उत्तराखंड में क्षेत्रीय दलों की सियासत क्यों नहीं चढ़ सकी परवान?

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उत्तराखंड में क्षेत्रीय दलों की सियासत क्यों नहीं चढ़ सकी परवान?

 डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

उत्तराखंड राज्य के निर्माण के लिए सबसे पहले आवाज उठाने वाले क्षेत्रीय दल उत्तराखंड क्रांति दल को राज्य की जनता ने पूरी तरह से खारिज कर दिया है और यह दल अपनी राजनीतिक जमीन खोता जा रहा है। एक जमाने में उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में इसकी तूती बोलती थी। उत्तराखंड राज्य निर्माण के लिए 1994 में उत्तराखंड क्रांति दल ने जबरदस्त आंदोलन छेड़ा था। इसकी वजह से उत्तराखंड राज्य 9 नवंबर 2000 में अस्तित्व में आया परंतु इसके बनने के बाद जनता ने इस राजनीतिक दल को 2002 के पहले विधानसभा चुनाव में आईना दिखा दिया था। उत्तराखंड क्रांति दल का गठनउत्तराखंड में कुमाऊं विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. डीडी पंत ने 26 जुलाई 1979 को जब उत्तराखंड क्रांति दल (यूकेडी) की स्थापना की थी. इसकी के बाद से वो उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र के जनसरोकारों के लिए अलग राज्य की लड़ाई के लिए आंदोलन किया. उत्तराखंड बनने के लिए लंबा संघर्ष रहा है, जिसका नतीजा साल 2000 में अटल सरकार में पूरा हुआ. यूपी से 13 पहाड़ी जिलों को काटकर उत्तराखंड बना.उत्तराखंड क्रांति दल के अध्यक्ष डॉ. डीडी पंत ने डीडीहाट विधानसभा सीट से 1985 से 1996 तक तीन बार विधायक चुने गए. इसके बाद उत्तराखंड राज्य गठन के बाद 2002 में फिर विधानसभा पहुंचे और उनकी पार्टी के कुल चार विधायक जीतकर आए थे. इसके बाद से उत्तराखंड क्रांति दल का सियासी ग्राफ गिरना शुरू हुआ तो फिर दोबारा से नहीं ऊपर सका. 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी का खाता भी नहीं खुल सका. क्षेत्रीय दल भी नहीं बन पाया विकल्पभाजपा और कांग्रेस के दबदबे और उत्तराखंड क्रांति दल की आपसी लड़ाई के चलते राज्य में उत्तराखंड रक्षा मोर्चा का उदय हुआ. इसके अलावा उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी, उत्तराखंड जनवादी पार्टी ने चुनाव में भाग्य अजमाया. उत्तराखंड क्रांति दल के विकल्प के रूप में अपने आपको स्थापित करने के लिए उत्तराखंड रक्षा मोर्चा ने भी चुनाव में ताल भी ठोकी. इसके बाद भी दोनों ही पार्टियों को जनता ने दरकिनार कर दिया. उत्तराखंड क्रांति के शीर्ष नेता पूर्व सांसद टीपीएस ने पार्टी को आम आदमी पार्टी में विलय कर दिया को पार्टी दो हिस्सा में बंट गई. उत्तराखंड बनने के हुए विधानसभा चुनाव में क्षेत्रीय दल के तौर पर बसपा और सपा ने किस्मत आजमाई. सपा तो कई असर तो नहीं दिखा सकी, लेकिन बसपा हर चुनाव में सीट जीतती रही है. 2002 चुनाव में बसपा सात सीटें जीतकर शानदार प्रदर्शन किया, लेकिन चुनाव दर दर चुनाव पार्टी का सियासी गिरता गया. बीजेपी और कांग्रेस की सियासी चालों के आगे बसपा का हाथी हांफने लगा हालांकि बसपा का प्रदर्शन हरिद्वार जिले तक सीमित रहा. 2017 विधानसभा चुनाव में बसपा खाता तक नहीं खोल पाई. इस बार बसपा फिर से सक्रिय है तो आम आदमी पार्टी भी किस्मत आजमा रही है. ऐसे में देखना है कि 2022 के चुनाव में क्या सियासी गुल क्षेत्रीय पार्टियां खिला पाती है? उत्तराखंड को बने पिछले दो दशक से ज्यादा का समय हो चुके हैं, लेकिन सत्ता पर इन दोनों राष्ट्रीय पार्टियां बारी-बारी से काबिज होती रही हैं. ऐसे में प्रदेश के क्षेत्रीय सरोकारों की राजनीति करने वाली क्षेत्रीय पार्टियां सियासी परवान नहीं चढ़ सकीं. उत्तराखंड के लिए आंदोलन की अगुवाई करने वाली उत्तराखंड क्रांति दल से बहुत उम्मीदें थीं, लेकिन वो सत्ता की दहलीज तक भी नहीं पहुंच सकी हैं.दल के केंद्रीय अध्यक्ष ने कहा कि पार्टी राज्य की 70 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करेगी। उन्होंने पार्टी का चुनावी घोषणा पत्र भी जारी किया। इस तरह उत्तराखंड क्रांति दल राज्य का पहला ऐसा दल है जिसने सबसे पहले अपना घोषणा पत्र जारी किया है। अध्यक्ष ने कहा कि राजधानी का सवाल उत्तराखंड क्रांति दल के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण है और वह गैरसैंण को पहाड़ की आत्मा मानता है।ऐसे में हमारा शुरू से ही मानना है कि गैरसैंण राजधानी एक जगह का नाम नहीं है, क्योंकि यह पहाड़ में विकास के विकेंद्रीकरण का दर्शन भी है। गैरसैंण को उत्तराखंड की स्थायी राजधानी बनाने राज्य के पर्वतीय क्षेत्र की जनता के सपने को कांग्रेस और भाजपा दोनों ने मिलकर चकनाचूर किया है और दोनों दलों ने राज्य की जनता ने छल किया है। उत्तराखंड क्रांति दल गैरसैण के मुद्दे के साथ साथ चुनाव मैदान में शिक्षा और स्वास्थ्य के मुद्दे को भी लेकर जनता के बीच जाएगा। कोरोना महामारी के मद्देनजर 5 राज्यों में अपनी किस्मत आजमा रहीं राजनीतिक पार्टियों के लिए खुशखबरी आयी है। सरकारी संचार माध्यम दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो पर अब राजनीतिक पार्टियां दोगुना समय अपना प्रचार कर सकेंगी। आम चुनाव या किसी भी राज्य के विधानसभा चुनावों के दौरान राष्ट्रीय दलों और मान्यताप्राप्त क्षेत्रीय दलों को दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो पर अपनी पार्टी का पक्ष रखने का मौका मिलता है। इस साल गोवा, पंजाब, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड और मणिपुर में विधानसभा चुनाव हैं।उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर, पंजाब में दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो के प्रादेशिक केंद्रों पर राजनीतिक दलों को ये सुविधा मिलेगी। कुल 90 मिनट का समय निर्धारित किया गया है। इस डेढ़ घंटे के अलावा बाकी समय पार्टियों को पिछले विधानसभा चुनाव में उनके प्रदर्शन के आधार पर अतिरिक्त समय दिया गया है। एक बार में एक पार्टी ज्यादा से ज्यादा 30 मिनट अपना पक्ष या चुनावी घोषणा रख पाएगी। चुनाव आयोग की सलाह से प्रसार भारती ब्रॉडकास्ट/टेलीकास्ट का दिन तय करेगी। इसके अलावा पार्टियों को ट्रांसक्रिप्ट और रिकॉर्डिंग पहले से जमा करानी होगी। इस अतिरिक्त समय के अलावा दूरदर्शन और रेडियो पर चार पैनल डिस्कशन भी आयोजित किये जायेंगे। भारत में चुनाव के लिए यह अभूतपूर्व समय है जब पहली बार कोरोना वायरस हुए चुनाव प्रचार के लिए बड़ी रैलियों पर रोक लगा दी गई है आगामी समय में पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों से ज्यादा से ज्यादा डिजिटल माध्यमों से प्रचार करने का निर्देश दिया है हालांकि सभी राजनीतिक दलों पर बराबर संसाधन ना होने की वजह से यह मांग उठती रही कि चुनाव आयोग को उनके लिए ‘लेवल प्लेयिंग फील्ड’ तैयार करना चाहिए। इसी को देखते हुए प्रसार भारती से चर्चा करने के बाद चुनाव आयोग ने दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो पर राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के चुनाव प्रचार का समय दोगुना कर दिया है। दूरदर्शन पर राजनीतिक दलों के प्रचार की शुरुआत सबसे पहले 1998 के लोकसभा चुनाव में हुई थी। सरकार की योजनाओं और कार्यों का जिक्र करना नहीं भूलते। रेल और बिजली परियोजनाओं, राष्ट्रीय राजमार्गों, कोविड वैक्सीनेशन, चारधाम विकास परियोजना, सेवारत एवं पूर्व सैनिकों के कल्याण की केंद्रीय योजनाओं पर ज्यादा फोकस किया जा रहा है। इसके विपरीत उत्तराखंड के खासकर पर्वतीय जिलों के स्थानीय मुद्दों, जो पलायन, रोजगार, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, परिवहन, यातायात, कृषि से जुड़े हैं, पर कोई प्रभावी रोडमैप नहीं दिया जा रहा है। हर वर्ष आपदा से जूझने वाले उत्तराखंड के संवेदनशील गांवों में सुरक्षा प्रबंधन पर बात नहीं हो रही है। उत्तराखंड प्रदेश के एकमात्र क्षेत्रीय दल उत्तराखंड क्रांति दल रहा है। राज्य में पिछले 21 साल में भ्रष्टाचार बढ़ा है. राजनीतिक पार्टियां सिर्फ युवा को ही मुहरा बना रही हैं. इंडस्ट्री का हब हरिद्वार और उधमसिंह नगर बन रहा है. सरकारें सिर्फ युवाओं को मिस्यूज कर रही हैं. भ्रष्टाचार की ओर ये राज्य अग्रसर हो रहा है. जब उत्तराखंड राज्य बना था तब पार्टियामेंट में एक प्रस्ताव पास हुआ था. अभी उत्तराखंड में सिर्फ 5 लोकसभा सीटें हैं, जिससे हमें अहमियत नहीं मिलती है. जब हम यूपी से जुड़े थे तब सबसे लोकसभा सीटों वाला राज्य था, तब ज्यादा अहमियत थी. वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि इंफ्रास्ट्रक्चर पर हमारा पैसा खर्च हुआ है या सिर्फ कागजों पर हुआ है. उत्तराखंड में कृषि भूमि कम हो रही है और इस भूमि पर कंक्रीट के महल खड़े हो रहे हैं. सिंचाई और लघु सिंचाई को बढ़ाने के लिए करोड़ों रुपये सलाना खर्च हो रहा है. वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि अभी दो राष्ट्रीय दल जो सत्ता में रहे हैं उन्होंने आजतक यहां की मूल सुविधाओं पर ध्यान नहीं दिया है.वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि उत्तराखंड का पानी, यहां की जवानी काम नहीं आता है. यहां के युवा अपने रोजगार के लिए पलायन करने के लिए मजबूर हैं. क्षेत्रीय दल उत्तराखंड में न पनपना मैं एक विडंबना मानता हूं. क्षेत्रीय दलों का तंत्र बहुत बड़ा नहीं होता है. नए राज्यों के लिए क्षेत्रीय दलों की बहुत जरूरत है. क्षेत्रीय दलों ने बड़ी पार्टियों की कार्बन कॉपी बनने का प्रयास किया है, इसलिए क्षेत्रीय दल विलुप्त के कगार पर है. कभी सपना दिखाया गया कि हम इस प्रदेश को ऊर्जा प्रदेश तो कभी हर्बल प्रदेश बना देंगे, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. उत्तराखंड में 40 हजार मेगावाट बिजली उत्पादन करने की क्षमता है. इन क्षेत्रों में कुछ-कुछ काम हुआ है. 2001 में प्रथम विधानसभा चुनाव हुआ और सीएम बने. 2007 से 2012 के बीच नैनो ने अपना प्लांट उत्तराखंड में स्थापित करने की इच्छा जताई थी, लेकिन नैनो का प्लांट नहीं लग पाया.  इसके बाद 2017 का चुनाव उत्तराखंड की राजनीति में दो राष्ट्रीय दलों के अलावा अन्य की विदाई की घोषणा कर गया।