अपने अधिकारों को जूझ रही है पहाड़ की महिलाओं
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
परिस्थितियां चाहे कैसे भी हों लेकिन संकल्प के आगे मंजिलों को झुकना ही पड़ता है। इसी तरह कई महिलाओं ने विपरीत परिस्थितियों में खुद को साबित किया है। पहाड़ की महिलाएं विभिन्न क्षेत्रों में देश-दुनिया में नाम रोशन कर रही हैं। जहां आज कुछ महिलाओं ने अपने दम पर संघर्ष कर सफलता की नई इबारत लिखकर दूसरों के लिए मिसाल कायम की है। वहीं आज भी सभ्य कहे जाने वाले इस समाज में आज भी आधी आबादी अपने हकों के लिए संघर्ष कर रही हैं। भले ही सरकारें महिला सशक्तिकरण, बराबरी का दर्जा देने की बात करतीं हो। लेकिन प्रतिवर्ष शारिरिक, मानसिक उत्पीड़न, घरेलू हिंसा, देहज उत्पीड़न के बड़े मामले महिला आयोग में दर्ज होते है। यह कुल मामलों का केवल 30 फीसद ही होता है। उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में जहां महिलाएं पहाड़ की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है तो वहीं राजनीति में भी निर्णायक भूमिका में हैं। इस बार के विधानसभा चुनाव में महिलाओं ने यह दिखा भी दिया है। लेकिन इसके बाद भी महिलाओं के हालात में बदलाव नहीं आया। मानसिक, शारीरिक उत्पीड़न, घरेलू हिंसा, देहज उत्पीड़न आदि के मामले बढ़ते जा रहे हैं। वर्ष 2020 में महिला आयोग के पास महिला उत्पीड़न, हिंसा के जहां 1731 मामले सामने आए। वर्ष 2021 में अब तक 1374 मामले सामने आ चुके हैं। यह वह मामले है जो महिला आयोग के पास आए हैं। जिन पर पुलिस व अन्य संबंधितों के माध्यम से कोई कार्रवाई नहीं हुई। न्याय के लिए महिलाओं को आयोग के दरवाजे खटखटाने के लिए मजबूर होना पड़ा। बलात्कार 17 आयोग के पास जो मामले आते है उनका संज्ञान लेकर तुरंत कार्रवाई की जा रही है। बीते वर्ष 1523 मामलों का निस्तारण किया गया। इस वर्ष 733 मामलों का समाधान किया गया। महिलाओं को उनके अधिकारों के लिए जागरुक करने के लिए समय-समय पर कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते रहते हैं। महिलाओं में जागरुकता बढ़ी है। पहले घरेलू हिंसा, शारीरिक, मानसिक उत्पीड़न के मामले कम दर्ज होते थे। अब महिलाएं अपने हकों के लिए खुलकर बोलने लगी है। जो सकारात्मक पहलू है। गरीबी, पिछड़ापन, शिक्षा के अभाव के कारण महिलाएं ज्यादा उत्पीड़न का शिकार होती हैं। भले ही सरकारें महिला सशक्तिकरण, बराबरी का दर्जा देने की बात करतीं हो। लेकिन प्रतिवर्ष शारिरिक, मानसिक उत्पीड़न, घरेलू हिंसा, देहज उत्पीड़न के बड़े मामले महिला आयोग में दर्ज होते है पहाड़ी राज्य कहे जाने वाले उत्तराखंड की रीढ़ आज भी महिलाएं ही हैं. महिलाएं यहां खेत से लेकर सर्विस सेक्टर तक में काम कर रही हैं. लेकिन इसके बावजूद पहाड़ में महिलाओं की ज़िंदगी को आसान और बेहतर बनाने के लिए ऐसे काम नहीं हुए हैं जिनके वादे राजनीतिक दल चुनावों के समय करते हैं.