ने पांच शहरों को वर्ष 2020 तक सिंगल यूज प्लास्टिक से मुक्त करने का लक्ष्य रखा। कहा गया कि शेष जिलों में इसे बाद में लागू किया जाएगा। इस कड़ी में प्लास्टिक को प्रतिबंधित करने के लिए सख्ती भी की गई। प्रदेश में कोरोना की दस्तक के बाद प्लास्टिक का इस्तेमाल बढ़ गया। जिस प्लास्टिक को प्रतिबंधित करने का निर्णय लिया था, वही बचाव का सबसे बड़ा माध्यम बन गया। ऐसे में सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध केवल नाम के लिए है। सिंगल यूज प्लास्टिक के खात्मे के लिए 15 अगस्त 2019 में पीएम ने आह्वान किया था। नौ नवंबर 2019 को प्रदेश में भी इसकी अलख जगी थी। देहरादून में ही एक लाख लोगों ने मानव शृंखला बनाई थी। जानकारों के मुताबिक ठेलियों, सब्जी विक्रेताओं के पास से प्लास्टिक गायब हो गया था। सचिवालय और विधानसभा में प्लास्टिक की पानी की बोतलों, कप आदि पर प्रतिबंध लगाया गया था। ऐसा प्लास्टिक जो एक बार उपयोग होने के बाद फेंक दिया जाता है, इसमें पॉलिथीन से लेकर पैकेजिंग से उपयोग होने वाला प्लास्टिक शामिल है। यह पेट्रोकेमिकल से तैयार होता है।देश में प्रतिदिन 2.5 करोड़ किलोग्राम प्लास्टिक का उपयोग होता है। उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक देश में प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष करीब 11 किलोग्राम प्लास्टिक का उपयोग होता है। विश्व के लिए यह औसत 28 किलोग्राम है। 45 प्रतिशत प्लास्टिक पैकेजिंग में उपयोग होता है। यह सिंगल सूज प्लास्टिक का सबसे बढ़ा स्रोत भी है। सिंगल यूज प्लास्टिक के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि ये कूड़े के निस्तारण को बेहद कठिन बना देता है। छंटाई न होने पर यह परेशानी और बढ़ जाती है। इसको रिसाइकिल किया जा सकता है। इसका मतलब यह भी हुआ कि एक संसाधन के रूप में इसका उपयोग नहीं हो रहा है। कोरोना काल अपने साथ सिंगल यूज सहित अन्य प्लास्टिक के उपयोग के बढ़ते चलन का रोग लेकर भी आया। सरकार ने कोरोना को देखते हुए नियमों में ढील दी। इसके चलते अब सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग बढ़ रहा है। जिलों में इन नियमों का पालन कराने में जिलाधिकारी को जिम्मेदारी दी जाएगी। इसके साथ पुलिस अधीक्षक और प्रभागीय वन अधिकारी या डीएफओ भी जिम्मेदार होंगे। इनके क्षेत्र का स्पष्ट रूप से निर्धारण किया जाएगा ताकि भविष्य में विवाद की स्थिति पैदा न हो।