दम तोड़ते उद्योग नहीं बन पाए चुनावी मुद्दा

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दम तोड़ते उद्योग नहीं बन पाए चुनावी मुद्दा

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

उत्तराखंड के पहाड़ों में दम तोड़ते उद्योग चुनावी मुद्दा नहीं बन पा रहे हैं। यही कारण है कि सरकारें बेरोजगारी की समस्या का समाधान खोजने में भी सफल नहीं हो पा रही हैं। राज्य बनने के बाद से पहाड़ में नए उद्योग तो नहीं लग पाए, लेकिन पुराने स्थापित उद्योगों को बचाने के लिए भी काम नहीं हो पाया है।कुमाऊं के पहाड़ों में स्थापित सबसे बड़ा औद्योगिक क्षेत्र भीमताल सिडकुल रामनगर का औद्योगिक क्षेत्र लगभग बंद हो चुका है। कौसानी की चाय फैक्ट्री, एचएमटी रानीबाग, आल्पस फार्मास्युटिकल्स, पिथौरागढ़ की मैग्नेसाइट फैक्ट्री, पटवाडांगर की वैक्सीन यूनिट सहित कई अन्य उद्योग बंद पड़े हैं। इनमें सीधे तौर पर दस हजार से अधिक लोगों का रोजगार जुड़ा था। कोरोना के बाद लघु उद्योगों की स्थिति भी काफी खराब है। पर राजनीतिक दलों के घोषणा पत्र में उद्योग धंधों के विकास का कोई रोडमैप अब भी नजर नहीं रहा है।  किसी समय यह कुमाऊं में रोजगार का एक मुख्य केंद्र हुआ करता था। यहां 1246 कर्मचारी काम करते थे। एनडी तिवारी ने केंद्रीय उद्योग मंत्री रहते हुए वर्ष 1982 में इस एचएमटी फैक्ट्री को मंजूरी दी थी। 41 एकड़ भूमि उद्योग मंत्रालय भारत सरकार की है, तो शेष भूमि राज्य सरकार और वन विभाग की है। फिलहाल यह फैक्ट्री पूरी तरह से बंद हो चुकी है। भीमताल को औद्योगिक घाटी का नाम दिया गया था। यहां पर 90 हेक्टेयर जमीन लीज पर ली गई थी। 65 से अधिक औद्योगिक घरानों से उद्योग खोलने की सहमति ली गई। तब औद्योगिक घरानों ने यहां पर बड़े-बड़े प्लॉट अपने नाम किए। हिल्ट्रान, ऊषा रेक्टिफायर, विकास कार्बन एक्वामाल, अपट्रान, सोलार्सन जैसे उद्योग खुले, लेकिन अब यह सब बंद पड़े हैं। यह कुमाऊं की सबसे बड़ी एवं पुरानी फैक्ट्री मानी जाती है। इंजेक्शनों के साथ ही विटामिन टेबलेट, कैप्सूल एवं पीसीएम टेबलेट्स का उत्पादन होता था। वर्ष 2012 के बाद कुप्रंबधन के चलते यह कंपनी घाटे में जाती रही। करीब छह सौ लोगों का रोजगार छिन गया।  हल्दूचौड़ में स्थापित सोयाबीन फैक्ट्री में एक समय हजारों लोगों को रोजगार मिलता था। वर्ष 1982 में यह फैक्ट्री स्थापित हुई थी, लेकिन 1996 में यह बंद हो गई। इस फैक्ट्री के बंद होने से जहां 400 से ज्यादा कर्मचारी बेरोजगार हुए, वहीं दो हजार से अधिक किसान भी प्रभावित हुए। अस्सी के दशक में रामनगर के निकट मोहान में जीवनरक्षक दवाएं बनाने की फैक्ट्री लगी। शुरुआत में यहां पर करीब 200 उत्पाद बनते थे। एक समय यहां पर 230 से अधिक कर्मचारी थे। फैक्ट्री में चुकमगांव, कुनाखेत, मोहान और सल्ट क्षेत्र के ग्रामीणों को रोजगार मिला हुआ था। अब अधिकांश मजदूर एवं कर्मचारी बेरोजगार हैं। बेरीपड़ाव में खुली पॉलिस्टर फिल्म बनाने वाली जलपैक इंडिया फैक्ट्री भी वर्ष 2014 में बंद हो गई। 200 से अधिक कर्मचारियों को आज तक उनका वेतन भत्ता नहीं मिल पाया है। भीमताल स्थित हिल्ट्रान कंपनी, कुमाऊं मंडल विकास निगम की केबल फैक्ट्री भी बंद हो गई। पटवाडांगर एक समय एंटी रेबीज एवं स्माल पॉक्स वैक्सीन की आपूर्ति के लिए देश-विदेश में अपनी पहचान रखता था। 2002 में यहा वैक्सीन बननी बंद हो गईं। इसके बाद यह जमीन पंतनगर विश्वविद्यालय को दे दी गई। यह बेशकीमती जमीन विवि के पास बिना काम के पड़ी है। तीन एकड़ भूमि स्वास्थ्य विभाग के पास है, जिसमें एक जर्जर व बंद हो चुका हॉस्पिटल है। यहां फिल्म सिटी का प्रस्ताव भी सरकार आगे नहीं बढ़ा पाई। पिथौरागढ़ जिला मुख्यालय से करीब तीन किलोमीटर की दूरी पर चंडाक रोड में 80 के दशक में यह फैक्ट्री स्थापित हुई। यहां निकलने वाले मैग्नीशियम कार्बोनेट को गलाकर उड़ीसा भेजा जाता था। तब यहां पर 150 से अधिक कर्मचारी एवं हजारों की संख्या में मजदूर रोजगार पा रहे थे। 1993 में इसमें ताले लग गए। यही हाल जनपद के गंगोलीहाट में चैनाला की सीमेंट फैक्ट्री, धरचूला एवं मुनस्यारी के ऊनी दस्तकारी उद्योग का भी है। कुमाऊं आने वाले पर्यटकों की पसंद में कौसानी की शॉल भी रही है। कौसानी में ही शॉल से जुड़े चार उद्यम बंद हो चुके हैं। शॉल का कारोबार करने वाले बताते हैं कि खरीददार न होने से लोगों को अपने उद्यम बंद करने पड़े हैं। मुनस्यारी में ऊनी कपड़ों का कारोबार ठप होने से 80 से अधिक महिलाओं को यह काम बंद करना पड़ा। नैनीताल में फैंसी मोमबत्ती के काम से जुड़े करीब 30 छोटे-बड़े मोमबत्ती उद्यम थे। इनसे तकरीबन 200 परिवार और लगभग 1000 सदस्य जुड़े हैं। कारोबार से जुड़े के अनुसार वैक्स महंगा होने का असर भी इस उद्यम पर पड़ा है। कई उद्योग बंद हो चुके हैं, अब केवल गिनती के ही शेष रह गए हैं। पहाड़ों में उद्योग स्थापित करने के लिए बेहतर नीति की जरूरत है। राज्य गठन के बाद तीन मैदानी जिलों में जहां औद्योगिक निवेश बढ़ा हैं, वहीं पहाड़ों से पलायन बढ़ा है। पिछले 21 सालों में औद्योगिक विकास की रफ्तार हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर और देहरादून जिलों तक ही सीमित रही हैं। पहाड़ों में एक भी बड़ा उद्योग स्थापित नहीं हुआ है। ऐसे में युवाओं को रोजगार के लिए मैदानों की तरफ पलायन करना पड़ा। किसी भी समाज या राष्ट्र की उन्नति में वहां के उद्योग धंधों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बिना औद्योगिक विकास के आर्थिक उन्नति पूर्ण रूप से संभव नहीं है। क्योंकि बिना उद्योग-धंधों के लोगों को रोजगार नहीं मिल सकता। और लोगों को रोजगार नहीं मिलेगा तो उनके जीवन स्तर में बदलाव की संभावनाएं नगण्य रहती है।और बिना रोजगार के किसी समाज की आर्थिक उन्नति भी संभव नहीं है