अधूरा रह गया सीडीएस बिपिन रावत का पैतृक गांव में बसने का सपना
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
बिपिन रावत ने देहरादून में कैंब्रियन हॉल स्कूल, शिमला में सेंट एडवर्ड स्कूल और भारतीय सैन्य अकादमी देहरादून से पढ़ाई की। 11वीं गोरखा राइफल की पांचवीं बटालियन से 1978 में अपने करियर की शुरुआत की थी। उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से रक्षा अध्ययन में एम. फिल की डिग्री हासिल की। वहीं, सैन्य मीडिया रणनीतिक अध्ययन पर अपना शोध पूरा किया है। साल 2015 में भी बिपिन रावत एक हेलिकॉप्टर दुर्घटना में बाल-बाल बच निकले थे। पौड़ी जिले में जन्मे सीडीएस रावत का उत्तराखंड से विशेष लगाव था। भारत-चीन बॉर्डर पर हो रही हर गतिविधियों पर सीडीएस रावत की हमेशा ही पैनी नजर रहती थी। हाल ही में सीडीएस रावत गढ़वाल विश्वविद्यालय के नौवें दीक्षांत समारोह में 01 दिसंबर को भी उत्तराखंड आए थे। इससे पहले वह उत्तराखंड स्थापना दिवस 09 दिसबंर को भी देहरादून आए थे।सीडीएस बिपिन रावत ने सेना में जाकर देश की सेवा करने में इच्छुक उत्तराखंड के युवाओं को तोहफा भी दिया था। सेना भर्ती के कठिन मानकों को शिथलता करते हुए सीडीएस रावत ने हजारों युवाओं का सेना की वर्दी पहनने का सपना साकार किया था। युवाओं को सेना भर्ती के ऊंचाई मानकों में छूट देने की हामी सीडीएस रावत ने ही भरी थी। उन्हीं की बदौलत सेना भर्ती में युवाओं को ऊंचाई मानकों में पांच सेंटीमीटर की छूट मिली थी। 16 मार्च 1958 को पौड़ी में जन्में जनरल विपिन रावत का परिवार कई पीढ़ियों से भारतीय सेना में सेवाएं दे रहा है। उनके पिता सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल लक्ष्मण सिंह रावत 1988 में वे उप सेना प्रमुख के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। वह 16 दिसंबर 1978 में गोरखा राइफल्स की पांचवीं बटालियन में शामिल हुए। सितंबर 2016 में वह देश के 26वें थल सेनाध्यक्ष बने थे। 2019 तक वो इस पद पर रहे। 01 जनवरी 2020 से वह देश के पहले सीडीएस नियुक्त किया गया था। उन्होंने कार्यभार संभाला था। परम विशिष्ट सेवा पदक, उत्तम युद्ध सेवा पदक, अति विशिष्ट सेवा पदक, युद्ध सेवा पदक, सेना पदक, विशिष्ट सेवा पदक, ऐड-डि-कैम्प रहे विपिन रावत रक्षा और रणनीतिक मामलों में सरकार के प्रमुख सलाहकार भी थे। जनरल रावत को पूर्वी सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा, कश्मीर घाटी और पूर्वोत्तर में काम करने का लंबा अनुभव है। अपने करियर में जनरल बिपिन रावत को यूआईएसएम, एवीएसएम, वाईएसएम, एसएम, वीएसएम के साथ वीरता और विशिष्ट सेवा के लिए सम्मानित किया गया है। दो मौकों पर सीओएएस कमेंडेशन और आर्मी कमांडर कमेंडेशन भी दिया गया है। संयुक्त राष्ट्र के साथ सेवा करते हुए, उन्हें दो बार फोर्स कमांडर के कमेंडेशन से सम्मानित किया गया। साल 2019 में जनरल बिपिन रावत ने इच्छा जताई थी कि वह रिटायरमेंट के बाद अपने पैतृक गांव में ही रहेंगे। वे 2004 में अपने मामा ठाकुर बीरेंद्रपाल सिंह परमार के साथ थाती गांव आए थे। उसके बाद 2019 में उन्हें ननिहाल आने का मौका मिला था। उन्होंने गांव के छोटे-बड़े बच्चों और बुजुर्गों से मुलाकात कर रिटायरमेंट के बाद थाती गांव में ही रहने की बात कही थी। सीडीएस बिपिन रावत के निधन से सशत्र सेनाओं के शिखर पर पहुंचे उत्तराखंड के दोनों बेटों का सेवा के दौरान निधन होने का दुखद दुर्योग बन गया है इससे पूर्व जनरल बिपिन चंद्र जोशी का थल सेनाध्यक्ष रहते हुए आकस्मिक निधन हुआ था। इत्तेफाक से दोनों के नाम बिपिन ही रहा। पूर्व आर्मी चीफ जनरल बिपिन चंद्र जोशी का जन्म 05 दिसम्बर 1935 को पिथौरागढ़ में जन्म हुआ था। जनरल जोशी अल्मोड़ा जिले के दन्या के मूल निवासी थे। जोशी थल सेनाध्यक्ष पद पर पहुंचने वाले उत्तराखंड के पहले सैन्य अधिकारी बने। वे भारतीय थल सेना के 17वें प्रमुख बने। लेकिन सेवाकाल के दौरान ही 18 नवम्बर 1994 को उनका नई दिल्ली के मिलिट्री हॉस्पिटल में आकस्मिक निधन हो गया । तब वो 58 वर्ष के थे, इस तरह उनका सेवा काल अभी करीब एक साल बचा हुआ था। बिपिन चंद्र जोशी ने 04 दिसम्बर 1954 को सेकेंड लान्सर (गार्डनर्स हॉर्स) इंडियन आर्म्ड कॉर्प्स में भारतीय सेना में कमीशन हासिल किया। सीडीएस बिपिन रावत का आकस्मिक निधन देश के लिए अपूरणीय क्षति है। देश की सुरक्षा के लिए उनका महान योगदान रहा। देश की सीमाओं की सुरक्षा और रक्षा के लिए उनके द्वारा लिए गए निर्णयों को सदैव याद रखा जाएगा। उनके निधन से उत्तराखंड को भी बड़ी क्षति हुई है। हम सबकों अपने इस महान सूपत पर हमेशा गर्व रहेगा। दरअसल जनरल रावत ने सेना से रिटायर होने के बाद अपने पैतृक गांव में बसने की इच्छा जताई थी. लेकिन उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी. जनरल रावत का देहरादून से खासा लगाव रहा। यही वजह है कि वे दून में अपना नया मकान बना रहे थे। शहर से करीब 20 किमी दूर जंगल के बीच शांत क्षेत्र प्रेमनगर पौंधा के जलवायु विहार स्थित सिल्वर हाइट्स उनका एक प्लाट है, जिसमें निर्माण कार्य भी शुरू हो गया था। वे खाली हो चुके गांव को लेकर काफी गंभीर नजर आए। साथ ही वन्य जीवों के कारण छूट रही खेती पर भी उन्होंने ङ्क्षचता जताई। जनरल रावत का कहना था कि ऐसी योजनाएं बनें, जिससे गांव का पलायन रुक सके। इस दौरान उन्होंने अपनी पैतृक भूमि भी देखी और गांव में आवास बनाने की बात कही। देश की सेवा में हर मोर्चे पर काबिलियत और क्षमता का लोहा मनवाने वाले चीफ आफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत के जीवन में दिसंबर काफी महत्वपूर्ण रहा। यह वो महीना है, जो उनके जीवन में आए तमाम उतार-चढ़ाव का साक्षी बना। वर्ष 1978 में दिसंबर में ही जनरल रावत ने सेना में देश सेवा की कमान संभाली थी और दिसंबर में ही उन्हें सेना के उच्च पदों की जिम्मेदारी मिली। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि दिसंबर ही उनके बलिदान का भी साक्षी बना। उत्तराखंड की माटी में जन्मे कई लाल देश की सेना में बड़ी जिम्मेदारियां संभाल चुके हैं। इनमें प्रमुख रूप से पूर्व थलसेना प्रमुख जनरल बीसी जोशी, पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल डीके जोशी, पूर्व रा प्रमुख अनिल धस्माना, कोस्टगार्ड के हेड रहे राजेंद्र सिंह और डीजीएमओ की जिम्मेदारी संभाल चुके ले. जनरल अनिल भट्ट का नाम शामिल है। थलसेना प्रमुख रहते हुए जनरल बीसी जोशी की रहस्यमय तरीके से मौत हो गई थी।