उजड़े घर और बंजर खेत योगी आदित्यनाथ के मन को कर गए थे व्यथित ….?
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
योगी आदित्यनाथ भले ही आज मुख्यमंत्री के रूप में उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य की बागडोर संभाल रहे हैं और राजनीति में अपनी अलग पहचान बना चुके हैं, मगर जन्मभूमि उत्तराखंड की माटी की खुशबू और यहां की मिट्टी के प्रति उनका स्नेह आज भी बना हुआ है।यही वजह है कि योगी आदित्यनाथ प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों से हो रहे पलायन तथा अनुपयोगी हो रहे संसाधनों के प्रति चिंतित हैं। इस बार जब योगी आदित्यनाथ अपने पैतृक गांव में प्रवास पर आए तो पलायन के चलते बंजर होती खेती-बाड़ी और खाली होते गांवों को देखकर व्यथित हो गए। इन दो दिनों में उन्होंने अपनी जन्मभूमि के बेहद करीब रहते हुए पिछले 20 वर्षों में यहां हुए परिवर्तन को बखूबी महसूस किया। अपने पैतृक गांव पंचूर के भ्रमण के दौरान गांव में बंद पड़े कई घर उन्होंने देखे।कहते हैं मां और बच्चे का प्यार इस दुनिया में सबसे अलग है। भले ही वह बड़ा इंसान, बूढ़ा हो या कोई भी परिस्थिति हो। मां शब्द में प्रेम और ममता है। इसी प्रेम और ममता में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने दूसरे कार्यकाल में पहली बार अपनी मां से मिलने उत्तराखंड जा रहे हैं। योगी आदित्यनाथ का ये दौरा 3 दिन का होगा। मूल रूप से उत्तराखंड से ताल्लुक रखने वाले योगी का गांव पौड़ी जिले की यमकेश्वर तहसील का पंचूर है। संन्यास दीक्षा से पूर्व 21 वर्षों तक योगी आदित्यनाथ ने इन गांवों में सामान्य जीवन बिताया।इन गांवों की एक-एक पगडंडी से वह बखूबी परिचित हैं, लेकिन उस दौर की चहल-पहल अब गांवों में नजर नहीं आ रही है। बारिश के बाद गांव के वातावरण में घुलने वाली वह मिट्टी की सौंधी महक अब उन्हें महसूस नहीं हो रही। जिन खेतों में कभी हरी-हरी फसल लहराती थी, पीली सरसों के दमकते सीढ़ीदार खेत और पक्षियों का कलरव अब फीका पड़ गया। ये सब परिवर्तन इन दो दिनों में योगी आदित्यनाथ ने महसूस किए।उत्तराखंड के पहाड़ों की इस बदलती सूरत से योगी का मन व्यथित है। इसीलिए उनके हर संबोधन और बातचीत में यह पीड़ा झलक ही जाती है। बुधवार को भी जब योगी पोखरी में कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे तो उनका संबोधन पलायन और इस बदलते परिवेश की पीड़ा पर ही केंद्रित रहा।उन्होंने अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए कहा कि बचपन व तरुण अवस्था के दिनों में वह अक्सर कई मांगलिक कार्यों में पोखरी गांव आते थे, तब यहां पीने के पानी की समस्या रहती थी। उन्हें यहां उत्पादित होने वाली खुमानी का स्वाद भी याद हो आया।उन्होंने कहा कि यहां कभी ग्रामीण बैलों के जरिये खेतों में हल जोतते थे। मगर अब स्थिति बदल गई, खेती नहीं हो रही है, यह चिंता का विषय है। उन्होंने बताया कि बचपन के दिनों में वह यमकेश्वर महादेव मंदिर के दर्शन को जाते थे, तब यहां मंदिर के निकट बहने वाली नदी में स्नान किया करते थे, लेकिन कल मंगलवार को उन्होंने देखा कि इस नदी में नाममात्र का पानी ही रह गया है। इस परिवर्तन का बड़ा कारण गांवों में खेती-बाड़ी से ग्रामीणों की विमुखता है। उन्होंने कहा कि हमें इसे बचाना होगा, गांवों को दोबारा आबाद करना होगा और खेतों में कृषि करनी होगी। बुद्धिजीवियों और समाजसेवियों के बीच में जरूर होना चाहिए उत्तराखंड न सिर्फ एक हिमालई राज्य है और देश की प्रमुख नदियों का उद्गम स्थान भी है बल्कि चीन और नेपाल जैसे देशों से हमारी सीमाएं मिलती हैं और सीमांत राज्य होने के नाते सीमाएं हमेशा आबाद रहनी चाहिए यह देखना सरकार और लोगों का प्रथम कर्तव्य है इन बिरान होते गांव को दोबारा आबाद करने के लिए उत्तराखंड में पहले से मौजूद सेल्फ हेल्प ग्रुप्स और युवक मंगल दल महिला मंगल दल और NGO के कार्यों का सम्मिलित करना हो और उन्हें एक टास्क फोर्स की तरह इस्तेमाल करते हुए नजदीकी बंजर भूमियों को दोबारा आबाद करने के लिए मजबूत किया जा सकता है उत्तराखंड के लगभग हर गांव में फौज वह प्रशासन से रिटायर हुए लोगों की सहायता लेकर उन्हीं के गांव में उनको योजनाओं से जोड़ा जा सकता है हमें अपने गांव में क्लस्टर आधारित खेती विकसित करने की जरूरत है और यह काम सिर्फ समझदारी से हो सकता है आज हर गांव में वह ब्लॉक में मौजूद कृषि भूमि जो कि अब बंजर हो चुकी है उसका भी अभिलेख प्रतिवर्ष बने और उसे सार्वजनिक किया जाए ताकि जो संस्थाएं क्षेत्र में कार्य कर रही है और करना चाहती हैं उन्हें यह पता लग सके कौन से क्षेत्रों में अधिक कार्य करने की जरूरत है उत्तराखंड की जवानी और उत्तराखंड का पानी दोनों ही देश के काम आ रहे हैं। उत्तराखंड के पास प्राकृतिक सौंदर्य, देव मंदिर और बहुत कुछ है। हमें स्प्रिचुअल टूरिज्म को बढ़ाना होगा। इससे लाखों लोगों को रोजगार मिल सकता है।