21 साल बाद भी हल नहीं हुए ज्वलंत मुद्देए पलायन और बेरोजगारी का संकट बरकरार

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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्ताराखंड राज्यद को बने 21 साल पूरे हो चुके हैं और राज्यत को अभी तक 10 मुख्येमंत्री मिल चुके हैं। उत्त राखंड नौ नवंबर साल 2000 में अलग राज्यह के रूप में अस्तित्वअ में आया था। तब से अब तक राज्यत को नौ मुख्यबमंत्री मिल चुके हैं। इनमें भी पूर्व मुख्यूमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी दो बार राज्य के मुखिया रह चुके हैं। सपना तो था पहाड़ के विकास काए पहाड़ को चीरते हुए अंतिम छोर को मुख्यधारा में लाने काए मगर राज्य बनने के 21 साल बाद क्या ये सपना पूरा हो पाया है घ् क्या पहाड़ की मुश्किलें कम हुई हैंघ् पहाड़ की जवानी और पानी क्या पहाड़ के काम आ रहा हैघ् कुछ ऐसे ही सवाल राज्य बनने के 21 साल बाद आज भी जिंदा हैण्उत्तराखंड की शांत पहाड़ियों में विकास की झटपटाहट दशकों रही हैण् यही वजह थी कि अलग राज्य बनाने के लिए यहां के लोगों ने अपनी जिंदगी और अस्मिता दोनों को ही दांव में लगा डालाण् लेकिन पृथक उत्तराखंड में भी लगता है कि पहाड़ के सुलगते सवाल हल नहीं हो पाये हैंण् आलम ये है कि 21 साल गुजरने पर भी पर्वतीय क्षेत्रों में पलायनए शिक्षाए स्वास्थ्यए बेरोजगारी का संकट हल होने के बजाय और अधिक बढ़ा हैण्कुमाऊं हो या गढ़वाल पिछले 21 सालों में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक यहां के 10 पहाड़ी जिलों में 2 लाख 6 हजार से अधिक घर खाली हो गए हैंण् यही नहींए शुरूआती 8 सालों में ही पहाड़ी जिलों से 6 विधानसभा सीटें भी पलायन के चलते कम हो चुकी हैंण् आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग जरूर गांव में रूका हैण् लेकिन उसके हालात भी बद से बदतर हो रहेंण् पहाड़ के विकास के नाम पर जिस राज्य का जन्म हुआ थाण् उन्हीं पहाड़ों में आज ना तो डॉक्टर चढ़ना चाह रहे हैंए न ही टीचरण् नौकरशाही ने भी पिछले कुछ समय से पहाड़ों से दूरी बना ली हैण्उत्तराखंड की राजनीति ना तो दूरदर्शी रही है और ना ही यहां के राजनेताओं में बड़े फैसले लेना का साहस दिखा हैए जिस कारण 21 सालों के सफर में भी स्थाई राजधानी और परिसम्पतियों के बंटवारे जैसे ज्वलंत सवाल हल नहीं हो पाये हैंण् नीति.निर्माताओं ने पिछले 21 सालों में ऊर्जाए हर्बल और पर्यटन प्रदेश का जुमला तो खूब उछालाण् लेकिन राज्य की अर्थव्यवस्था को पटरी लाने में ये जुमले नाकाम ही रहे हैंण् प्राकृतिक संसाधनों से लैस उत्तराखंड में बहुमूल्य जड़ी.बूटियों की भरमार हैण् अगर हिमालयन जड़ी.बूटियों पर शोध किये जाए तो उत्तराखंड राज्य को हर्बल स्टेट का दर्जा मिल सकता हैण् यही नहींए उत्तराखण्ड में प्रकृति ने भी अपना खजाना जमकर बिखेरा हैण् यहां प्राकृतिक और धार्मिक पर्यटन के साथ ही साहसिक पर्यटन की अपार संभावनाएं मौजूद हैंण् ऐसे में पर्यटन को बढ़ावा देकर राज्य को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने के साथ ही खाली हाथों को काम दिया जा सकता हैण् आपदा की सबसे अधिक मार झेलने वाले प्रदेश में आपदा प्रबंधन और पुनर्वास को लेकर कोई ठोस नीति नहीं बन पाई हैण् उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले दौर में हुक्मरान इन गलतियों से सबक लेंगे और उत्तराखंड आंदोलन की मूल भावना की दिशा में आगे बढ़ेगाण् जिस उत्तराखंड आंदोलन में मडुवाए झीगोरा खाएंगे उत्तराखण्ड बनाएंगेए जय बद्री जय केदार उत्तराखंड दे सरकारए लाठी गोली खाएंगे उत्तराखंड बनाएंगे जैसे नारे लगाते हुए आंदोलनकारी शहीद हुएए वहीं आज 21 साल बाद सरकार में आने के लिए पार्टियां कह रही हैं कि हमको वोट दोए बिजली और पानी फ्री देंगे। कहा कि यह सत्ता में आने के लिए प्रदेश की जनता से ऐसा मजाक शर्मनाक है। उन्होंने कहा कि किसी दल ने यह नहीं कहा कि गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाएंगे। उन्होंने चिंता प्रकट करते हुए कहा कि मुफ्त बिजली और पानी के चक्कर में ये राज्य को गलत दिशा में न ले जाएं। पहाड़ी राज्य की भौगोलिक परिस्थितियों के हिसाब से उत्तराखंड में योजनाओं को लागू करने में कई तरह की समस्याएं भी आती हैं। लेकिन जब भी सरकार की इच्छा शक्ति हुई तो योजना ने परवान चढ़ीए लेकिन जब भी राज्य सरकार वोटबैंक और अपने राजनीतिक लाभ के लिए विकास कार्यों को टालती रही तो इसका नुकसान भी जनता को उठाना पड़ा है। आज भी शिक्षाए स्वास्थ्य और रोजगार सरकारों के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है।
लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।