सतर्कता खुराक इस ओर संजीदा नहीं दिख रहा सरकारी तंत्र
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
प्रदेश में 18 से 59 आयु वर्ग के व्यक्तियों को कोरोनारोधी टीके की सतर्कता खुराक का अभियान रस्म अदायगी बनकर रह गया है। केंद्र सरकार ने बेशक इसे वैकल्पिक रखा है, लेकिन कोरोना संक्रमण से लड़ाई को शरीर के सुरक्षा कवच को मजबूत बनाने के लिए चिकित्सा विशेषज्ञ इसकी सलाह दे रहे हैं।हालांकि, सरकारी तंत्र इस ओर संजीदा नहीं दिख रहा। स्थिति यह है कि राज्य के 13 जिलों में से महज तीन में ही नागरिकों को सतर्कता खुराक लग पा रही है। सरकार की निष्क्रियता के चलते अब जनता भी इससे मुंह मोडऩे लगी है और अधिकांश निजी केंद्र वैक्सीन बेकार होने के डर से पहले ही टीकाकरण करने से किनारा कर चुके हैं। 18 वर्ष से अधिक उम्र के जिन व्यक्तियों को कोरोनारोधी टीके की दूसरी खुराक लगे नौ माह बीत चुके हैं, वह निजी केंद्रों पर सतर्कता खुराक लगवा सकते हैं। इसकी कीमत 385 रुपये तय की गई है। 60 वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्तियों, स्वास्थ्य कर्मियों और फ्रंटलाइन वर्कर को सतर्कता खुराक सरकारी केंद्रों पर निश्शुल्क लग रही है। जानकार मानते कि महामारी से हम सुरक्षित हुए हैं तो इसमें टीकाकरण का बहुत बड़ा योगदान है। कोई दोबारा संक्रमण की चपेट में न आए, इसके लिए सतर्कता खुराक लगवानी चाहिए, लेकिन इसको लेकर न लोग संजीदा हैं और न ही सिस्टम। 18 से 59 आयु वर्ग में इस अभियान को सरकार ने निजी अस्पतालों के हवाले छोड़ दिया है। नागरिकों को इस ओर प्रेरित करने का प्रयास भी सरकारी स्तर पर नहीं किया जा रहा। वहीं, घटते संक्रमण के बीच जनता ने यह मान लिया है कि कोरोना खत्म हो गया।मास्क, शारीरिक दूरी का नियम को टूटा ही है, सतर्कता खुराक लगवाने में भी लोग दिलचस्पी नहीं दिखा रहे। अब बात व्यवस्था की करें तो राज्य में केवल देहरादून, हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर जिले में ही निजी केंद्रों पर सतर्कता खुराक लग रही है। इनमें भी हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर में एक-एक अस्पताल में ही यह व्यवस्था है। अन्य जिलों में सतर्कता खुराक लग ही नहीं रही है। ज्यादातर निजी अस्पताल सतर्कता खुराक लगाने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे। बताया गया कि कोरोनारोधी टीके की पहली और दूसरी खुराक की व्यवस्था ज्यादातर निजी केंद्रों ने की थी, मगर इस बीच सभी को मुफ्त वैक्सीन अभियान के तहत सरकारी केंद्रों पर टीका निश्शुल्क लगने लगा। इसके चलते अधिकतर लोग निजी केंद्रों में जाने से बचने लगे थे। ऐसे में वैक्सीन की बड़ी खेप मंगाने वाले निजी केंद्रों को घाटा उठाना पड़ा। अब वह फिर इस बात से आशंकित हैं कि 18 से 59 आयु वर्ग में सतर्कता खुराक भी कहीं आगे चलकर निश्शुल्क न कर दी जाए। कई अस्पतालों के पास पहले से उच्च दर पर खरीदा गया स्टाक पड़ा है। अब कंपनी ने दाम आधे से भी कम कर दिए हैं। ऐसे में ज्यादा दाम पर खरीदी वैक्सीन कम दाम पर लगाने को भी अस्पताल तैयार नहीं हैं। उस पर सिर्फ 150 रुपये सर्विस चार्ज भी इन्हें नाकाफी लग रहा है। सतर्कता खुराक केवल निजी केंद्रों पर ही लगेगी, लेकिन राज्य में कई पर्वतीय जनपद ऐसे भी हैं जहां निजी अस्पताल या क्लीनिक नहीं हैं। जहां निजी अस्पताल हैं, तो आबादी का बड़ा हिस्सा उससे दूर है। ये अस्पताल जिला मुख्यालय तक सीमित हैं। ऐसे में पहाड़ में चाहकर भी यह अभियान शुरू नहीं हो सका है। पर्वतीय जनपद ही क्यों, मैदानी क्षेत्र में भी यही हाल है। देहरादून जनपद में ही निजी केंद्र दून व ऋषिकेश तक सीमित हैं। राज्यों की केंद्र के साथ हुई वीडियो कांफ्रेंसिंग में भी यह मामला उठा था। उत्तराखंड के अलावा पूर्वोत्तर राज्यों ने यह समस्या रखी थी, मगर इसका कोई समाधान नहीं हुआ। सतर्कता खुराक को ऐच्छिक रखे जाने से ज्यादातर लोग इससे जी चुरा रहे हैं। कोरोना के कम होते संक्रमण के कारण भी वह इसमें दिलचस्पी नहीं दिखा रहे। मन में एक ख्याल यह भी है कि केंद्र सरकार पहले की तरह सतर्कता खुराक को भी निश्शुल्क कर सकती है। उस पर कोरोनाकाल में निजी अस्पतालों में हुई लूट के कारण भी नागरिकों में विश्वसनीयता का संकट है। सतर्कता खुराक को लेकर सरकारी तंत्र भी बहुत अधिक सक्रिय नहीं दिख रहा। ऐसे प्रयास भी नहीं दिख रहे कि और अस्पताल इस मुहिम से जुड़ें। बिहार देश का पहला ऐसा राज्य बन गया हैै, जहां कोरोना की सतर्कता खुराक के लिए किसी को भी पैसे नहीं देने होंगे। राज्य में भी वैक्सीन का पर्याप्त स्टाक है। इंतजार इस बात का है कि कब सरकार बिहार से सीख लेकर ऐसा कोई कदम उठाती है। अभी 18 से 59 आयु वर्ग में तीन जनपदों में सतर्कता खुराक लग रही है। नैनीताल जनपद में भी प्रयास किए गए हैं। एकाध दिन में यहां भी टीकाकरण शुरू हो जाएगा। पर्वतीय जनपदों में निजी केद्रों का अभाव है। यह मामला केंद्र के साथ हुई बैठक में रखा गया था। उम्मीद है कि जल्द ही इसका कोई समाधान निकलेगा। जवाबदेही का विषय अक्सर चर्चा के केंद्र में रहता है। समग्र रूप में देखें तो तंत्र की बेपरवाही गांवों के विकास और वहां मूलभूत सुविधाओं के विस्तार के मामले में भारी पड़ रही है। इस दृष्टिकोण से राजनीतिज्ञों के साथ ही नौकरशाहों को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। सोच में बदलाव लाते हुए तंत्र को जवाबदेह बनाना होगा। जिस विभाग का जो कार्य है, उसे वह पूरी जिम्मेदारी से पूर्ण करे। गांवों की तरक्की के लिए सोच में बदलाव हर स्तर पर जरूरी है।