जोशीमठ क्षेत्र मे हो रहा बहुत भू धसाव. मकानों मे पड़ रही दरारे
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
आध्यात्मिक और पर्यटन नगरी जोशीमठ में जगह-जगह आवासीय भवनों पर दरारें पड़ रही हैं। सामान्य मौसम में भी यहां भू-धंसाव हो रहा है। जोशीमठ के गांधी नगर मोहल्ले में कई भवनों में पड़ी दरारों का दायरा बढ़ रहा है। नृसिंह मंदिर परिसर में भी कई जगहों पर जमीन बैठ गई है।भू-वैज्ञानिकों का कहना है कि जोशीमठ नगर पुराने रॉक स्लाइड (भूस्खलन क्षेत्र) पर बसा है। डिप स्लोप होने के कारण अलकनंदा से भू-कटाव हो रहा है, जिससे धीरे-धीरे भूमि खिसक रही है। जोशीमठ नगर क्षेत्र का भूसर्वेक्षण करने के साथ ही यहां निर्माण कार्यों को कम से कम कर पानी के ड्रेनेज के प्रबंधन पर विशेष जोर दिए जाने की आवश्यकता है।जोशीमठ नगर की वर्तमान में जनसंख्या लगभग 25000 है। पिछले कुछ महिनों से नगर में कई आवासीय मकानों और सड़कों में दरारें पड़नी शुरू हुई, जो दिनों दिन मोटी होती जा रही हैं। पेट्रोल पंप से लेकर ग्रेफ कैंप तक जगह-जगह बदरीनाथ हाईवे पर भी भू-धंसाव हो रहा है। जिसे देखते हुए स्थानीय लोगों के साथ ही पैनखंडा संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने तहसील प्रशासन से शीघ्र नगर का भूगर्भीय सर्वेक्षण कर सुरक्षा के इंतजाम करने की मांग की, लेकिन आज तक भी इस ओर कोई कार्रवाई शुरू नहीं हो पाई है। पिछले चार सालों से जोशीमठ क्षेत्र में बदरीनाथ हाईवे पर भू-सर्वेक्षण का कार्य करने वाले भू वैज्ञानिक का कहना है कि जोशीमठ नगर क्षेत्र पुराने रॉक स्लाइड पर बसा हुआ है। यहां पेट्रोल पंप, नृसिंह मंदिर और ग्रेफ कैंप के निचले हिस्से में रुके बड़े-बड़े बोल्डर इसका प्रमाण हैं। इसी भूस्खलन से गौरसों बुग्याल से लेकर अलकनंदा तक जोशीमठ का डिप स्लोप है। अलकनंदा से भू कटाव होने के कारण जोशीमठ में भूमि के अंदर हलचल पैदा हो रही है। जोशीमठ के भूगर्भीय सर्वेक्षण के बाद ट्रीटमेंट होना बेहद जरूरीहै।जोशीमठ नगर के भूगर्भीय सर्वेक्षण के लिए जिला प्रशासन को लिखा गया है। समस्या की गंभीरता को देखते हुए रिमाइंडर भी भेजा गया है। संभवत: नगर का भूगर्भीय सर्वेक्षण कराया जाएगा। रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी। जोशीमठ नगर में पानी की निकासी के लिए मजबूत ड्रेनेज सिस्टम हो। संपूर्ण नगर क्षेत्र को सीवरेज से कवर किया जाए, जिससे पानी भूमि के अंदर न जा सके। आवासीय भवनों से निकलने वाले पानी की निकासी का भी उचित प्रबंधन हो। नए बहुमंजिला भवनों की अनुमति न दी जाए, जिससे भूमि पर अधिक दबाव न पड़ सके।रीवर साइड पौधरोपण किया जाना चाहिए, जिससे भू कटाव पर प्रभावी रोक लग सके। उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित जोशीमठ अध्यात्म की दृष्टि से एक पवित्र शहर माना जाता है जो उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है। समुद्र स्तर से 6000 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह शहर बर्फ से ढकी हिमालय पर्वतमालाओं से घिरा हुआ है। यह स्थल हिंदू धर्म के लोगों के लिए प्रतिष्ठित जगह है और यहां कई मंदिर भी स्थापित हैं। जोशीमठ, आदि शंकराचार्य द्वारा 8 वीं सदी में स्थापित किए जाने वाले चार मठों में से एक है, लेकिन आज इस पर्यटन नगरी में जगह–जगह आवासीय भवनों पर दरारें पड़ रही हैं। सामान्य मौसम में भी यहां ज़मीन धंस रही है। जोशीमठ के गांधी नगर मोहल्ले में कई भवनों में पड़ी दरारेँ प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। नृसिंह मंदिर परिसर में कई जगह से ज़मीन धंस चुकी है लेकिन जिला प्रशासन इस ओर कोई ध्यान नही दे रहा है। तिब्बत (चीन) सीमा क्षेत्र का यह अंतिम नगर क्षेत्र है। नगर के अधिकांश क्षेत्र में सेना और आईटीबीपी के कैंप स्थित हैं। जोशीमठ से ही पर्यटन स्थल औली के लिए रोपवे और सड़क मार्ग है।सर्दियों में बद्रीनाथ की गद्दी यहीं विराजित होती है और पूजा होती है। पहले इस जगह को ज्योतिषीमठ के नाम से जाना जाता था, समय के साथ इसे जोशीमठ कहा जाने लगा। भारत–चीन सीमा से लगे होने के कारण सामरिक दृष्टिकोण से भी जोशीमठ नगर सुरक्षा की दृष्टिकोण से संवेदनशील है, लेकिन वर्तमान मान समय में गांधीनगर के साथ कई जगहों पर लगातार भू–धंसाव होने से नगर के कई घरों में दरार पड़ रही है.स्थानीय ने कहा कि जोशीमठ क्षेत्र में कई विद्यृत परियोजनाएं भी निर्मित है और कई निर्माणाधीन है. सके अनियोजित निर्माण कार्य के कारण जोशीमठ नगर खतरे में आ गया है. शासन प्रशासन को इस मामले पर संवेदनशील होने की जरूरत है. शीघ्रातिशीघ्र नगर का भूगर्भीय सर्वे करवाना चाहिए और इसके स्थायी समाधान के लिए कार्य योजना तैयारी की जानी चाहिए. समय रहते भू–धंसाव की चपेट में आ रहे परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर विस्थापित की प्रक्रिया की जानी चाहिए. सीमान्त जिला चमोली के जोशीमठ में भूस्खलन, भूकम्प, भूमि धंसाव, बादल फटने व अतिवृष्टि से लगभग तीन दर्जन से अधिक गावों में सैकड़ों परिवार हर रोज खतरे के साए में जीने को मजबूर हैं मुख्यालय के सेमा ग्रामीण क्षेत्र में फिर भू-धंसाव हो रहा है। इसके चलते गांव पूरी तरह खाली हो चुका है। ग्रामीणों की सैकडों नाली कृषि भूमि पूरी तरह खत्म हो रही है। वर्ष-2013 में जोशीमठ नगर के सेमा ग्रामीण क्षेत्र में भू-धंसाव के कारण 15 परिवारों के आवासीय भवन क्षतिग्रस्त हो गए थे।वहीं, स्कूली बच्चे भी जान जोखिम में डालकर इन खतरनाक रास्तों से गुजरने को मजबूर हैं. वहीँ दूसरी तरफ लोक निर्माण विभाग जोशीमठ, नगरपालिका जोशीमठ के अधिकारियों की कार्यशैली का आलम यह है कि दोनों विभाग आपस में तालमेल नहीं बना पा रहे हैं, जिसकी वजह से समस्याएं और बढ़ गई हैं. और विभागों की लापरवाही का खामियाजा स्थानीय ग्रामीणों को भुगतना पड़ रहा है. “भूस्खलन के प्रति संवेदनशील इलाकों में ढलानों पर बिखरे शिलाखंडों को हटाना, रॉक बोल्टिंग के जरिये चट्टानों को स्थिर करने, वायर नेटिंग और चट्टानों को रोकने लिए अवरोधकों का निर्माण कारगार हो सकता है। हालांकि, भूस्खलन के प्रति संवेदनशील क्षेत्र में सुरक्षा उपायों को अमल में लाने से पहले विस्तृत पड़ताल और उसी के अनुसार उपयुक्त इंजीनियरिंग डिजाइन का चयन करना चाहिए।