जिसने दिया था महानायक को अमिताभ बच्‍चन नाम, आज है उनकी पुण्‍यतिथि

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जिसने दिया था महानायक को अमिताभ बच्चन नाम, आज है उनकी पुण्यतिथि

हृदयस्पर्शी लेखन, बेलौस अंदाज व निर्भीक व्यक्तित्व था पद्म विभूषण सुमित्रानंदन पंत का। हिंदी साहित्य में छायावादी युग के प्रमुख स्तंभ प्रकृति सुकुमार कवि सुमित्रानंदन ने कभी स्वाभिमान से समझौता नहीं किया,20 मई 1900 को उत्तराखंड के बागेश्वर जिला के कौसानी में जन्मे सुमित्रानंदन पंत पिता गंगादत्त व मां सरस्वती की आठवीं संतान थे। जन्‍म के छह घंटे बाद ही उनकी मां का निधन हो गया था। स्नातक की पढ़ाई करने के लिए प्रयागराज चले गए थे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बीए में प्रवेश लेकर हिंदू छात्रावास में रहते थे। यहां 1919 से 21 तक रहे। यहीं 1926 में ‘पल्लव नामक पुस्तक लिखकर छायावाद को स्थापित कर दिया। सरस्वती पत्रिका के सहायक संपादक रहे अनुपम परिहार के अनुसार सुमित्रानंदन पंत ज्योतिष के अच्छे जानकार थे। उन्होंने अपनी मृत्यु की गणना स्वयं कर ली थीसदी के महानायक बिग बी का नाम अमिताभ बच्‍चन किसी और ने नहीं, बल्कि छायावादी कवि सुमिनंदन पंत ने दिया था। बिग बी ने ये बातें खुद केबीसी होस्‍ट करने के दौरान अपने निजी जीवन की बातें साझा करते हुए कही थीं। आज सुमिनंदन पंत की पुण्‍यतिथि है। उत्‍तराखंड, अल्‍मोड़ा जिले के कौसानी में जन्‍मे पंत ऐसे कवियों में गिने जाते हैं, जिनका प्रकृति चित्रण समकालीन कवियों में सबसे बेहतरीन है। पद्मभूषण, ज्ञानपीठ पुरस्कार और साहित्य अकादमी जैसे पुरस्कारों से सम्‍मनित पंत की स्‍मृतियों को कौसानी स्थित पैतृक आवास पंत वीथिका में संजो कर रखा गया है। बता दें कि पंत के पुश्तैनी मकान में पंत वीथिका की स्थापना की गई है। यहां उनकी साहित्यिक कृतियां, वस्त्र, चश्‍मा, चिट्ठि‍यां और उनसे जुड़ीं अन्य वस्तुएं रखी गई हैं। इन पत्रों में प्रख्यात कवि हरिवंशराय बच्चन के भी कई पत्र हैं। नवजात अवस्‍था में ही मां का निधन हो जाने के कारण पंत को दादी ने ही पाला पोसा। नाम रखा गया गुसाईं दत्त। प्रारंभिक शिक्षा कौसानी गांव के स्कूल में हुई, फिर वह वाराणसी चले गए वहीं से हाईस्‍कूल किया। इलाहाबाद से 12वीं और उच्‍च शिक्षा ग्रहण की। पिता गंगादत्त कौसानी चाय बग़ीचे के मैनेजर थे। उनके भाई संस्कृत व अंग्रेज़ी के अच्छे जानकार थे, जो हिन्दी व कुमाँऊनी में कविताएं भी लिखा करते थे। अल्मोड़ा के नैसर्गि सौदर्य का वहां के शांत समाज ने पंत को काफी प्रभावित किया। जिसका असर उनकी रचनाओं में साफ नजर आता है। सुमित्रानंदन पंत को अभावों वाला जीवन सताता था। सुखी व संपन्न जीवन पाने के लिए उन्‍होंने अपना नाम गोसांई दत्त पंत से बदलकर सुमित्रानंदन पंत रख लिया था। इसका खुलासा उन्होंने 1974 में आकाशवाणी के बाल संघ कार्यक्रम में यश मालवीय को दिए एक साक्षात्कार में किया था। उन्‍होंने कहा था कि गोसांई में मुझे गोस्वामी तुलसीदास की झलक दिखती थी। तुलसीदास अद्भुत विद्वान थे, लेकिन उनका जीवन अभावों में बीता था। कहीं नाम में समानता के कारण मुझे भी तुलसीदास जी की तरह दिक्कतें न झेलनी पड़े, इसलिए नाम बदल लिया। प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत ने प्रकृति के सारे रूपों को अपने काव्य में उकेरा है। प्रकृति का जैसा चित्रण उनके काव्य में मिलता है, वैसा अन्यत्र दुर्लभ है। सात साल की आयु में ही उन्हें काव्य पाठ पर पुरस्कार मिला था। उनकी रचनाएं कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल, सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोड़ा समेत विभिन्न विश्वविद्यालयों के बीए, एमए (हिंदी) के अलावा स्कूली पाठ्यक्रमों में पढ़ाई जाती हैं। सुमित्रानंदन पंत ने छायावाद, प्रगतिवाद और नव चेतनावाद की तीन प्रमुख धाराओं के अंतर्गत साहित्यिक रचनाएं लिखीं। 1960 में कला और बूढ़ा चांद की रचना में उन्हें साहित्य अकादमी और 1969 में चिदंबरा पर भारतीय ज्ञान पीठ पुरस्कार मिला। उन्होंने आजीवन विवाह नहीं किया। 28 दिसंबर 1977 को इलाहाबाद में उनका निधन हो गया। सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोड़ा के हिंदी विभागाध्यक्ष और वरिष्ठ साहित्यकार का कहना है कि सुमित्रानंदन पंत के काव्य में प्रकृति के सारे रूप देखने को मिलते हैं। उनकी रचनाएं आज भी प्रासंगिक हैं। साहित्य जगत में उन्हें छायावाद का आधार स्तंभ माना जाता है।वीथिका में सुरक्षित रखी हैं पंत के कविता संग्रह की पांडुलिपियां अल्मोड़ा। राजकीय संग्रहालय अल्मोड़ा के अधीन कौसानी में उनके पैतृक घर पर सुमित्रानंदन पंत वीथिका स्थापित की गई। वीथिका में कविवर पंत को मिले सम्मान पत्र, उनकी जन्म कुंडली, उनके जीवन से जुड़े छाया चित्र, उनके द्वारा प्रयोग की गई कुर्सी, मेज, चश्मा, अटैची, चादर आदि सामान रखा गया है। साथ ही उनको मिले ज्ञानपीठ पुरस्कार का प्रशस्ति पत्र, हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा मिला साहित्य वाचस्पति का प्रशस्ति पत्र भी यहां मौजूद है। कविवर पंत की रचनाएं लोकायतन, आस्था आदि कविता संग्रह की पांडुलिपियां भी सुरक्षित रखी हैं। सुमित्रानंदन पंत से जुड़े दो तथ्यों से बहुत कम लोग वाकिफ हैं। एक, भारत में जब टेलीविजन प्रसारण शुरू हुआ तो उसका भारतीय नामकरण दूरदर्शन पंत जी ने किया था। दूसरा, सदी के महानायक अमिताभ बच्चन का नामकरण भी उन्होंने किया था। हरिवंश राय बच्चन उनके सबसे करीबी और अच्छे दोस्तों में शुमार थे। अमिताभ आज भी सुमित्रानंदन पंत को पिता तुल्य मानते हैं। एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि पंत की एक-एक काव्य पंक्ति उन्होंने पढ़ी है और कभी-कभी वह उन्हें अपने पिता (बच्चन जी) से बड़े कवि लगते हैं।पंत 1955 से 1962 तक प्रयाग स्थित आकाशवाणी केंद्र के मुख्य कार्यक्रम निर्माता और परामर्शदाता रहे। उनकी कविता ने नारी चेतना और उसके सामाजिक पक्ष के साथ-साथ ग्रामीण जीवन के कष्टों और विसंगतियों को भी बखूबी जाहिर किया है। पल्लव, ग्रंथि, ग्राम्या, स्वर्ण किरण, स्वर्ण धूलि, कला और बूढ़ा चांद, सत्यकाम, गुंजन, चिदंबरा, उच्छ्वास, लोकायतन, वीणा आदि उनकी प्रमुख कृतियां हैं। साहित्य में विशिष्ट योगदान के लिए सुमित्रानंदन पंत को पद्मभूषण, भारतीय ज्ञानपीठ और सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कारों से नवाजा गया। छायावादी दौर के इस महत्वपूर्ण स्तंभ का जिस्मानी अंत 28 दिसंबर, 1977 को घातक दिल के दौरे से हुआ। तब अंग्रेजी-हिंदी के तमाम बड़े अखबारों ने उनके अवसान पर संपादकीय लिखे थे। डॉ हरिवंश राय बच्चन का कथन था कि सुमित्रानंदन पंत की मृत्यु से छायावाद के एक युग का अंत हो गया है।