मुख्यमंत्री के हारने के कारण भले अलग रहे हों, लेकिन निहितार्थ एक ही है
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को जीत मिली है. बीजेपी की इस जीत के साथ राज्य में सालों से चला आ रहा एक मिथक तो टूट गया. दरअसल उत्तराखंड में एक पार्टी की सरकार दूसरी बार रिपीट नहीं होती थी, लेकिन इस बार आए नतीजों ने इस मिथक को तोड़ दिया है. वहीं एक मिथक जहां टूटा है वहीं दूसरा मिथक बरकरार रहा है. निर्वाचित सरकारों में मुख्यमंत्री के चुनाव न जीत पाने का मिथक जस का तस बना हुआ है. चुनाव में दो बड़े उलटफेर हुए है. पहला सीएम पुष्कर सिंह धामी खटीमा विधानसभा सीट से चुनाव हार गए हैं. वहीं दूसरा पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को लालकुआं सीट से हार का मुंह देखना पड़ा. इसी के ही साथ मोदी मैजिक के दम पर बीजेपी सरकार बनाने में कामयाब रही है. प्रदेश में भाजपा सरकार बनाने के लिए चुनाव लड़ी व सफल रही। जीत में सबसे निर्णायक भूमिका प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम व काम ने निभाई। मतदाताओं का वोट नरेन्द्र मोदी के विश्वसनीय नेतृत्व और प्रदेश में गतिमान केंद्र सहायतित एक लाख करोड़ की परियोजनाओं के पक्ष में गया। जनता ने डबल इंजन की आवश्यकता को समझा व प्रदेश में भाजपा पर भरोसा जताया। 2017 के चुनाव में जो कांग्रेस केवल 11 विधायकों तक सीमित हो गई थी, इस बार उसे आठ सीटें ज्यादा मिलीं। पिछले चुनाव से 10 सीटें कम देकर भाजपा व सरकार को जनता ने चेताया भी है। बड़े अनुकूल माहौल व भरपूर संसाधनों के साथ चुनाव लड़ने के बावजूद कांग्रेस सत्ता से चूक गई। स्पष्ट है कि राष्ट्रीय धारा में रहने वाले उत्तराखंड जैसे प्रदेश का मतदाता अगर विधानसभा के लिए भी वोट डालता है तो पार्टिंयों के नेतृत्व को राष्ट्रीय मुद्दों की कसौटी पर ही कसता है। मतदाताओं ने लोकलुभावन घोषणा करने वालों को हतोत्साहित किया है। मुख्यमंत्री धामी व कांग्रेस के इसी पद के दावेदार चेहरे हरीश रावत के हारने के कारण भले अलग-अलग रहे हों, लेकिन निहितार्थ एक ही हैं। बड़े पद और कद के बावजूद आपको अपने चुनाव क्षेत्र में जनता के प्रतिनिधि वाली सक्रियता व भाव दिखाना होता है। बनारस में उनका आचार, विचार और व्यवहार लोकसभा सदस्य का ही रहता है। इस चुनाव में कांग्रेस के विधायकों की संख्या और मत प्रतिशत दोनों बढ़ा। भाजपा को सत्ता मिली और उत्तराखंड को विकास का पक्का भरोसा। ऐसा कम ही होता है कि किसी महासमर का परिणाम उसके सभी खिलाड़ियों को लाभान्वित कर जाए। उत्तराखंड में प्रबंधन के स्तर पर देखें तो कांग्रेस ने कोई बड़ी गलती नहीं की थी। पार्टी ने टिकट से लेकर अन्य मोर्चे पर भी सजगता बरती, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी की कमजोर छवि ने राज्य में उसे नुकसान पहुंचाया। प्रदेश के प्रमुख क्षेत्रीय दल उत्त्तराखण्ड क्रांति दल के लिए भी यह चुनाव एक डरावने सपने की तरह रहा। इस बार भी उक्रांद एक सीट नहीं जीत पायी। 2017 में भी उक्रांद एक सीट नहीं जीत पायी थी। 2002 में 4 सीट जीतने वाली उक्रांद 2007 में तीन व 2012 में 1 सीट जीती थी। 2022 का चुनाव परिणाम उक्रांद नेताओं के लिए एक नया सबक लेकर आया है। दोनों प्रमुख नेता चुनाव हार गए। पहाड़ी राज्य उत्तराखंड समेत पांच राज्यों के चुनावी नतीजे कल घोषित कर दिए गए. देवभूमि उत्तराखंड में भी बीजेपी ने ही बाजी मारी है वहीं कांग्रेस को मायूस होना पड़ा है. इसी के साथ भारतीय जनता पार्टी प्रचंड बहुमत के साथ राज्य की सत्ता पर एक बार फिर काबिज है