खाद्य सुरक्षा के लिहाज से तमाम मोर्चों पर जूझ रहा उत्तराखंड
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
खाद्य सुरक्षा के लिहाज से राज्य अब भी तमाम मोर्चों पर जूझ रहा है। उत्तराखंड उन राज्यों में शुमार है, जहां न मानकों के अनुरूप लैब संचालित हो रही है और न फूड सेफ्टी अधिकारी ही पर्याप्त हैं। कहने के लिए खाद्य पदार्थों की सैंपलिंग जरूर की जाती है, पर रिपोर्ट कई माह बाद आती है।दरअसल, वर्ष 2011 में अन्य राज्यों की तरह उत्तराखंड में भी फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड एक्ट अस्तित्व में आया, लेकिन इसके नाम पर अब तक खानापूर्ति ही हो रही है। या यूं कहें कि एक्ट के प्रविधानों का ठीक ढंग से पालन नहीं हो पा रहा। हद ये कि सरकारें बुनियादी सुविधाएं भी जुटा पाने में नाकाम रही हैं। कहने के लिए रुद्रपुर में खाद्य जांच प्रयोगशाला जरूर बनी, पर यह व्यवस्था भी दिखावे भर की रह गई है। कहने का मतलब मिलावटखोरों को खुली छूट है, फिर भले ही आमजन का स्वास्थ्य क्यों न बिगड़ जाए। प्रदेश की एकमात्र खाद्य प्रयोगशाला रुद्रपुर में है। पर लैब का एक्रिडिएशन केवल दूध व दुग्ध पदार्थ के लिए ही है। अन्य खाद्य पदार्थों के लिए एक्रिडिएशन न होने के कारण मिलावट पाए जाने पर दोषी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई में दिक्कत आती है खाद्य पदार्थो में मिलावट कोई नई बात नहीं, लेकिन इसे रोकने को शायद ही कभी गंभीर कदम उठाए गए हों। ले-देकर सैंपलिंग होती भी है तो रस्मअदायगी के लिए। हैरत देखिए कि जांच के लिए जब अपनी लैब नहीं थी, तब भी रिपोर्ट आने में वक्त लगता था और अब रुद्रपुर में अपनी लैब है, तब भी परिणाम नहीं मिल पाते। जिन खाद्य पदार्थो की सैंपलिंग के परिणाम 14 दिन के भीतर आने जाने चाहिए, महीनों तक भी पता नहीं चल पाता कि वे खाने लायक भी थे या नहीं। अधिक समय होने के चलते सैंपलिंग की विश्वसनीयता भी सवालों के घेरे में आ जाती है। खाद्य पदार्थों में मिलावट रोकने का जिम्मा संभालने वाले खाद्य सुरक्षा विभाग की हालत ठीक नहीं है। विभाग में फूड इंस्पेक्टरों, कर्मचारियों और संसाधनों का टोटा बना हुआ है। विभाग में खाद्य सुरक्षा अधिकारियों के कुल 57 पद हैं। लेकिन इसमें से आधे खाली चल रहे हैं। हालत यह है कि कई जिलों में एक भी फूड इंस्पेक्टर नहीं हैं। राज्य गठन को 20 साल हो चुके हैं। लेकिन कई मायने में व्यवस्थाएं बेहद लचर हैं। रुद्रपुर में खाद्य जांच प्रयोगशाला तो बनाई गई है, लेकिन यहां व्यवस्था नाम की चीज ही नहीं है। आलम यह है कि आज तक इस लैब के लिए राज्य सरकार एक स्थायी खाद्य विश्लेषक नहीं तलाश पाई है। प्रदेश की एकमात्र खाद्य प्रयोगशाला रुद्रपुर में है। पर लैब का एक्रिडिएशन केवल दूध व दुग्ध पदार्थ के लिए ही है। अन्य खाद्य पदार्थों के लिए एक्रिडिएशन न होने के कारण मिलावट पाए जाने पर दोषी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई में दिक्कत आती है। मुख्यालय के अभिहित अधिकारी राजेंद्र रावत ने बताया कि हम लगातार सुधार की कवायद में जुटे हैं। लैब में स्टाफ की कमी दूर कर दी गई है। इसके अलावा ऑनलाइन रिर्पोंटिग की भी व्यवस्था शुरू की जा रही है। इसके अलावा दून में भी एक लैब स्थापित करने का प्रस्ताव था। रुद्रपुर स्थित यह लैब आज तक नेशनल एग्रीग्रेडेशन बोर्ड आफ इंडिया से मान्य नहीं हो सकी। दरअसल, महानिदेशालय से लेकर शासन में तैनात अफसरों ने कभी इस मामले को गंभीरता से लिया ही नहीं। अगर आज तक गंभीरता के साथ पत्र व्यवहार हुआ होता, तो यह नौबत नहीं आती। दूसरी ओर, खाद्य सुरक्षा मानक प्राधिकरण के कमिश्नर आदि भी इस महकमे की मॉनीटरिंगको लेकर गंभीर नहीं रहे हैं।