डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड में आए दिन हादसे होते रहते हैं। विषम भौगोलिक परिस्थितियों के कारण यहां अक्सर हादसे होते रहते हैं। भूस्खलनए हिमस्खलनए जल प्रलय से लेकर भीषण सड़क हादसे मानो नियति हो गए हैं। इन सब के बावजूद पहाड़ के वासी अन्य चुनौतियों से भी जूझते हैं। उत्तराखंड में जंगल में आग एक विकराल मौसमी समस्या है। यह कई प्रकार से प्रदेश के लिए घातक है। वनाग्नि से पर्यावरण प्रदूषणए जीव.जंतुओं की हानिए वनस्पतियों को नुकसानए कीमती लकड़िया का जलना इसके साथ ही कई बार यह आग आबादी में भी आ जाती हैए जिससे धन.जन हानि भी होती है।15 फरवरी से फायर सीजन के शुरू होते ही वनाग्नि की संभावित घटनाओं को लेकर वन विभाग की चिंताएं बढ़ गई हैं। इसी कारण महकमा वनाग्नि नियंत्रण को लेकर प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करते हुए अन्य तैयारियां भी कर रहा है। महकमे के अफसरों का कहना है कि इस बार पीरूल से रोजगार योजना वनाग्नि नियंत्रण के लिए बेहद सहायक साबित होगीए जिसके लिए नैनीताल वन प्रभाग व्यापक तैयारियों में जुटा हुआ है। सात रेंजों में इस योजना के प्रचार.प्रसार के साथ ही ग्रामीणों को इससे जोडऩे की कवायद भी की जा रही है। 71 फीसदी वन क्षेत्र वाले उत्तराखंड में अधिकांश हिस्सेदारी चीड़ के जंगलों की है। बसंत के बाद चीड़ की पत्तियां गिरती हैंए जो बेहद ही ज्वलनशील होती हैं। पहाड़ों पर अधिकांश वनाग्नि की घटनाएं इन्हीं पत्तियों यानि पीरूल के कारण होती हैंए मगर इस फायर सीजन में नैनीताल वन प्रभाग इस पीरूल को ग्रामीणों के रोजगार का साधन बनाने जा रहा है। डीएफओ ने बताया कि सरकार पीरूल से रोजगार योजना चला रही है। बीते वर्ष कोविड के कारण विभागीय स्तर पर योजना पर अधिक कार्य नहीं हो पाया थाए मगर इस वर्ष फायर सीजन में प्रभाग के सात रेंजों में इसका युद्धस्तर पर क्रियान्वयन कर नैनीताल वन प्रभाग को माडल बनाने की योजना है। बताया कि बीते वर्ष कैंपा मद से योजना के लिए चार लाख का बजट प्राप्त हुआ थाए जिसमें करीब 400 ट्रक पीरूल एकत्रित किया गया है। इस वर्ष एक करोड़ के बजट की मांग की गई है। डीएफओ ने बताया कि प्रभाग के सात रेंजों में रेंजर ग्रामीण महिला समूहों और युवक मंगल दलों से संपर्क साध रहे हैं। रेंज स्तर पर ग्रामीणों के साथ बैठक कर जन सहभागिता बढ़ाते हुए सीधे इस योजना से उनको जोड़ा जाएगा। एकत्रित होने वाले पीरूल के लिए छह रुपये प्रति किलो के भाव से ग्रामीणों को भुगतान किया जाएगा। इसमें तीन रुपया वन विभागए जबकि तीन रुपया अनुबंधित सेंचुरी पेंपर मिल देगा। बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं और युवाओं के लिए भी योजना से रोजगार उपलब्ध हो पायेगा। योजना के क्रियान्वयन में ग्रामीणों की सहभागिता बढ़ाने के लिए विभागीय स्तर पर माया उपाध्याय की आवाज में गीत भी रिकार्ड कराया गया हैए जिसमें वह वनाग्नि के लिए पीरूल की भयावहता और इसके रोजगार से ग्रामीणों को होने वाले फायदों के बारे में बता रही हैं। डीएफओ ने बताया कि जल्द वीडियो शूट कर गीत को लांच किया जाएगा।डीएफओ नैनीताल प्रभाग ने बताया कि वनाग्नि नियंत्रण के लिए पीरूल से रोजगार योजना बेहद लाभकर साबित होगी। इससे ग्रामीणों को जोडऩे से जंगलों में आग लगने की संभावना तो कम होगी हीए ग्रामीणों को रोजगार भी उपलब्ध हो पाएगा। सेंचुरी पेपर मिल ने पर्वतीय क्षेत्रों के लोगों को स्वरोजगार देने व जंगलों को आग से बचाने के लिए एक नए प्रोजक्ट की कार्ययोजना तैयार की है। जिसके तहत मिल द्वारा पर्वतीय क्षेत्रों के ग्रामीणों से पिरूल खरीदकर उसके ब्लाक बनाकर ईंधन के रूप में प्रयोग किया जाएगा। इस प्रोजक्ट के लिए मिल प्रबंधन पहले साल सीएसआर फंड के 50 लाख रुपए खर्च करेगी। पिरूल खरीदते समय उसका भुगतान तो किया जाएगा। जबकि उससे फायदा होने वाली धनराशी को भी उन्ही ग्रामीण क्षेत्रों में विकास कार्य में लगा दिया जाएगा। इस प्रोजक्ट से जहां ग्रामीण महिलाओं व पुरुषों को रोजगार मिलेगा वही पिरूल के कारण जंगलों में लगने वाली आग से जीव जंतु भी बचेंगे। जिसके लिए पहले वर्ष सीएसआर फंड से 50 लाख रुपए खर्च किए जाएंगे। उत्तराखण्ड के पर्वतीय अंचलों में चीड़ के जंगल बहुतायत में हैं और चीड़ से प्राप्त होने वाली पिरुल की कोई कमी नहीं है। पिरूल पहाड़ के जंगलों के लिए अभिशाप की तरह देखी जाती है। लेकिन सेंचुरी का यह प्रयोग सफल रहा तो पिरुल घास अब राज्य के लिए एक बरदान साबित होगी। सेंचुरी मिल की यह शानदार पहल स्थानीय रोजगार व आर्थिकी के विकास में सहायक होगी। खासतौर से पहाड़ के लोगों को इसका सीधा लाभ मिलेगा। पर्वतीय क्षेत्रों के लोगों को स्वरोजगार देने व जंगलों को आग से बचाने के लिए नए प्रोजक्ट की कार्ययोजना तैयार की है। इसके तहत मिल पर्वतीय क्षेत्रों से पिरूल खरीद उसके ब्लाक बनाकर ईधन के रूप में प्रयोग करेगा। इस प्रोजक्ट के लिए मिल प्रबंधन पहले साल सीएसआर फंड के 50 लाख रुपए खर्च करेगी जबकि ढाई करोड़ रुपए आसपास के क्षेत्रों में अन्य विकास कार्यो के लिए खर्च किया जाएगा। मंगलवार को सेंचुरी पेपर मिल के सीईओ जेपी नारायण ने मिल के कम्यूनिटी हाल में पत्रकारों से वार्ता करते हुए बताया कि पिछले दिनों उनकी मुलाकात सूबे के मुख्यमंत्री से हुई। इस दौरान पिरूल के माध्यम से पर्वतीय क्षेत्रों के लोगों को रोजगार देने व जंगलों को आग से बचाने के ड्रीम प्रोजक्ट बारे में लंबी चर्चा हुई। मिल प्रबंधन ने मुख्यमंत्री के ड्रीम प्रोजक्ट पर पूरी कार्य योजना तैयार कर ली है। मिल प्रबंधन पर्वतीय क्षेत्रों के ग्रामीणों से पिरूल खरीदकर उसके ब्लाक बनाएगी। जिसके बाद उन ब्लाकों को मिल में लाकर उसका इस्तेमाल ईंधन के रूप में करेगी। उन्होंने बताया कि पिरूल खरीदते समय उसका भुगतान किया जाएगा। साथ ही उससे फायदा होने वाली धनराशि को भी उन्हीं ग्रामीण क्षेत्रों के विकास कार्य में लगाया जाएगा। इस प्रोजक्ट से जहां ग्रामीण महिलाओं व पुरुषों को रोजगार मिलेगाए वहीं पिरूल के कारण जंगलों में लगने वाली आग से जीवजंतु भी बचेंगे। जिसके लिए पहले वर्ष सीएसआर फंड से 50 लाख रुपए खर्च किए जाएंगे। इसके अलावा मिल के आसपास के क्षेत्रों में विकास कार्यो के लिए ढ़ाई करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। जिसके तहत स्कूलों में फर्नीचर उपलब्ध करानेए कक्ष बनानेए पार्को का सौंदर्यीकरण करनेए शौचालय निर्माण के साथ ही स्वच्छता के क्षेत्र में कार्य किया जाएगा। साथ ही उच्च स्तरीय मेडिकल कैंपए नशा मुक्त समाज की स्थापना के लिए बच्चों को जागरूक करनेए स्मार्ट क्लासेस के अलावा महिलाओं को सिलाई.कड़ाई प्रशिक्षण देकर उन्हें स्वरोजगार भी उपलब्ध कराया जाएगा। राज्य की आर्थिकी मजबूत करने और बेरोजगारी दूर करने का दावा करती हैए तो कभी चीड़ की सूखी पत्तियों से चेकडैम बनाकर भूकटाव रोकने की बात करती है। न जाने क्यों सरकार और उसके सलाहकार यह भूल जाते हैं कि इन योजनाओं से न तो चीड़ के दुष्प्रभावों में ही कमी आएगी और न उसका मूल स्वभाव ही बदलेगा।
लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।