आपदा के कई गहरे जख्म दे गया यह साल

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आपदा के कई गहरे जख्म दे गया यह साल

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

उत्तराखंड कच्चे और नए पहाड़ों वाला राज्य है। यह क्षेत्र भारी वर्षा, बादल फटने, भूस्खलन, आकस्मिक बाढ़ और भूस्खलन से असर प्रभावित होता रहता है। यहां के भूतत्व में काफी समस्याएं हैं आपदा की दृष्टि से बेहद संवेदनशील उत्तराखंड के लिए वर्ष 2021 बेहद खराब रहा। वर्ष 2013 में केदारनाथ की जलप्रलय में हजारों लोगों की जान गई थी, उसके बाद इस साल सर्वाधिक लोगों ने आपदा में अपनी जान गंवाईं और हजारों करोड़ रुपये की संपत्ति का नुकसान हुआ। स्टेट ऑपरेशन इमरजेंसी सेंटर के अनुसार वर्ष 2021 में कुल 300 से अधिक लोगों ने आपदा में अपनी जान गंवाईं और 61 से अधिक लोग लापता हुए। इस साल बाढ़, बादल फटने, हिमस्खलन, भूस्खलन और अतिवृष्टि के कारण भारी जानमाल का नुकसान हुआ। प्रदेश की सड़कों को सर्वाधिक नुकसान पहुंचा। कई-कई दिनों तक राष्ट्रीय राजमार्ग बंद रहे और सैकड़ों गांवों का संपर्क जिला मुख्यालयों से कटा रहा। सरकार को इन सड़कों को दुरुस्त करने में तीन सौ करोड़ से अधिक का बजट खर्च करना पड़ा। सात फरवरी, 2021 को चमोली जिले में हिमस्खलन के बाद आई भीषण बाढ़ में दो सौ भी अधिक लोगोंं ने अपनी जान गंवाई थी। कई लापता लोगों का आज तक पता नहीं चल पाया। वहीं, अक्तूबर में भारी बारिश ने बड़ी तबाही मचाई। इस आपदा में भी 80 से अधिक लोगों की जान चली गई और संपत्ति का बड़ा नुकसान हुआ। सात फरवरी, 2021 को उत्तराखंड के चमोली जिले में हिमस्खलन के बाद आई भीषण बाढ़ 200 से भी अधिक लोगों ने अपनी जान गंवाई थी। कई लोग लापता हो गए थे। इस आपदा में अब तक कुल  172 मृतकों के मृत्यु प्रामण पत्र जारी किए जा चुके है। 50 लापता लोगों को मृत्यु प्रमाण पत्र अब भी जारी किए जाने हैं। घटना के बाद 53 वैज्ञानिकों के एक अंतरराष्ट्रीय दल ने इस आपदा के लिए हिमस्खलन को जिम्मेदार बताया था। यह जानकारी हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन में सामने आई है। इस दल में नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और आईआईटी, इंदौर के अनुसंधानकर्ता भी शामिल थे।इस आपदा में गंगा नदी पर बने दो जलविद्युत संयंत्रों को भी नष्ट कर दिया था। वैज्ञानिकों के अनुसार हिमस्खलन के कारण रोंती पर्वत से 2.7 करोड़ क्यूबिक मीटर की चट्टान और हिमनद टूटकर गिर गई थी। जिस वजह से यह मलबा और पानी रोंती गाड़, ऋषिगंगा और धौलीगंगा नदी घाटियों में गिरा और आगे चलकर इसने भीषण बाढ़ का रूप ले लिया था। मानसून के लौट जाने के बाद प्रदेश में 17, 18 और 19 हुई अतिवृष्टि ने 80 से अधिक लोगों की जान ले ली और भारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया। सचिवालय स्थित राज्य आपातकालीन केंद्र के अनुसार, गढ़वाल की अपेक्षाकृत कुमाऊं में ज्यादा नुकसान हुआ। यहां नैनीताल जिले में सर्वाधिक 36 लोगों की मौत हुई। इसके बाद चंपावत में 12, उत्तरकाशी में 10, अल्मोड़ा में छह, बागेश्वर में छह, ऊधमसिंह नगर में दो पौड़ी में तीन, पिथौरागढ़ में तीन और चमोली में तीन लोगों की मौत हुई। 232 से अधिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचा। पानी के सैलाब में जो सड़कें बहीं, वह अलग हैं। ग्लेशियर फटने की खबर के बाद फ्रंटलाइन पर आते हुए स्थिति को खुद संभालते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री ने सचिव आपदा प्रबंधन और डीएम चमोली से इसके साथ ही सीएम हालात का जायजा लेने के लिए चमोली और तपोवन गए और आपदाग्रस्त इलाकों का दौरा करते हुए अधिकारियों से स्थिति का जायजा लिया. पानी के सैलाब को काबू करने के लिए सरकार ने एहतियातन भागीरथी नदी का फ्लो रोक दिया. अलकनंदा में पानी का बहाव रोका जा सके, इसलिए सरकार ने श्रीनगर डैम और ऋषिकेश डैम को खाली करा दिया था. उत्तराखंड के पहाड़ों पर हर साल जंगलों में आग लगने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं. इससे बड़ी संख्या में पेड़ों, जीव-जंतुओं और पर्यावरण को नुकसान हो रहा है. जंगलों की आग से वायु प्रदूषण की समस्या भी बढ़ रही है. वन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में अक्टूबर तक 928 वनाग्नि की घटनाएं सामने आईं थीं. इसमें 591 आरक्षित वन क्षेत्र और 337 घटनाएं वन पंचायत वन क्षेत्रों में हुई थीं. आग की इन घटनाओं में 1207.88 हेक्टेयर जंगल जल गए. वन विभाग के मुताबिक अक्टूबर तक वनाग्नि की वजह से 37,16,772 रुपये का नुकसान आंका गया. इन घटनाओं में 2 लोग घायल हुए, जबकि दो लोगों की मौत भी हुई. इन घटनाओं में 7 जानवरों की मौत और 22 जानवर घायल हुए. उत्तराखंड में 7 साल बाद एक बार फिर आसमानी आफत तबाही का मंजर लेकर आई। जो कि आपदाग्रस्त इलाकों के लोगों को गहरे जख्म दे गया। नैनीताल, यूएसनगर, चंपावत, पिथौरागढ़, रुद्रप्रयाग जिलों में भारी नुकसान हुआ है। यह पहली बार नहीं कि पहाड़ी राज्य इस तरह की मुसीबत का सामना कर रहा हो। ये मंजर एक बार फिर 16-17 जून 2013 की याद ताजा कर गया है। जब केदारनाथ सहित राज्य के अन्य हिस्सों में तबाही हुई थी। उससे पहले भी पहाड़ी राज्य को कई बार ऐसी प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ा है। 2021 के अक्टूबर माह में इतनी भारी बारिश हुई कि नए रिकॉर्ड कायम हुए हैं। बारिश अपने साथ कुदरत का कहर लेकर आई। जिसने हर जगह तबाही मचा दी। मौसम विभाग ने कुमाऊं क्षेत्र में पंतनगर और मुक्तेश्वर में 24 घंटे के दौरान हुई सबसे ज्यादा बारिश के आंकड़े जारी किये। ये आंकड़े बताते हैं कि इन दोनों जगहों पर पिछले 24 घंटे के दौरान हुई बारिश अब तक के ऑल टाइम रिकॉर्ड से करीब दोगुनी रही है। पंतनगर में बारिश के आंकड़े 25 मई 1962 से दर्ज किये जा रहे हैं। यहां अब तक 24 घंटे के दौरान 10 जुलाई 1990 को सबसे ज्यादा 228 मिमी बारिश हुई थी, लेकिन 18 अक्टूबर 2021 सुबह 8.30 बजे से 19 अक्टूबर 2021 की सुबह 8.30 बजे तक यहां 403.2 मिली बारिश दर्ज की गई। इसी तरह मुक्तेश्वर में 1 मई 1897 से बारिश के आंकड़े दर्ज किये जा रहे हैं। यहां अब तक 24 घंटे के दौरान सबसे ज्यादा बारिश18 सितम्बर 1914 को 254.5 मिमी दर्ज की गई थी, जबकि इस बार यहां 24 घंटे के दौरान 340.8 मिमी बारिश हुई है। उससे पहले भी पहाड़ी राज्य को कई बार ऐसी प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ा है। लेकिन ​21 साल में आपदा से निपटने को ​किसी तरह की नीति तैयार न होना।अब तक की सरकारों पर सवाल खड़े कर रहा है। हर बार आपदा आती है, सरकारें नुकसान को लेकर रिपोर्ट तैयार कर मुआवजा देकर पुर्नवास और संसाधनों को विकसित करने के लिए कई प्लानिंग भी बनाती हैं। लेकिन जब भी प्राकृतिक आपदा से सरकारों का सामना होता है, तो सभी सिस्टम बेबस नजर आता है। जिसके बाद सेना, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ के अलावा तमाम देशभर की संस्थाएं अपनी जान पर खेलकर लोगों की जान बचाती हैं।उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थितियां पहाड़ी राज्य के कारण दूसरे राज्यों से भिन्न है। यहां अतिवृष्टि, भू-स्खलन, भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाएं आती रहती हैं। जिस वजह से गांवों को विस्थपित या पुनर्वास करना पड़ता है। 2021 में आई आपदा के बाद उत्तराखंड में चुनावी साल में जमकर राजनीति हुई। 2013 की आपदा में जिस तरह की राजनीति देखने को मिली, उसी तरह अक्टूबर की आपदा सियासत का केन्द्र बन गया। 2013 में आई आपदा के बाद कांग्रेस सरकार के तत्कालीन सीएम विजय बहुगुणा की कुर्सी छोड़नी पड़ी। जिसके बाद हरीश रावत को दायित्व सौंपा गया। लेकिन इस बार आपदा आने से 2 माह पहले ही पुष्कर सिंह धामी को सीएम की कुर्सी सौंपी गई थी। ऐसे में धामी के लिए आपदा बड़ा चेलेंज लेकर आया। ऐसे में धामी ने आपदा प्रबंधन और आपदा पुर्नवास पर फोकस किया। साथ ही आपदा के मानकों पर भी बदलाव कर धामी ने अपनी कुर्सी बचा ली। जिसके बाद गृह मंत्री ने उत्तराखंड आकर धामी की पीठ थपथपाई। हालांकि कांग्रेस और ने आपदाग्रस्त क्षेत्रों में पैदल पहुंचकर आपदा को अवसर बनाया। जिसके बाद आपदा फिर से राजनीति का केन्द्र बन गया।आपदा की दृष्टि से सबसे संवेदनशील हैं। इन जिलों में सालों से साल-दर-साल आपदा की बड़ी घटनाएं घट रही हैं, मैदान में छपे अखबार को पहाड़ के अंदरूनी हिस्सों तक पहुंचने में 24 से 48 घंटे लगते थे। तराई और भांबर खत्म होते ही सड़कें पगडंडियों में तब्दील हो जाती थीं। टेलीफोन सिर्फ किस्सों का हिस्सा था और रेलगाड़ी के दर्शन के लिए बच्चों को जवान होने का इंतजार करना पड़ता था। राष्ट्रीय चेतना में भी हिमालय का यह हिस्सा चार धाम की आध्यात्मिक पहचान से आगे नहीं बढ़ता था। पर्वतीय जीवन लगातार अतिवृष्टि, भूस्खलन, भूकंप और बाढ़ की चुनौती से जूझता था। लेकिन अगले 75 साल में नजारा काफी कुछ बदल जाना था। फिर आपदा प्रबंधन का तंत्र मजबूत नहीं हो पा रहा। तंत्र की मजबूती के लिए अभी तक जो भी जो प्रयास हुए, वह आगे नहीं बढ़ पाए है। अब उम्मीद करते हैं कि अगले साल में स्थिति जरूर बदलेगी।