आमै की डाई मा, घुघुती न बासा’ गाने वाले गोपाल बाबू गोस्वामी 

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आमै की डाई मा, घुघुती बासागाने वाले गोपाल बाबू गोस्वामी 

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

हिमालय सुर सम्राट स्वर्गीय गोपाल बाबू गोस्वामी का जन्म संयुक्त प्रांत के अल्मोड़ा जनपद के पाली पछाऊं क्षेत्र में मल्ला गेवाड़ के चौखुटिया तहसील स्थित चांदीखेत नामक गांव में 2 फरवरी 1949 को मोहन गिरी एवं चनुली देवी के घर हुआ था. गोपाल बाबू ने प्राइमरी शिक्षा चौखुटिया के सरकारी स्कूल से प्राप्त की. 5वीं पास करने के बाद मिडिल स्कूल में उन्होंने नाम तो लिखवाया, परन्तु 8वीं उत्तीर्ण करने से पूर्व ही उनके पिता का देहावसान हो गया. इसके बाद गोस्वामी जी नौकरी करने पहाड़ के बेरोजगार युवाओं की परम्परानुसार दिल्ली चले गये. दिल्ली में वह कई वर्षों तक नौकरी की तलाश में रहे. पहले एक प्राइवेट नौकरी की. कुछ वर्ष डीजीआर में आकस्मिक कर्मचारी के रूप में कार्यरत भी रहे परन्तु स्थाई नहीं हो सके. इस दौरान वे दिल्ली, पंजाब तथा हिमाचल में भी रहे. पक्की नौकरी न मिल सकने के कारण बाद में उन्हें गांव वापस आना पड़ा. गांव लौटकर वह खेती के कार्यों में लग गये. 1970 में उत्तर प्रदेश राज्य के गीत और नाटक प्रभाग का एक दल किसी कार्यक्रम के लिये चौखुटिया आया था. यहां उनका परिचय गोपाल बाबू गोस्वामी से हुआ. तत्पश्चात नाटक प्रभाग से आये हुए एक व्यक्ति ने उन्हें नैनीताल केन्द्र का पता दिया और नाटक प्रभाग में भर्ती होने का आग्रह किया. 1971 में उन्हें गीत और नाटक प्रभाग में नियुक्ति मिल गई. प्रभाग के मंच पर कुमाऊंनी गीत गाने से उन्हें दिन-प्रतिदिन सफलता मिलती रही और धीरे धीरे वे चर्चित होने लगे. इसी दौरान उन्होंने आकाशवाणी लखनऊ में अपनी स्वर परीक्षा करा ली. वे आकाशवाणी के गायक भी हो गये. लखनऊ में ही उन्होंने अपना पहला गीत ‘कैलै बजै मुरूली ओ बैणा’ गाया था. आकाशवाणी नजीबाबाद व अल्मोड़ा से प्रसारित होने पर उनके इस गीत की लोकप्रियता बढ़ने लगी. 1976 में उनका पहला कैसेट एचएमवी कंपनी ने बनाया था. उनके कुमाऊंनी गीतों के कैसेट काफी प्रचलित हुए. पौलिडोर कैसेट कंपनी के साथ उनके गीतों का एक लम्बा दौर चला. वैसे तो उनके अनेक हिट और लोकप्रिय गीत हैं. लेकिन उनके मुख्य कुमाऊंनी गीतों के कैसेटों में थे- “हिमाला को ऊँचो डाना प्यारो मेरो गाँव”, “छोड़ दे मेरो हाथा में ब्रह्मचारी छों”, “भुर भुरु उज्याव हैगो”, “यो पेटा खातिर”, “घुगुती न बासा”, “आंखी तेरी काई-काई”, तथा “जा चेली जा स्वरास.” उन्होंने कुछ युगल कुमाऊंनी गीतों के कैसेट भी बनवाए. गीत और नाटक प्रभाग की गायिका चंद्रा बिष्ट के साथ उन्होंने लगभग 15 कैसेट बनवाए गोस्वामी जी ने कुछ कुमाऊंनी तथा हिंदी पुस्तकें भी लिखी थी. जिसमें से “गीत माला (कुमाऊंनी)” “दर्पण” “राष्ट्रज्योति (हिंदी)” तथा “उत्तराखण्ड” आदि प्रमुख थी. एक पुस्तक “उज्याव” प्रकाशित नहीं हो पाई. 55 वर्ष की आयु में उन्होंने अनेक उतार-चढ़ाव देखे उत्तराखंड ही नहीं वरन देश के कोने कोने में पहाड़ की माटी की सुगंध महका देते हैं। ऐसे तमाम मधुर गीतों को आवाज देने वाले प्रसिद्ध लोकगायक सुर सम्राट गोपाल बाबू गोस्वामी थे। सुर सम्राट स्व. गोपाल बाबू गोस्वामी की 80वीं जयंती आज दो फरवरी को बैराठ नगरी के बैराठेश्वर महादेव मंदिर परिसर में कोविड़ गाइड लाइन के चलते सादे कार्यक्रम के साथ मनाई जाएगी। इस दौरान श्रद्धासुमन अर्पित कर उनका भावपूर्ण स्मरण किया जाएगा। संगीत का भव्य कार्यक्रम नहीं होगा। उभरते लोक कलाकार रमेश बाबू गोस्वामी ने सभी से श्रद्धांजलि कार्यक्रम में पहुंचने की अपील की है।बेशक सुरीली आवाज के धनी गोपाल बाबू गोस्वामी आज हमारे बीच नहीं हैं, उनके गीतों के मधुर स्वर आज भी पहाड़ वासियों के दिलों में रचे बसे हैं। ऐसे महान लोक कलाकारों को सरकार व नेता तो भूल गए हैं, मगर विकास खंड के रंगीली धरती बैराठेश्वर चांदीखेत में प्रतिवर्ष दो फरवरी को उनकी जयंती मनाई जाती है। उत्तराखंड गीत संगीत को अपना अतुलनीय योगदान देकर ,अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में अमर कर दिया है। चाहे अधूर आवाज के धनी गोपाल बाबू आज हमारे मध्य में नहीं है ,लेकिन उनके मधुर स्वरों से निकले हुए गीत आज भी हमारे दिलों में रचे बेस हैं। गोस्वामी जी द्वारा गए हुए लोकगीतों के मधुर स्वर आज भी ,देश विदेश में अपनी माटी की सुगंध महका देते हैं।ऐसे महान लोक कलाकारों को सरकार व नेता तो भूल गए हैं, ऐसे महान लोक कलाकारों को सरकार व नेता तो भूल गए हैं,