देश को विज्ञान व प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने में डा. शांति स्वरूप भटनागर 

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देश को विज्ञान प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने में डा. शांति स्वरूप भटनागर 

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

डा. भटनागर का जन्म 21 फरवरी, 1894 को पंजाब के शाहपुर जिले के भेरा (अब पाकिस्तान में) में हुआ था। वह स्नातकोत्तर की पढ़ाई के बाद शोध फेलोशिप पर इंग्लैंड चले गए, जहां उन्होंने यूनिवर्सिटी कालेज लंदन से डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने कई वैज्ञानिक शोध किए। मैग्नेटो केमिस्ट्री और फिजिकल केमिस्ट्री आफ इमल्शन के क्षेत्र में उनके शोध को व्यापक मान्यता मिली। भारत आज विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नित नये कीर्तिमान स्थापित कर रहा है, तो इसमें उन विज्ञानियों का बड़ा योगदान है, जिन्होंने स्वाधीनता के बाद देश को न सिर्फ आत्मनिर्भर बनाने का स्वप्न देखा, बल्कि उसे साकार भी किया। देश को विज्ञान व प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने में डा. शांति स्वरूप भटनागर का अहम योगदान रहा है। उन्होंने होमी जहांगीर भाभा, प्रशांत चंद्र महालनोबिस, विक्रम अंबालाल साराभाई जैसे महान विज्ञानियों के साथ काम किया था। डा. भटनागर वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआइआर) के संस्थापक निदेशक थे, जो स्वतंत्र भारत में अनुसंधान के लिए एक प्रमुख संस्था बन गई। उनके निधन के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था, ‘मैं हमेशा कई प्रमुख हस्तियों के साथ जुड़ा रहा हूं, जो खास चीजों के लिए प्रसिद्ध रहे हैं, लेकिन डा. भटनागर में कई चीजों का एक विशेष संयोजन था। उनमें चीजों को हासिल करने का जबरदस्त उत्साह और ऊर्जा थी। इसका परिणाम है कि उन्होंने उपलब्धियों का रिकार्ड बनाया, जो वास्तव में उल्लेखनीय है। मैं कह सकता हूं कि डा. भटनागर के बिना आप राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं की श्रृंखला नहीं देख सकते थे।’ आज यदि देश कोविड जैसी महामारी से लड़ने में सक्षम हुआ है, तो उसमें इन प्रयोगशालाओं का अहम योगदान है। 12 राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं की स्थापना: स्वतंत्रता के बाद उन्होंने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आधारभूत ढांचे और नीतियों को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्हें देश में 12 राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं की स्थापना का श्रेय जाता है। उन्होंने सरकार में कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किए। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के वे पहले अध्यक्ष थे। उन्होंने राष्ट्रीय अनुसंधान विकास निगम (एनआरडीसी) की स्थापना में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वर्ष 1954 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। एक जनवरी, 1955 को उनका निधन हो गया। उनकी स्मृति में 1957 में सीएसआइआर ने शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार की घोषणा की, जो विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले विज्ञानियों को दिया जाने वाला प्रतिष्ठित पुरस्कार है। शांति स्वरूप भटनागर तेज दिमाग वैज्ञानिक होने के साथ एक कोमल ह्रदय कवि भी थे. हिंदी और उर्दू के बेहतरीन जानकार इस दिग्गज ने अपने नाटकों और कहानियों के लिए कॉलेज के समय में अनेक पुरस्कार भी जीते. लेकिन बतौर लेखक उनकी ख्याति कॉलेज परिसर से आगे नहीं जा पाई. डॉ. शांति स्वरूप ने बीएचयू का कुलगीत भी लिखा था जो हिंदी कविता का बेहतरीन उदाहरण है. यह अलग बात है कि शायद इस विश्वविद्यालय के ही कई छात्र इस बात को न जानते हों. डॉ भटनागर के जन्मदिवस के अवसर पर आजदेश उन्हें याद कर रहा