सरकार का पलायन को लेकर किया था जनता से ये वादा, 5 साल बाद कितना पूरा-कितना अधूरा?

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सरकार का पलायन को लेकर किया था जनता से ये वादा, 5 साल बाद कितना पूराकितना अधूरा?

 

उत्तराखंड में चुनावी मौसम है और हर पार्टी अपने वोटरों को लुभाने में लगी हुई है, लेकिन आंकड़े उत्तराखंड की कहानी कुछ और ही बयां कर रहे हैं. अलग राज्य बनने के बाद उत्तराखंड से करीब 60 प्रतिशत आबादी यानी 32 लाख लोग अपना घर छोड़ चुके हैं. पलायन आयोग की रिपोर्ट कहती है कि 2018 में उत्तराखंड के 1,700 गांव भुतहा हो चुके हैं, जबकि करीब एक हजार गांव ऐसे हैं, जहां 100 से कम लोग बचे हैं. ऐसे में कुल 3900 गांवों से पलायन हुआ है.पहाड के सन्दर्भ में एक धारणा सब के मन में बनीं है कि पहाड की जवानी और पहाड का पानी, पहाड के काम नहीं आता। दरअसल, पलायन का दंश झेल रहे उत्तराखंड में की सरकार बनने के बाद पलायन के कारणों और इसकी रोकथाम के लिए सुझाव देने के लिए ग्राम्य विकास विभाग के अंतर्गत पलायन आयोग का गठन किया गया. आयोग ने इस संबंध में प्रदेश के सभी गांवों का सर्वे कर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी. जिसमें मुख्य रूप से पलायन के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार प्रमुख कारण बनकर सामने आया. ये बात सौ प्रतिशत सच है। उधर, राज्य सरकारें भी पहाड़ों पर वह सहूलियत पैदा नहीं कर पाई, जिससे उद्योगपति पहाड़ों का रुख करें. राज्य स्थापना के दौरान प्रदेश में केवल 46 बड़े उद्योग थे और 700 करोड़ रुपए के इन्वेस्टमेंट वाले लघु और सूक्ष्म उद्योगों की संख्या 14 हजार के करीब थी.कांग्रेस की एनडी तिवारी सरकार के दौरान इस दिशा में काफी अच्छा प्रयास हुए और औद्योगिक पैकेज की सहूलियत के साथ उद्योगों ने राज्य का रुख किया.सरकार की तरफ से कृषि सेक्टर में भी सब्सिडी से लेकर लोन की सहूलियत देने की कोशिश की गई. होम स्टे से लेकर कृषि, ऊर्जा और दूसरे विभागों मे स्वरोजगार के लिए लोगों को प्रेरित करने की भी कोशिश हुई. हालांकि, यह कोशिशें धरातल पर कितनी हुई इसकी तस्दीक तो जनता ही कर सकती है. पहाड की जवानी याने पहाड का युवा और पहाड का पानी याने वे जल स्रोत्र जो पहाड से निकलते हैं और ढलान की तरफ बहते हुए मैदानी इलाकों में जाते हैं। पहाड का जवानी यानी युवा और पहाड का पानी यानी वो पवित्र नदियां, जो पहाड के ही नहीं देश और दुनिया के काम आती है। आज पहाड का युवा चाहे रोजगार की तलाश में ही क्यों पहाड छोडकर चला गया हो, लेकिन पहाड के इन लाखों जनों ने दूर प्रदेश में जाकर अपनी मेहनत और ईमानदारी के बल पर एक स्वच्छ और ईमानदार  छवि बनायी है। देश की सरहदों पर भी पहाड के कई जवानों मां भारती के चरणों में अपने प्राणों की आहुति दी है। देश के कई महानगरों से लेकर सात समुन्दर पर तक विभिन्न क्षेत्रों में अपना लोहा मनवाया है, ऐसे कई उदाहरण है यानी पहाड से निकलने वाली पवित्र जल धारायें जैसे गंगा जमुना आदि का जल देश के मैदानी क्षेत्रों में लाखों लोगों के लिए जीवनदायनी है, यही नहीं मरने के बाद भी इन्हीं पवित्र नदियों में समाहित होने की कामना देश के ही नहीं विदेशों में रह रहे भारतीय रखते हैं। आज उत्तराखण्ड राज्य बने 20 वर्ष हो गये हैं लेकिन आज भी पहाड की स्थिति में कोई व्यापक परिवर्तन नहीं आया, जबकि इस राज्य के शासक भी पहाड से संबंधित है, आखिर ऐसा क्यों