गांवों में नहीं आते मोबाइल इंटरनेट के सिग्नल, कैसे होगी ऑनलाइन पढ़ाई?
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
अधिकांश पर्वतीय इलाकों में प्रदेश में लगभग 2 लाख 65 हजार विद्यार्थियों को पठन पाठन हेतु राज्य सरकार द्वारा निःशुल्क टैबलेट खरीद हेतु प्रति विद्यार्थी को डीबीटी के माध्यम से 12 हजार रूपये की धनराशि उपलब्ध कराई जा रही है। इसी क्रम में टैबलेट खरीद हेतु राजकीय स्कूलों के 10वीं, 12वीं के 1 लाख 59 हजार विद्यार्थियों को डीबीटी द्वारा धनराशि दी गई है।उत्तराखंड सरकार बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई के लिए टैबलेट वितरण कर रही है, पर उत्तराखंड के 426 गांवों में आज भी मोबाइल इंटरनेट कनेक्टिविटी उपलब्ध नहीं है। लोकसभा में एक सवाल के जवाब में यह तथ्य रखा गया था। स्थिति यह है कि मोबाइल कनेक्टिविटी के मामले में उत्तराखंड उत्तर भारत में सबसे पिछड़ा हुआ राज्य है।उक्त रिपोर्ट के मुताबिक, जिस वेस्ट यूपी सर्किल में पूरा उत्तराखंड शामिल है, उसमें इंटरनेट की स्पीड बाकी सर्किलों के मुकाबले काफी कम है। ऐसे में बिना कनेक्टिविटी के इन गांवों के बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई कैसे कर पाएंगे, यह बड़ा सवाल है। यही कारण रहा कि लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन कक्षाओं में हाजिरी 30 प्रतिशत भी पूरी नहीं हो पाई।उत्तराखंड के अधिकांश पर्वतीय इलाकों में मोबाइल इंटरनेट की स्थिति बेहद खराब है। पड़ोसी राज्यों से तुलना की जाए तो हिमाचल और उत्तर प्रदेश की स्थिति बेहतर है। वहीं जम्मू कश्मीर में मात्र 154 ही ऐसे गांव हैं, जो मोबाइल कनेक्टिविटी से छूटे हुए हैं। वहीं इंटरनेट की अच्छी स्पीड भी नहीं मिलना उत्तराखंड में एक बड़ा सवाल है।कनेक्टविटी और इंटरनेट की पहुंच काफी अच्छी है, पर पहाड़ी क्षेत्रों में मोबाइल इंटरनेट आज भी एक चुनौती है। कोविड के समय भी इंटरनेट कनेक्टिविटी ऑनलाइन पढ़ाई के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हुई है। हालांकि देश के उत्तर पूर्वी राज्यों में मोबाइल और इंटरनेट कनेक्टिविटी की स्थिति सबसे ज्यादा खराब है। पर्वतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश में चार हजार से अधिक गांवों में मोबाइल सिग्नल नहीं आते।उत्तराखंड के कई विश्वविद्यालय कैंपस और कॉलेजों तक में विद्यार्थियों को वाईफाई की सुविधा नहीं मिल रही है। चुनावों में विद्यार्थियों से जुड़ा यह मुद्दा काफी अहम रहा है, पर अब भी अधिकांश कॉलेज कैंपस में फ्री वाईफाई जैसी सुविधा उपलब्ध नहीं है। पर्वतीय इलाकों में यह विद्यार्थियों के लिए एक बड़ी समस्या है। इसके अलावा ऑनलाइन पढ़ाई के अनुरूप कोर्स भी यहां उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे में ऑनलाइन पढ़ाई अब भी एक चुनौती बनी हुई है।दुनिया में तमाम ऐसे देश हैं जो कठिन भौगोलिक इलाकों तक में इंटरनेट सेवा पहुंचा रहे हैं पर उत्तराखंड में इसे लेकर अब भी समस्या बनी है। दरअसल, प्राइवेट कंपनियां मुनाफे वाले इलाकों पर अधिक फोकस रखती हैं, जबकि सरकारी कंपनी पूरी क्षमता से 4जी सेवा नहीं दे पा रही हैं। सरकार ने इंटरनेट पहुंचाने के लिए कई प्रयास किए हैं, जिससे भविष्य में कवरेज एरिया बढ़ने की उम्मीद है। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में शिक्षा के गुणात्मक सुधार के लिए राज्य सरकार द्वारा हर संभव प्रयास किये जा रहे हैं। डिजिटल लर्निंग के अन्तर्गत राज्य के 500 स्कूलों में वर्चुअल कक्षाएं चलाई जा रही हैं। 600 अन्य स्कूलों में भी शीघ्र ये सेवाएं शुरू की जायेंगी। राज्य के 709 राजकीय विद्यालयों में 1418 स्मार्ट कक्षाएं स्थापित की जा रही हैं, यह कार्य 15 जनवरी 2022 तक पूर्ण कर लिया जायेगा। राज्य सरकार की ओर से सभी राजकीय विद्यालयों में कक्षा 09 से 12 तक के विद्यार्थियों के लिए निःशुल्क पाठ्य पुस्तक उपलब्ध कराने का निर्णय लिया गया है। राजकीय स्कूलों में कक्षा 01 से 08 तक के विद्यार्थियों के लिए भी निःशुल्क बैग एवं जूते उपलब्ध कराये जा रहे हैं। डिजिटल इंडिया, जहां पर एक तरफ पूरा देश 5G की तैयारियों में लगा हुआ, वहीं दूसरी तरफ उत्तराखंड के सीमांत जिले पिथौरागढ़ में आज भी कुछ गांव ऐसे हैं, जो दशकों से संचार सेवा के लिए गुहार लगा रहे हैं.आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर जहां पूरा देश ‘अमृत महोत्सव’ मना रहा है, वही उत्तराखंड के दूरस्थ इलाके अभी भी सड़क, शिक्षा और संचार जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं.इस वजह से इन इलाकों में रहने वालों की जिंदगी अभी भी गुलामी के दौर में रहने जैसी बनी हुई है, जिन्हें नेटवर्क क्षेत्र में आने के लिए 10 किलोमीटर की पैदल दूरी तय करनी पड़ती है, तब जाकर वह अपनी आपातकालीन सूचनाएं दूसरों तक पहुंचा सकते हैं.कोरोना काल में जहां पूरे देश में ऑनलाइन शिक्षा की व्यवस्था की गई, तो वहीं पिथौरागढ़ के मुनस्यारी के दूरस्थ इलाकों में जहां पर संचार सेवा ही नहीं है, जिस कारण यहां पर छात्रों की ऑनलाइन पढ़ाई पर पूरी तरीके से अंकुश लगा है, जिससे छात्रों के भविष्य पर गंभीर असर भी पड़ रहा है और कहीं न कहीं शिक्षा के अधिकार से छात्र वंचित हो रहे हैं. प्राइवेट कंपनियां मुनाफे वाले इलाकों पर अधिक फोकस रखती हैं, जबकि सरकारी कंपनी पूरी क्षमता से 4जी सेवा नहीं दे पा रही हैं। सरकार ने इंटरनेट पहुंचाने के लिए कई प्रयास किए हैं, जिससे भविष्य में कवरेज एरिया बढ़ने की उम्मीद है।