लक्ष्य सेन, दादा और पिता के हुनर से चमके अंतरराष्ट्रीय फलक पर
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
भारत की पुरुष बैडमिंटन टीम ने रविवार को एकतरफा फाइनल में 14 बार के चैंपियन इंडोनेशिया को 3-0 से हराकर पहली बार थामस कप का खिताब जीतकर अपना नाम इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज करा दिया। केंद्रीय खेल मंत्रालय ने थामस कप में जीत हासिल करने पर भारतीय पुरुष बैडमिंटन टीम को एक करोड़ रुपये इनाम देने की घोषणा की। इसके अलावा भारतीय बैडमिंटन संघ (बाई) ने भी खिलाड़ियों को एक करोड़ रुपये और सहायक स्टाफ को 20 लाख रुपये का इनाम घोषित किया।लक्ष्य सेन की अगुवाई में भारत ने 73 वर्ष बाद थामस कप जीत कर देश का नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिख दिया है।अल्मोड़ा में जन्मे लक्ष्य मूलरूप से जिले के सोमेश्वर के ग्राम रस्यारा निवासी हैं। अल्मोड़ा जिले के मध्यम वर्गी परिवार से निकले लक्ष्य सेन का जन्म 16 अगस्त 2001 को हुआ। लक्ष्य ने 12वीं तक की शिक्षा बीयरशिवा स्कूल अल्मोड़ा से पूरी की। उनके दादा सीएल सेन जिला परिषद में नौकरी करते थे।दादा ने राष्ट्रीय स्तर की बैडमिंटन प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेते हुए कई पुरस्कार जीते। उन्हें बैडमिंटन का भीष्म पितामह भी कहा जाता था। लक्ष्य के पिता डीके सेन भी राष्ट्रीय स्तर बैडमिंटन खिलाड़ी रह चुके हैं। वह स्पोर्ट्स अथारिटी आफ इंडिया में कोच रहे चुके हैं और लक्ष्य के कोच भी वही हैं।उनका परिवार 80 वर्षों से अधिक समय से अल्मोड़ा के तिलकपुर मोहल्ले में रह रहा है। उनके दादा जी सीएल सेन जिला परिसद में नौकरी करते थे। दादा ने सिविल सर्विसेस में राष्ट्रीय स्तर की बैडमिंटन प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया था। वहीं कई खिताब अपने नाम किए। जबकि पिता डीके सेन भी वर्तमान में कोच हैं।लक्ष्य को छह वर्ष के उम्र में मैदान पर उतारने में दादा जी का बड़ा योगदान रहा। दादा ने हाथ पकड़कर पोते लक्ष्य को बैडमिंटन पकड़ना सिखाया। पिता और दादा जी के नक्शे पर चले लक्ष्य ने भी बैडमिंटन में ही प्रतिभा दिखाई।वह अपने बड़े भाई अंतरराष्ट्रीय बैडमिंटन खिलाड़ी चिराग से भी प्रेरित हुए। माता निर्मला सेन पूर्व में निजी स्कूल में शिक्षिका थी। 2018 में लक्ष्य के पिता ने डीके सेन ने वीआरएस ले लिया था। माता ने भी स्कूल छोड़ बच्चों के प्रशिक्षण के लिए परिवार समेत बंगलुरू में शिफ्ट हो गए थे। वहां लक्ष्य और चिराग ने प्रशिक्षण लिया और पिता डीके सेन भी प्रकाश पादूकोण अकादमी में सीनियर कोच हैं। लक्ष्य ने जिला, राज्य के बाद राष्ट्रीय स्तर पर कई पदक अपने नाम किए। इसके बाद उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पैट जमाई। 10 वर्ष की उम्र में लक्ष्य ने इजराइल में पहला अंतरराष्ट्रीय खिताब स्वर्ण पदक के रूप में जीता था। पहले वह साई के कोच थे।भारतीय बैटमिंटन खिलाड़ियों ने थॉमस कप जीतकर इतिहास रच दिया है। इस जीत का आधार बने उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के निवासी शटलर लक्ष्य सेन । लक्ष्य सेन ने पहले ही मैच में इंडोनेशिया के ओलम्पिक मेडलिस्ट गिंटिंग को 9-21,21-17 व 21-16 से हरा कर जीत की बुनियाद रख दी थी। उसके बाद भारतीय खिलाड़ियों ने पीछे मुड़कर नही देखा। चलिए जानते हैं कौन है लक्ष्य सेन जिनकी तारीफ पहले भी पीएम मादी और सचिन तेंदुलकर कर चुके हैं।लक्ष्य सेन आल इंग्लैंड बैडमिंटन चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंचने वाले पांचवें भारतीय शटलर हैं। उनसे पहले 1947 में प्रकाश नाथ, 1980 में प्रकाश पादुकोण और 2001 में पुलेला गोपीचंद चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंचे थे। महिला वर्ग में साइना नेहवाल भी 2015 में इस प्रतिस्पर्द्धा का फाइनल खेल चुकी हैं। लक्ष्य सेन बैडमिंटन के विख्यात विमल कुमार, पुलेला गोपीचंद और योंग सूयू से प्रशिक्षण ले चुके हैं।लक्ष्य ने लिनिंग सिंगापुर यूथ इंटरनेशनल सीरीज में स्वर्ण, इजरायल जूनियर इंटरनेशनल के डबल और सिंगल में स्वर्ण, इंडिया इंटरनेशनल सीरीज के सीनियर वर्ग में स्वर्ण, योनेक्स जर्मन जूनियर इंटरनेशनल में रजत, डच जूनियर में कांस्य, यूरेशिया बुल्गारियन ओपन में स्वर्ण, ऐशिया जूनियर चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक, यूथ ओलंपिक में रजत, वर्ल्ड चैंपियनशिप में कांस्य पदक समेत कई राष्ट्रीय और अंर्तराष्ट्रीय चैंपियनशिप में शानदार प्रदर्शन करते हुए भारत को पदक दिलाया है।लक्ष्य सेन इसी साल मार्च में हुए योनेक्स आल इंग्लैंड बैडमिंटन चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंच गए थे। लेकिन फाइनल में कड़े मुकाबले में वह दुनिया के नंबर एक और ओलंपिक चैंपियन विक्टर एक्सेलसेन से वह मात खा गए। जिसके बाद पीएम मोदी और सचिन तेंदुलकर ने ट्वीट कर उनका हौसला बढ़ाया है। दोनों अपने ट्वीट में कहा है कि आप पर देश को गर्व हैं। उत्तराखंड के अल्मोड़ा से निकले लक्ष्य सेन ने कड़े परिश्रम से बैडमिंट की दुनिया में नया इतिहास रच दिया है। लक्ष्य अपने परिवार की तीसरी पीढ़ी के बैडमिंटन खिलाड़ी हैं। उन्होंने अपने दादा और पिता से बैडमिंटन के गुर सीखे हैं। वहीं बड़े भाई चिराग ने भी उन्हें आगे बढ़ने के लिए काफी कुछ सिखाया है। घर से ही मिले प्रशिक्षण से लक्ष्य ने 10 वर्ष की उम्र में इजरायल में पहला अंतरराष्ट्रीय स्वर्ण पदक जीता था। थामस कप जीतना ना सिर्फ इतिहास में दर्ज होगा, बल्कि देश व प्रदेश के युवा शटलरों की पौध का मनोबल बढ़ाने का काम करेगा। इस जीत को आदर्श मानकर देश में बैडमिंटन की युवा पौध तैयार होगी, जो आगे चलकर देश का मान बढ़ाएगी। इस जीत से निश्चित रूप से बैडमिंटन में युवाओं की भागीदारी बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के लक्ष्य सेन अपने शानदार खेल से युवाओं के रोल माडल बनते जा रहे हैं। लक्ष्य सेन ने थामस कप के पहले मैच में अहम जीत दिलाकर टीम का मनोबल बढ़ाया।इस जीत में लक्ष्य का अहम योगदान है। लक्ष्य ने उत्तराखंड का नाम विश्व पटल पर रोशन किया है। युवाओं को लक्ष्य से प्रेरणा लेकर अपने सफर को आगे बढ़ाने की जरूरत है। थामस कप जीतकर भारतीय टीम ने देशवासियों को गर्व का एहसास कराया है। उत्तराखंड के सपूत, प्रतिभावान बैडमिंटन खिलाड़ी लक्ष्य सेन को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं देता हूं, जिन्होंने अपने शानदार प्रदर्शन से भारतीय बैडमिंटन टीम को थामस कप जिताने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ये लेखक केनिजी विचार हैं