धौनी ने ठुकरायी थी तहसीलदार की नौकरी

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धौनी ने ठुकरायी थी तहसीलदार की नौकरी

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

हिम्मत सिंह धौनी के घर 24 फरवरी 1893 को सेनानी राम सिंह धौनी ने जन्म लिया। बचपन से ही पढ़ाई में आगे रहे राम सिंह धौनी ने क्षेत्र के ही प्राथमिक विद्यालय में प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने क्रिश्चियन कालेज इलाहबाद में बीए तक की पढ़ाई प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। वह सालम क्षेत्र में स्नातक उत्तीर्ण करने वाले पहले व्यक्ति थे। प्रतिभाशाली धौनी सादा जीवन और उच्च विचार के सिद्धांत पर चलते थे। खादी की धोती, कुर्ता और गांधी टोपी उनका पहनावा था। 1919 में धौनी बीए अंतिम वर्ष की परीक्षाओं की तैयारियों में जुटे थे। इसी दौरान उनकी माता कुंती देवी का निधन हो गया। माता के निधन का समाचार पाकर वह काफी दुखी हो गए। बीए की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वह सालम लौट आए। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद उनके स्वजन अपने पुत्र से सरकारी नौकरी करवाना चाहते थे। लेकिन उन्होंने कुमाऊं कमिश्नर के तहसीलदार की सरकारी नौकरी के प्रस्ताव को ठुकरा दिया और पूरा जीवन देशसेवा में लगा दिया। राजस्थान प्रवास के दौरान उन्होंने नौनिहालों में शिक्षित करने का प्रण लेते हुए बीकानेर राज्य के सूरतगढ़ मिडिल स्कूल में हेड मास्टर की नौकरी शुरू की। 1921 में इस नौकरी से त्याग पत्र देकर रामचंद्र नेवटिया हाईस्कूल फतेहपुर (जयपुर) में सहायक शिक्षक बन गए। धौनी अल्मोड़ा डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के सदस्य और 1926 में चेयरमैन भी रहे। 1928 में वह सालम गए और चौखुरी में मिडिल स्कूल स्थापित कर लोगों में आजादी की अलख जगाई। मुंबई प्रवास के दौरान 1929 में वह चेचक रोगियों की सेवा में जुट गए। इस दौरान वह भी बीमारी की चपेट में गए और उनका स्वास्थ्य खराब हो गया। 12 नवंबर 1930 को उनकी मृत्यु हो गई। वर्ष 1919 में ही दे दिया था जय हिद का नारावर्ष 1919 में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राम सिंह धौनी ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान जय हिद का नारा देना शुरू कर दिया था। जबकि नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 1943 में जापान में आजाद हिद फौज के सैनिकों के सम्मुख यह नारा दिया। लेकिन 24 साल पहले सेनानी धौनी ने इसकी शुरुआत कर दी थी।सन् 1920 इ० में धौनी जी राजस्थान चले गए और वहां बीकानेर के राजा के सूरतगढ़ स्कूल में 80)रु० मासिक वेतन पर एक वर्ष तक कार्य किया. वहां से धौनी जी फतेहपुर चले गये तथा रामचन्द्र नेवटिया हाईस्कूल में सहायक अध्यापक तथा प्रधा. नाध्यापक के पदों पर कार्य किया। जब 1921 में सारे भारतवर्ष में कांग्रेस कमेटियां बनाई जाने लगी, तो धौनी जी ही पहले व्यक्ति थे जिन्होंने फतेहपुर में कांग्रेस कमेटी की स्थापना कर वहां आजादी का बिगुल बजा दिया। फतेहपुर में ही धौनी जी ने युवक सभा की भी स्थापना की जिसके वे स्वयं संरक्षक थे। युवक सभा के सदस्यों का मुख्य कार्य अछूत बस्तियों के लोगों में शिक्षा, सफाई तथा नशाबंदी का प्रचार -प्रसार करना था।धौनी जी ने फतेहपुर (जयपुर) हाईस्कूल के छात्रों के शारीरिक, मानसिक तथा आत्मिक विकास के लिए छात्र सभा की स्थापना भी की, जिसके संचालक वे स्वयं थे तथा पाँच रुपये वार्षिक आर्थिक सहायता भी देते थे। इस बीच फतेहपुर में उन्होंने कई जनसभाओं में भाषण दिए तथा देश को आजाद करने का आह्वान किया। धौनी जी ने अपने स्कूल में फुटबॉल को विदेशी खेल समझ कर बंद करवा दिया तथा उसके स्थान पर कबड्डी एवं अन्य देशी खेलों को प्रारंभ करवायाकुछ लोग समाज में बिना किसी स्वार्थ के अपने दायित्वों का निर्वहन करते रहते हैं।  सच्चा समाज सेवक और देशप्रेमी वही है जो कार्यक्षेत्र बड़ा है या छोटा यह भूल कर, बिना कोई लम्बा भाषण दिए चुपचाप परहित की चिंता में अपना योगदान देता है। उत्तराखंड के जन्मे राम सिंह धौनी भी एक ऐसे ही व्यक्तित्व के धनी थे। इन्होंने शिक्षा के क्षेत्र से लेकर स्वंतत्रता संग्राम के क्षेत्र तक अतुलनीय कार्य किए और देश के युवाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत बने।
हालाँकि राम सिंह धौनी को वर्तमान समाज भूलता जा रहा हो मगर उनके देशप्रेम की अभिव्यक्ति उनकी डायरी में लिखी कविता से साफ़ देखने को मिलती है।

भारत! मैं तुझको श्रद्धा से प्रणाम करता हूं,
अपने ह्रदय के भावों को चरणों में धरता हूँ
तू ही तीस कोटि भारतीयों की माता है,
प्राचीन यश जिसका वेदव्यास गाता है।
तू धन्य है, तो धन्य है, तू धन्य है, माता
वह नीच से भी नीच है जो तुझको भुलाता,
है वह उच्च, सबसे श्रेष्ठ, जो है सेवा तेरी करता।
सागर ने तेरे चरणों में माथा नवाया,
अरु शुभ्र हिमालय ने मुकुट को सजाया है
चाहते हैं ईश सब भारतीयों की ध्वजा सजे,
अरु सभ्य जातियों में इसकी दुन्दुभी बजे ।हरगिज़ किसी से मत डरो, भाइयों बढे चलो,
अरु देश के हित के कार्य में सबसे गले मिलो ।सौ बार अगर जन्म हो, तो भी यही धर्म हो,
मारेंगे, मर मिटेंगे, हिन्दुस्तान के खातिर