वन विभाग के पौधरोपण अभियान की विभाग ने ही खोली पोल

0
279

वन विभाग के पौधरोपण अभियान की विभाग ने ही खोली पोल

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

 

वन विभाग के पौधरोपण अभियान की विभाग के ही मूल्यांकन व अनुश्रवण के अफसर ने ही पोल खोल दी है।  स्थलीय निरीक्षण के बाद देहरादून से मुख्य वन संरक्षक कुमाऊं को भेजी गई रिपोर्ट में साफ उल्लेख किया है कि 2018-19 में पौधरोपण के करीब 50 पौधे जिंदा नहीं हैं। अतिरिक्त भूमि संरक्षण वन प्रभाग रामनगर की इस निरीक्षण रिपोर्ट ने गंभीर सवाल खड़े किए है। दरअसल हर साल वन विभाग द्वारा पहली जुलाई से पौधरोपण अभियान चलाया जाता है। हर प्रभाग, रेंज के साथ ही बीट स्तर के अधिकारी कर्मचारियों की पौधरोपण की जिम्मेदारी तय होती है। नियमानुसार 40 फीसद पौधे फलदार लगाने होते हैं, ताकि वन्य जीव को जंगल में आहार मिल सके।  विभाग की ओर से लाखों पौधे लगाने का लक्ष्य तय किया जाता है। सामाजिक, स्वयंसेवी संस्थाओं का भी सहयोग लिया जाता है। वन विभाग की ओर से विभिन्न योजनाओं के तहत किए गए पौधरोपण का मूल्यांकन मुख्यालय स्तर की टीम द्वारा किया जाता है। प्रमुख वन संरक्षक अनुश्रवण, मूल्यांकन व आधुनिकीकरण की ओर से निरीक्षण के बाद प्रमुख वन संरक्षक  हेड ऑफ फॉरेस्ट  को अतिरिक्त भूमि संरक्षण प्रभाग रामनगर के रेंजों की रिपोर्ट दी है। यह रिपोर्ट मुख्य वन संरक्षक कुमाऊं को भी भेजी गई है। सात दिसंबर को भेजी रिपोर्ट में कहा गया है कि 2018-19 में 13 वन रेंजों में 500 से एक हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में पौधरोपण किया गया था। जर रेंज में पांच हजार से 11 हजार पौधे रोपे गए लेकिन इसमें से करीब 50 फीसद ही जिंदा हैं। साफ है कि वन विभाग पौधरोपण के बाद देखभाल करना भूल गया। वन विभाग के अनुसार इस बार पूरे साल में पौने दो करोड़ से भी ज़्यादा पौधे रोपे जाएंगे. इस साल वन विभाग 1.09 करोड़ रुपये खर्च कर 1.78 करोड़ पौधे लगा रहा है. वैसे यह हर साल की बात है. वन विभाग के रिकॉर्ड के अनुसार 2019-20 में एक करोड़ 37 लाख पौधे लगाने का लक्ष्य था, लेकिन लगाए गए दो करोड़ पौधे. इसी तरह साल 2018-19 में 1.64 करोड़ के लक्ष्य के विपरीत 1.89 करोड़ पौधरोपण का दावा किया गया है.पिछले 20 सालों में इसी तरह करोड़ों की संख्या में पेड़ लगाने का दावा वन विभाग करता रहा है, लेकिन फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की ताजा रिपोर्ट के अध्ययन से वन विभाग के इस दावे पर सवाल खड़े होते हैं. रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड में 2017 से लेकर 2019 तक मात्र 0.03 फीसदी फॉरेस्ट कवर बढ़ा है. यह मामूली बढ़ोत्तरी भी नए पौधरोपण यानी नए क्षेत्रों में नहीं हुई है, बल्कि डेंस फॉरेस्ट में ग्रेाथ के कारण यहकवरबढ़ाहै.सवाल उठता है कि इतने बडे पैमाने पर हर साल पौधे रोपे जाते हैं तो ये जाते कहां हैं? क्या सच में इतने पौधे लगते हैं या सिर्फ फाइलों में लगा दिए जाते हैं? इनमें से कितने पौधे पनप पाते इसके लिए वन विभाग ने अनुश्रवण एवं मूल्यांकन सेल बनाया है, जिसको चीफ कंनजर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट हेड करता है. लेकिन इस सेल के पास ऐसा कोई डेटा ही नहीं है कि बीते सालों में कितनी पौध लगाई गई और इनमें से कितनी जीवित रही. कुल मिलाकर वन विभाग के पास बात का कोई रिकॉर्ड नहीं है कि बीते सालों में उसने जो करोड़ों पौधे लगाने का दावा किया है या प्लांटेशन के नाम पर जो करोड़ों रुपये दफ़न किए गए हैं, उनका आधार क्या है. करोड़ों की संख्या में लगाए गए पौधों में से बरसात में लाखों भी नहीं बचे? बड़े पैमाने पर होने वाले पौधरोपण के बूते अब तक कितना जंगल विकसित हो चुका है? नाम न छापने की शर्त पर एक सीनियर आईएफ़एस अफ़सर कहते हैं कि हकीकत तो यह है कि यह सब गोलमाल है, सब आंकड़ों का खेल है. अगर धरातल पर जांच कराई गई तो कई अफ़सर नप जाएंगे. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने भ्रष्टाचार पर कड़ा प्रहार करते हुए वन विभाग के कई अधिकारियों पर गाज गिराई है। जिसके तहत फारेस्ट डिपार्टमेंट के को प्रमुख वन संरक्षक पद से हटा दिया गया है। वहीं कई अन्य अधिकारियों पर भी भ्रष्टाचार को लेकर कड़ी कार्रवाई की गई है। साथ ही फॉरेस्ट डिपार्टमेंट में आज ही 34 अधिकारियों के तबादले भी किए गए है। वहीं मुख्यमंत्री ने साफ कहा है कि कॉर्बेट पार्क को लेकर लगातार लापरवाही और भ्रष्टाचार की शिकायते मिली थी। जिसके बाद कड़ी कार्यवाही की गई है।