सीवी रमन नोबेल जीतने वाले वैज्ञानिक ने कर्ज चुकाने के लिए की थी सरकारी नौकरी

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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
सर रामन एक महान वैज्ञानिक थे । वे पहले भारतीय और वैज्ञानिक थे जिन्हें विज्ञान में सन् 1930 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था । यह सम्मान उन्हें अपने एक महत्वपूर्ण आविष्कार ष्रामन प्रभावष् के लिए दिया गया था ।रामन ने कठोर परिश्रम और सतत् प्रयोगों से पाया कि प्रकाश किरणों को नए पदार्थ में से होकर गुजारने पर स्पेक्ट्रम में कुछ नई रेखाएँ प्राप्त होती हैं । यही रामन प्रभाव का आधार था । उनका यह अन्वेषण और आविष्कार पदार्थों की आणविक संरचना समझने में बड़ा सहायक हुआ इसकी सहायता से अब तक हजारों पदार्थों की सरंचना को समझाजा सका है।लेसरके आविष्कार ने रामन प्रभाव को महत्त्व और भी बढ़ा दिया है । सर रामन ने चुम्बक और संगीत के क्षेत्र में भी अनेक अनुसंधान किये । उनका पूरा नाम चन्द्रशेखर वेंकट रामन था । उनका जन्म त्रिचनापल्ली स्थान पर 7 नवम्बर सन् 1888 को हुआ था । रामन बचपन से ही पढ़ने.लिखने में गहरी रुचि लेते थे । इनके पिता भौतिक विज्ञान के प्राध्यापक थे ।रामन को अपने पिता से बहुत प्रेरणा और सहायता मिली । रामन ने सन् 1904 में प्रेसीडेंसी कॉलेजए चेन्नई से बी॰ए॰ की डिग्री प्राप्त की और फिर 1907 में भौतिक विज्ञान में एम॰ए॰ की । वे उच्च शिक्षा के लिए बी॰ए॰ के पश्चात् विदेश जाना चाहते थेए परन्तु स्वास्थ्य अच्छा न होने के कारण ऐसा नहीं कर सके ।अपने विद्यार्थी जीवन में भी रामन ने भौतिक विज्ञान के कई नये और प्रशंसनीय कार्य किये । प्रकाश विवर्तन पर उनका पहला शोधपत्र सन् 1906 में प्रकाश में आया । सन् 1907 में उन्होंने डिप्टी एकाउन्टेंट के पद पर कलकत्ता में नियुक्त किया गया । इस पद पर रहते हुए भी वे वैज्ञानिक अध्ययन और अनुसंधान में लगे रहे ।वे वहां की विज्ञान प्रयोगशाला में अपना सारा फालतू समय लगाते थे । वहां वे भौतिकविद् आशुतोष मुकर्जी के संपर्क में आये । उनसे रामन को बड़ी प्रेरणा और मार्गदर्शन मिला । सन् 1917 में रामन सरकारी नौकरी से त्यागपत्र देकर कलकत्ता विश्वविद्यालय में भौतिकी के प्रोफेसर बन गये ।इसका प्रमुख कारण उनकी विज्ञान में गहरी रुचि थी । सन् 1921 में वे यूरोप की यात्रा पर गये । वहां से लौटकर वे अपने प्रयोगों में पुनरू लग गये और कई महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले । सन् 1924 में रामन को रॉयल सोसायटी ऑफ लंदन का सदस्य बनाया गया । यह अपने आप में एक बहुत बड़ा सम्मान था । विज्ञान की दृष्टि से प्राचीनतम भारत ने कई उपलब्धियां हासिल की हैण् जैसे शून्य ;0द्ध और दशमलव;ण्द्ध प्रणाली की खोजए पृथ्वी के अपनी धुरी पर घूमने की खोज तथा आयुर्वेद के फॉर्मुले आदिण् लेकिन दुर्भाग्यवश इन सब खोजों के बावजूद भी भारत में पूर्णरूप से विज्ञान के प्रयोगात्मक कोण में कोई विशेष प्रगति नहीं हुई थीए ऐसे में महान भारतीय वैज्ञानिक चंद्रशेखर वेंकट रामन ;सीण्वीण् रमनद्ध ने पुरानी परंपरा को तोड़ते हुए भारत को वैज्ञानिक दृष्टि से मजबूत बनाने में अपना सफल योगदान दियाण् ब्रिटिश शासन के दौर में भारत में किसी प्रतिभाशाली व्यक्ति के लिए भी वैज्ञानिक बनना आसान नहीं थाण् कालेज के बाद रमन ने भारत सरकार के वित्त विभाग की एक प्रतियोगिता में हिस्सा लियाण् इसमें वे प्रथम आए और फिर उन्हें जून 1907 में असिस्टेंट एकाउटेंट जनरल बनाकर कलकत्ता भेज दिया गयाण् एक दिन वे अपने कार्यालय से लौट रहे थे कि उन्होंने एक साइन.बोर्ड देखा . इंडियन एसोसिएशन फॉर कल्टीवेशन ऑफ साइंसण् इसे देख उनके अंदर की वैज्ञानिक इच्छा जाग गईण् रमन के अंशकालिक अनुसंधान का क्षेत्र ष्ध्वनि के कंपन और कार्यों का सिद्धांतष् थाण् रमन का वाद्य.यंत्रों की भौतिकी का ज्ञान इतना गहरा था कि 1927 में जर्मनी में छपे बीस खंडों वाले भौतिकी विश्वकोश के आठवें खंड का लेख रमन से ही तैयार कराया गया थाण् इस कोश को तैयार करने वालों में रमन ही ऐसे थेए जो जर्मनी के नहीं थेण्1917 में पहली बार कलकत्ता विश्वविद्यालय में फिजिक्स के प्रोफेसर का चयन होना थाण् वहां के कुलपति आशुतोष मुखर्जी ने इसके लिए सीवी रमन को आमंत्रित कियाण् रमन ने उनका निमंत्रण स्वीकार करके एक बड़े सरकारी पद से इस्तीफा दे दियाण् इसके बाद कलकत्ता विश्वविद्यालय में ही रमन ने कुछ वर्षों तक वस्तुओं में प्रकाश के चलने का अध्ययन कियाण् भारतीय भौतिक विज्ञानी तथा गणितज्ञ सीण्वीण् रमन के इसी योगदान को देखते हुए उनकी 125वीं सालगिरह पर गूगल ने आज यानि 7 नवंबरए गुरुवार को डूडल बनाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी हैण् इसए पहले गूगल ने सोमवार को मानव कंप्यूटर के नाम से विख्यात भारतीय गणितज्ञ शंकुतला देवी के 84वें जन्म दिवस पर डूडल बनाया थाण्सात नवंबर 1888 को तिरुचिरापल्ली में जन्मे सीण्वीण् रमन ने 28 फरवरीए 1928 को अपनी विश्व विख्यात खोज रमन प्रभाव की घोषणा की थीण् वैज्ञानिक सीण्वीण् रमन की उपलब्धियों को देखते हुए भारत सरकार ने पहली बार 28 फरवरी 1987 को विज्ञान दिवस के रूप में मनाया और तब से लेकर हर साल राष्ट्रीय विज्ञान व प्रौद्योगिकी परिषद के तत्वाधान में राष्ट्रीय विज्ञान दिवस का आयोजन किया जा रहा हैण् उनकी महान उपलब्धियों और अद्वितीय प्रतिभा की वजह से उन्हें 1954 में भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया थाण् रमन प्रभाव ने स्पैक्ट्रोमैट्री में अपना अलग स्थान बनाया जिससे रमन स्पैक्ट्रोमैट्री का जन्म हुआ जिसके भौतिकी और रसायन शास्त्र में बहुत सारे उपयोग सामने आते रहेण् रमन प्रभाव को दुनिया के वैज्ञानिकों ने हाथों हाथ लियाण् खोज के पहले सात सालों में ही करीब 700 शोधपत्रों में रमन प्रभाव का जिक्र थाण् विज्ञान के क्षेत्र में नोबल पुरस्कार प्राप्त करने वाले वो पहले एशियाई थे।

लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।