अब जंगल की आग रोकने को इंद्रदेव पर टिकी निगाहें

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अब जंगल की आग रोकने को इंद्रदेव पर टिकी निगाहें

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

उत्तराखंड में जंगल की आग की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। शुष्क मौसम में लगातार सुलग रहे जंगल वन विभाग की मुश्किलें बढ़ा रहे हैं। पिछले 24 घंटे में प्रदेश में 124 नई घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें 253 हेक्टेयर वन क्षेत्र को नुकसान पहुंचा है।इसी के साथ प्रदेश में फायर सीजन शुरू होने के बाद से अब तक कुल 1216 घटनाओं में 1871 हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित हुआ है। इस दौरान चार व्यक्ति घायल और एक व्यक्ति की आग में झुलस कर मौत भी हो चुकी है। इसमें हैरानी की बात यह है कि वन पंचायतों और सिविल सोयम की तुलना में आरक्षित वन क्षेत्र आग की चपेट में अधिक आ रहे हैं। उत्तराखंड वन विभाग के आंकड़ों के तहत फरवरी मध्य में फायर सीजन शुरू होने के बाद से अब तक सबसे ज्यादा नुकसार आरक्षित वनों को हुआ है। जबकि, वन पंचायत में ग्रामीणों की ओर से जंगल की निगरानी होने के कारण घटनाएं कम रहीं।इससे यह भी संकेत मिलता है कि वन विभाग से ज्यादा ग्रामीण जंगलों की सुरक्षा में सफल हैं। हालांकि, आरक्षित वन क्षेत्रों में विषम परिस्थितियों के कारण आग की घटनाओं का पता लगाने में परेशानी पेश आती है। अब तक फायर सीजन में हिमालयी राज्य उत्तराखंड के 1871.45 हेक्टेयर वन क्षेत्र से हरियाली गायब हो गई है। इसमें से 1379.49 हेक्टेयर क्षेत्र आरक्षित वन का शामिल है, जहां 903 घटनाएं दर्ज की गईं। शेष 491.96 हेक्टेयर वन पंचायत के जंगलों का हिस्सा है,जहां 313 घटनाएं हुईं। शुष्क मौसम के कारण घटनाओं को काबू करना मुश्किल हो रहा है। पहाड़ों में फायर वाचर की संख्या बढ़ा दी गई है। फारेस्ट फोर्स को संवेदनशील क्षेत्रों में तैनात किया गया है।ग्रामीणों के साथ ही पीआरडी जवान, होमागार्ड और पुलिस की मदद ली जा रही है। अधिक विकराल आग को काबू करने के लिए एसडीआरएफ सहयोग कर रही है।कुमाऊं में जंगल की आग से अब तक दो व्यक्ति घायल और एक व्यक्ति की मौत हो चुकी है। वहीं, गढ़वाल मंडल में भी दो व्यक्ति घायल हुए हैं। बीते एक रोज में ही आरक्षित वन क्षेत्र में आग की 106 घटनाएं हुई हैं।फायर सीजन शुरू होते ही जंगल की आग की घटनाएं और इससे पैदा होते हालात किसी से छिपे नहीं हैं। हर तरफ धुंध ही धुंध और तपिश भरी गर्मी के बीच जंगल की आग की घटनाओं से जूझते वन कर्मियों के सामने परंपरागत झांपा ही आग बुझाने का कारगर उपाय है। लेकिन, कई बार विकराल रूप ले चुकी आग तब बुझ पाती है, जब काफी जंगल खाक हो जाता है। जनपद में अभी तक जंगल की आग के लिहाज से संवेदनशील गढ़वाल वन प्रभाग के अधीन 80 से अधिक घटनाएं इसी बात को तस्दीक कर रही हैं। फिलवक्त जंगलों में धधकती आग पर काबू पाने के लिए अब सभी की निगाहें इंद्रदेव पर टिकी हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में फायर सीजन शुरू होते ही जंगलों में आग की घटनाएं भी बढ़ जाती हैं। इनमें मानवीय भूल से कम तो कुछ मानवजनित घटनाएं ज्यादा होती हैं। पौड़ी जनपद की बात करें तो जंगल की आग के लिहाज से गढ़वाल वन प्रभाग का क्षेत्र काफी संवेदनशील है। इसकी एक वजह विषम भौगोलिक परिस्थितियां भी हैं। इस बार भी यहां के विभिन्न क्षेत्रों में कई जंगल धूधू कर जल रहे हैं। अभी तक हुई इन घटनाओं से तीन लाख 69 हजार से अधिक का नुकसान भी हुआ है। इस सब के बीच वर्ष 2020 की बात करें तो प्रभाग के अधीन के वनों में आग की एक भी घटना सामने नहीं आई। इसकी बड़ी वजह कोविड के चलते लाकडाउन का लगना। शहर क्या गांव, लाकडाउन के चलते किसी का भी वनों में हस्तक्षेप होने से आग की घटनाएं नहीं हुई। लेकिन, इस बार हालात जुदा हैं। जगहजगह जंगल की आग की घटनाएं सामने रही है। ऐसे में साफ है कि जंगलों में आग की अधिकांश घटनाएं मानव जनित होती हैं। तमाम तैयारियों के बीच जंगल की आग को रोकने के लिए शहरी क्षेत्रों से सटे जंगलों में जहां सड़क मार्ग पहुंच हैं, वहां तो फायर सर्विस की मदद से आग बुझाई जा सकती है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों के जंगलों में लगी आग को बुझाने में परंपरागत रूप से झांपा ही एक मात्र विकल्प है। कई क्षेत्रों में वन पंचायत, ग्रामीण भी सहयोग करते दिख रहे हैं। फिलवक्त जिस प्रकार एक के बाद एक जंगलों में आग की घटनाएं सामने आ रही हैं, उससे न केवल वन बल्कि वन्यजीवों की जान पर भी बन आई है। वर्ष 2021 में गढ़वाल वन प्रभाग के अधीन जंगल की आग की 201 घटनाएं सामने आई थी। इसमें 468.9 हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित हुआ था। जबकि सिविल एवं सोयम वन प्रभाग के अधीन तब जंगली की आग की 274 घटनाएं हुई, जिसमें 216.17 हेक्टेयर क्षेत्र प्रभावित हुआ। गढ़वाल वन प्रभाग के अधीन मौजूदा फायर सीजन में विभिन्न क्षेत्रों में जंगल की आग की 80 से अधिक घटनाएं हो चुकी हैं, वन विभाग की रिपोर्ट के अनुसार अब तक दावानल की कुल 614 घटनाओं में करीब 1100 हेक्टेयर जंगल खाक हो चुका है। आग से अब तक 29 लाख की क्षति का आंकलन किया गया है। दावानल की चपेट में कुमाऊं में उत्तरी कुमाऊं वृत्त के अंतर्गत बागेश्वर, पिथौरागढ़, सिविल सोयम अल्मोड़ा, व चम्पावत वन प्रभाग, पश्चिमी वृत्त अंतर्गत हल्द्वानी वन प्रभाग, तराई केंद्रीय हल्द्वानी, तराई पूर्वी हल्द्वानी, रामनगर वन प्रभाग व तराई पश्चिमी, दक्षिणी कुमाऊं वृत्त के अंतर्गत नैनीताल, भूमि संरक्षण वन प्रभाग तथा भूमि संरक्षण नैनीताल व रानीखेत प्रभाग शामिल हैं। मुख्य वन संरक्षक कुमाऊं के अनुसार आरक्षित वन क्षेत्र में दावानल की 409, सिविल और वन पंचायत में 206 घटनाएं हो चुकी हैं। इन घटनाओं में 719.97 हेक्टेयर आरक्षित वन क्षेत्र,  344.96 सिविल व पंचायती वन क्षेत्र प्रभावित हो चुका है। चीफ कुमाऊं कार्यालय की सोमवार तक की रिपोर्ट के अनुसार अब तक पूरे कुमाऊं में 4220 पौधे जल चुके हैं। जो अधिकांश नर्सरी के हैं। वन विभाग की ओर से इसकी गणना की गई है।  सबसे हैरत की बात यह है कि आग से अब तक एक भी लीसा घाव प्रभावित नहीं है। आग बुझाते समय पिथौरागढ़ जिले में वन प्रहरी जख्मी हुआ। उसका पिथौरागढ़ चिकित्सालय में उपचार चल रहा है।लेकिन आग लगाने वाले शरारती तत्व पकड़ से बाहर हैं। विभाग के मुताबिक जब कोई व्यक्ति किसी जंगल में आग लगाता है और उसे पकड़ने के लिए जब तक वन कर्मी मौके पर पहुंचते हैं तब तक वह वहां से भाग निकलता है। यही वजह है कि अभी तक कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं हो सकी है। जंगलों में आग की जो घटनाएं सामने आ रही हैं, उसमें मानव जनित ज्यादा हैं। ऐसे वक्त में सभी को जंगलों को बचाने के लिए आगे आना चाहिए।  वन विभाग तमाम प्रयासों के बावजूद आग पर काबू पाने में विफल साबित हो रहा है। इससे परेशान वन महकमे की निगाहें आसमान पर टिकी हैं कि कब इंद्रदेव मेहरबार हों और आग पर पूरी तरह काबू पाने में सफलता मिले। यह किसी से छिपा नहीं है कि प्रदेश में हर साल ही फायर सीजन, यानी 15 फरवरी से 15 जून तक जंगल खूब धधकते हैं। इस सबको देखते हुए आग पर काबू पाने के लिए आधुनिक संसाधनों की बात अक्सर होती रहती है, लेकिन इस दिशा में अभी तक कोई ठोस पहल नहीं हो पाई है। हालांकि, मैदानी क्षेत्रों के लिए तो कुछ उपकरण जरूर मंगाए गए हैं, मगर विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते पर्वतीय क्षेत्रों में यह कारगर साबित नहीं हो पा रहे। ऐसे में वहां आज भी परंपरागत तरीके से झांपे के जरिये ही जंगलों की आग बुझाई जा रही है।वन विभाग के एक उच्चाधिकारी ने नाम छापने की शर्त पर कहा कि पहाड़ के जंगलों में फायर किट लेकर जाना बेहद कठिन कार्य है। वहां तो हलक तर करने को पानी की बोतलें ले जाना ही अपने आप में एक बड़ी चुनौती होता है। ऐसे में झांपा ही आज भी आग बुझाने का कारगर हथियार है। हालांकि, वह कहते हैं कि इसके लिए गहन अध्ययन कर पहाड़ की परिस्थितियों को ध्यान में रखकर आग बुझाने के ऐसे औजार डिजाइन करने की दिशा में कदम बढ़ाए जाने चाहिए, जो हल्के हों। उधर, आग की बढ़ती घटनाओं से परेशान वन विभाग की पेशानी पर बल पड़े हैं। वजह है लगातार उछाल भरता पारा। सूरतेहाल, चिंता भी सालने लगी है कि यदि मौसम ने साथ नहीं दिया तो बड़े पैमाने पर वन संपदा तबाह हो सकती है। ऐसे में निगाहें इंद्रदेव पर टिकना स्वाभाविक है।