कुटीर उद्योगों से उत्तराखंड को आत्मनिर्भर बनाने की शुरुआत हो सकती है। 

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कुटीर उद्योगों से उत्तराखंड को आत्मनिर्भर बनाने की शुरुआत हो सकती है। 

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

दून विश्वविद्यालय, देहरादून, उत्तराखंड

प्राकृतिक रूप से सांस लेने की विविधता में प्रकृति खुद को अभिव्यक्त करती है, जो कि सड़कों, ब्रुकों और नदियों के प्रवाह, ब्रुकों और नदियों से भरे हुए वनस्पतियों के साथ विचित्र रूप से सजे हुए हैं, जो बड़े पैमाने पर भयानक चट्टानी चट्टानों और पहाड़ों से धीरेधीरे बाएं बर्फछिपी चोटियों में डुबोए जाते हैं। व्यापक रूप से भिन्न जलवायु और स्थलाकृति वनस्पति की एक विस्तृत श्रेणी का उत्पादन करती है और जंगली जीवन की विविध प्रजातियों के निवास के रूप में सेवा करती है। जंगल के परिवेश में वनों पर कब्जा करने वाले क्षेत्र के विशाल भाग के लिए केवल वनों पर कब्जा है बल्कि विभिन्न प्रकार के वनस्पतियों की समृद्धि के लिए भी वनों का गौरव है। जिले के कुल क्षेत्रफल का 88 प्रतिशत हिस्सा वन विभाग द्वारा प्रशासित है। पाइन के जंगलों में 900-2000 मीटर की ऊंचाई, 2000-3000 मीटर के बीच देवदार वन, 3000 मीटर से अधिक फिक्स और स्प्रूस जंगलों और 4000 मीटर की ऊंचाई तक खार्सू, बिर्च और ज्यूनिपर्स के जंगलों के बीच पाए जाते हैं। प्राथमिकी और स्प्रूस वन क्षेत्र के ऊपर, अल्पाइन चरागाह पूरे जिले में समुद्र तल से 3500 मीटर की ऊंचाई के साथ 4877 मीटर के बीच पाए जाते हैं। घास, झाड़ियों और जड़ीबूटियों की समृद्ध प्रजातियां जूनसितंबर के दौरान आती हैं जबकि शेष वर्ष के दौरान इन क्षेत्रों में बर्फ से ढंका रहता है। बड़े वाणिज्यिक मूल्यों के औषधीय पौधों की एक बड़ी संख्या जंगलों में अनायास पैदा होती है। इनमें से कुछ घाटियों में बढ़ते हैं, कुछ उपभौगोलिक इलाकों में होते हैं जबकि कुछ अन्य ऊंचे इलाकों पर होते हैं। वानिकी भी जिले की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह व्यक्तियों को वनों के संरक्षण और प्रचार के साथसाथ उनके शोषण में भी रोजगार देता है। जड़ी बूटी सबसे महत्वपूर्ण छोटे जंगल उपज हैं। जड़ी बूटियों की एक विशाल विविधता जंगली हो जाती है अर्थव्यवस्था में कुटीर और ग्राम उद्योग महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सबसे महत्वपूर्ण कुटीर उद्योग ऊन और ऊनी वस्तुओं का उत्पादन होता है। बड़ी संख्या में भेड़ पालन की  जाती है और उद्योग 1525 मीटर और 2440 मीटर के बीच ऊंचाई पर विकसित हुआ है। कालीन (नामदास), ट्वीड, कंबल इत्यादि का उत्पादन किया जाता है। अन्य कुटीर उद्योग टोकरी बनाने, चटाई बुनाई और लकड़ी के शिल्प हैं। जंगल के भीतर जंगल और बागवानी आधारित उद्योगों का पता लगाने से जंगल और बागवानी की क्षमता का बेहतर इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे परिवहन लागत को उत्पादों की बिक्री मूल्य के अनुपात के रूप में लाया जाएगा, जिससे उन्हें बाजार में प्रतिस्पर्धी बना दिया जाएगा। पर्यटन उद्योग के विकास की जबरदस्त संभावनाएं हैं। भूभाग के कुछ दुर्लभ पैदा करता है, जो भयानक आवाज और श्वास के बीच काफ़ी सुंदर परिदृश्य है जो खूबसूरत परिदृश्य है, जो युग से आकर्षक और चुनौतीपूर्ण है। धार्मिक स्थानों का स्थान पारम्परिक और प्रकृति के प्रेमियों से परे है, जो आम आदमी को धार्मिक तृप्ति के लिए भीड़ देता है। आर्थिक क्षेत्र में भारत को एक नया मॉडल अपनाने की आवश्यकता है उत्तराखंड का प्राचीन हस्तशिल्प कालीन उद्योग तकनीकी युग में धीरेधीरे सिमट रहा है।जबकि किसी जमाने में दूरदराज के पर्वतीय जिले कभी इसी उद्योग से फल फूल रहे थे। लेकिन अब युवा पीढ़ी की इस पारंपरिक हस्तशिल्प से दूरी बना कर पलायन मजबूर बन गई है।आजीविका के तौर पर युवा पीढ़ी इस पुस्तैनी कारोबार को अपनाना नहीं चाहती है। रोजगार के अन्य विकल्प तलाशने के लिए पलायन कर रहे हैं। पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार भी युवाओं ने रोजगार के लिए पलायन किया है। यदि सरकार इस परंपरागत उद्योग को आधुनिक स्वरूप दे तो युवाओं के लिए रोजगार का बड़ा साधन बन सकता है कोविड-19 के कारण उत्तराखण्ड वापस लौटे लोगों को स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के उद्देश्य से शुरू की गई है. इससे कुशल और अकुशल दस्तकार, हस्तशिल्पि और बेरोजगार युवा खुद के व्यवसाय के लिए प्रोत्साहित होंगे. राष्ट्रीयकृत बैंकों, अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों और सहकारी बैंकों के माध्यम से ऋण सुविधा उपलब्ध कराई जाएगीराज्य सरकार द्वारा रिवर्स पलायन के लिए किए जा रहे प्रयासों में योजना महत्वपूर्ण सिद्ध होगी। बेरोजगार युवा मिल्क प्रोसेसिंग, बटर, चीज अन्य डेयरी उत्पाद में भाग्य आजमा सकते हैं। मुर्गी पालन, होटल, अवकाश कालीन खेल तथा रोप वे में उद्यम चालू किया जा सकता है। होटल मैनेजमेंट, कैटरिंग एंड फूड क्रॉफ्ट, डाइंग प्लांट, गैर परंपरागत ऊर्जा उत्पादन आदि सेक्टरों में स्वरोजगार की शुरुआत की जा सकती है। इसमें निवेश प्रोत्साहन योजना तथा ब्याज उपादान योजना शामिल है। स्टांप शुल्क में भी छूट है। विद्युत बिलों की भी प्रति पूर्ति हो सकती है।  उत्तराखंड के जिस, वह सागसब्जी की आवश्यकता के मामले में आत्मनिर्भर जाता तो इससे बेरोजगार युवा स्वरोजगार के साथसाथ दूसरों को भी रोजगार देने वाले बन सकते हैं। रोजगार को शुरू करने के लिए बहुत कम पूंजी लगाकर अधिकतम फायदा उठाया जा सकता है। तो यह सरकारों और हमारे योजनाकारों के लिए नजीर तो बनेगी ही बल्कि पहाड़ वासियों के लिए वरदार भी साबित होगी।