पहाड़ से टूट रहा अनमोल माटी का नाता
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
चौतरफा चुनौतियों वाले पहाड़ की माटी अब पराई होने लगी है। इसके जुदा होने की बड़ी वजह मानवजनित वनाग्नि है। हर वर्ष लपटों में खाक होते 2200 से 3200 हेक्टेयर वन क्षेत्रों से बरसात में 70 से 80 टन उपजाऊ मिट्टी अतिवृष्टि से बह जा रही है। उसके साथ जैवविविधता को जिंदा रखने वाले पोषक तत्व भी खत्म हो रहे हैं। विज्ञानी आगाह कर रहे हैं कि वनाग्नि पर नियंत्रण की कारगर नीति न बनी तो नदियों, उनके सहायक जलस्रोतों व धारों को बचाना मुश्किल होगा। वनाग्नि से जंगलात की उर्वरा मिट्टी का स्वरूप बिगड़ रहा है तो उसके पोषक तत्व भी तेजी से खत्म होते जा रहे हैं। मृदा क्षरण का सीधा असर जलस्रोतों व नदियों पर पडऩे लगा है। असल में मिट्टी में जलधारण की ताकत घटने से भूगर्भीय जल भंडार तक पर्याप्त वर्षाजल नहीं पहुंच पा रहा। इससे जलस्रोतों का प्रवाह कम होने लगा है। ऊपरी सतह जलने से मिट्टी कमजोर होकर बारिश में बह जा रही है। वनाग्नि से पर्वतीय जमीन की जलधारण क्षमता भी कमजोर पड़ रही है। इस कारण स्रोत सूखने लगे हैं। वन क्षेत्रों का अपना प्राकृतिक विज्ञान होता है। चौड़ी पत्ती वाले जंगल, नीचे छोटी-छोटी झाडिय़ां व लताएं। झड़ी-सड़ी पत्तियों की परत। सबसे नीचे घास। तेज बारिश हुई भी तो ये परत मोटी बूंदों को अपने में समेट लेती हैं, जो भूजल भंडार तक धीरे-धीरे पहुंचती हैं। आग से इस अहम परत के नष्ट होने से अतिवृष्टि में कमजोर पड़ चुकी मिट्टी तेज बहाव में बह जाती है। आग से उत्तराखंड के वनों की उपजाऊ मिट्टी व पोषक तत्व खत्म होते जा रहे हैं। यही भूस्खलन के कारण बन रहे हैं। मिट्टी बचाने के लिए वनाग्नि नियंत्रण को प्रभावी कदम व कारगर नीति बनानी होगी। आग की घटनाएं नहीं रुकीं तो नदियों को पुनर्जीवित करने का सपना साकार नहीं हो सकेगा। दुनियाभर में आज के दिन को विश्व मृदा के रूप में मनाया जाता है। इसका उद्देश्य लोगों को हो रहे मृदा प्रदूषण के प्रति जागरूक करना है। आज के समय में लोगों द्वारा मिट्टी का भरपूर तरीके से दुरुपयोग किया जा रहा है। लोगों को मिट्टी की गुणवत्ता बताने के लिए ही विश्व मृदा दिवस मनाया जाता है। इसी शुरूआत दिसंबर 2013 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 68वीं सामान्य सभा की बैठक में पारित संकल्प के द्वारा 5 दिसंबर को विश्व मृदा दिवस मनाने का संकल्प लिया गया था। इस दिवस को मनाने का उदेश्य किसानों के साथ आम लोगों को मिट्टी की महत्ता के बारे में जागरूक करना है। भारत सरकार की मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना के तहत वर्ष 2018-19 में कृषि भूमि की उर्वरा शक्ति नापने के लिए 33,525 मिट्टी के नमूने भरे गए थे। मृदा स्वास्थ्य कार्ड के प्रति जागरूकता बढ़ने से इस वर्ष इसकी सुविधा प्राप्त करने वाले किसानों की संख्या बढ़ी है। ढाई एकड़ भूमि पर प्रति नमूने के मानक अनुसार इस वर्ष कुमाऊं में एक लाख, 98 हजार, 995 किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड मिलेंगे। इनमें सर्वाधिक 53 हजार, 321 किसान अल्मोड़ा से और फिर 45 हजार, 555 किसान ऊधम सिंह नगर जिले के शामिल था। मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनाकर आधार से जुड़ जाने पर साल 2022 तक किसानों की आय दुगुनी करने के प्रयासों में सहायक हो सकता है। उत्तराखण्ड उन पांच राज्यों में शामिल है जहां आज से डी.बी.टी प्रणाली का शुभारम्भ किया जा रहा है। यह प्रधानमंत्री के सपने ‘डिजिटल इंडिया’ की दिशा में बढ़ाया गया कदम है। उत्तराखंड की अधिकांश जनता अभी भी कृषि पर निर्भर है। रासायनिक खाद की वजह से बेहाल जमीन को प्राकृतिक उपायों से समृद्ध बनाया जा सकता है. लेकिन इसमें शुरुआत में काफी समस्याएं होती हैं. धरती की उपरी परत को गोबर और पत्तों की खाद से मुलायम बनाना कठिन होता है. लेकिन बाद में इसके अच्छे परिणाम सामने आते हैं. लेकिन किसानों को रासायनिक उर्वरक से हटाकर कुदरती उपायों से खेती करने के लिए प्रेरित करने के लिए उत्तराखंड सरकार ने खुद ही ग्राहक बनने का फैसला किया है.