उत्तराखंड के मैदानी जिलों में सियासी समीकरण में किसान
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की जयंती आज देशभर में किसान दिवस के रूप में मनाई जा रही है। आजाद भारत में अगर किसी ने किसानों के हक-हकूक की बात की तो वो चौधरी साहेब ही थे। उन्हीं के संघर्षों का ही प्रतिफल है कि देश के किसानों को आज अपनी राजनीतिक हैसियत का अहसास है। तीन किसनों कानूनों के खिलाफ किसानों का संघर्ष इतिहास में दर्ज हो गया है, जिसे उत्तराखंड के तराई के किसानों ने भी धार दी थी। तो किसान दिवस और चुनावी साल के बहाने कि उत्तराखंड में किसानों की राजनीतिक हैसियत क्या है और कितनी सीटों को किसान वोटर प्रभावित करते हैं। यूएसनगर जिले की रुद्रपुर में आंशिक प्रभाव को छोड़कर जसपुर, काशीपुर, बाजपुर, गदरपुर, किच्छा, सितारगंज, नानकमत्ता, खटीमा वहीं नैनीताल जिले की तीन विधानसभा सीटों रामनगर, कालाढूंगी औ लालकुआं सीट को किसान वोटर प्रभावित करते हैं। हालांकि यहां पर किसान निर्णायक स्थिति में नहीं कहे जा सकते। वहीं बात करें हरिद्वार की तो ज्वालापुर, भगवानपुर, झबरेड़ा, पिरान कलियर, रुड़की, खानपुर, मंगलौर, लक्सर, हरिद्वार ग्रामीण में किसान वोटर अच्छी भूमिका में हैं। जबकि देहरादू की डोईवाला, सहसपुर, विकासनगर की सीटों पर भी किसानों का कुछ असर है। उत्तराखंड के तीन मैदानी जिलों यूएसनगर, हरिद्वार और नैनीताल की 19 सीट ऐसी हैं जिनकी राजनीति काफी हद तक किसानों के मूड पर भी निर्भर करती है। इन सीटों पर किसान वोटर चुनावी समीकरण बनाने बिगाड़ने की हैसियत में होते हैं। बात करें पिछले विस चुनाव की तो यूएसनगर की सभी नौ सीटों में सिर्फ जसपुर की एक सीट कांग्रेस के हाथ लगी थी, जबकि अन्य सभी आठ सीटों पर कमल खिला था। वहीं नैनीताल की छह सीटों में पांच पर भाजपा ने बाजी मारी थी। सिर्फ हल्द्वानी की एक सीट कांग्रेस के हिस्से में आई थी। वहीं हरिद्वार जिले की ज्यादातार सीटों पर भाजपा की ही कब्जा था। किसान आंदोलन के शुरू होने के बाद से मैदानी सीटों का राजनीतिक गणित बदलने लगा। किसान और सिख वोटर जिस प्रकार सत्ता के खिलाफ नजर आए, उससे कांग्रेस और आप को अपने लिए संभावनाएं नजर आने लगीं। दोनों ही दल किसानों के मुद्दे पर काफी मुखर हुए। किसानों की नाराजगी की वजह से अब तक बैकफुट पर रही भाजपा आजाद भारत में अगर किसी ने किसानों के हक-हकूक की बात की तो वो चौधरी साहेब ही थे। उन्हीं के संघर्षों का ही प्रतिफल है कि देश के किसानों को आज अपनी राजनीतिक हैसियत का अहसास है। तीन किसनों कानूनों के खिलाफ किसानों का संघर्ष इतिहास में दर्ज हो गया है, जिसे उत्तराखंड के तराई के किसानों ने भी धार दी थी। तो किसान दिवस और चुनावी साल के बहाने चालिए समझते हैं कि उत्तराखंड में किसानों की राजनीतिक हैसियत क्या है और कितनी सीटों को किसान वोटर प्रभावित करते हैं।