उत्तराखंड के लिए बड़े खतरे का सिग्नल
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
प्राकृतिक आपदा के लिहाज से उत्तराखंड राज्य बेहद संवेदनशील है। पहाड़ी राज्यों में कमजोर पहाड़ों से होने वाला भूस्खलन बड़ी दुश्वारी और चुनौती का सबब बना हुआ है। सबसे बड़ी बात यह है कि भूस्खलन से निजात पाने के तमाम दावे हवा-हवाई साबित हो रहे हैंकुवारी गांव 1,700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। अधिकारियों के मुताबिक साल 2013 और 2019 में इस क्षेत्र में भूस्खलन हुआ था, जिसकी वजह से गांव के पास झील बन गई है। खतरे की बात ये है कि भूस्खलन और झील की वजह से पहाड़ी पर स्थित गांव धीरे-धीरे नीचे की ओर खिसक रहा है। झील पिंडर नदी के प्राकृतिक प्रवाह को भी बाधित कर रही है, यह नदी चमोली के कर्णप्रयाग में अलकनंदा में मिल जाती है। जिला प्रशासन के अधिकारियों के मुताबिक फिलहाल झील से कोई खतरा नहीं है। झील में पानी वर्तमान में स्वाभाविक रूप से बह रहा है, लेकिन इससे बाद में बड़े पैमाने पर बाढ़ आ सकती है, जिससे पिंडर और अलकनंदा नदियों के पास मौजूद बस्तियों को बड़ा नुकसान हो सकता है।केदारनाथ आपदा और चमोली के रैणी क्षेत्र में झील टूटने के बाद आई तबाही का मंजर भला कौन भूल सकता है। इन आपदाओं के निशान अब तक हरे हैं। दोनों घटनाओं में सैकड़ों-हजारों लोगों ने अपनी जान गंवा दी थी। अब एक चिंता बढ़ाने वाली खबर बागेश्वर से आई है। यहां वैज्ञानिकों को कुवारी गांव के पास एक झील मिली है, जो कि भूस्खलन की वजह से बनी है। झील की लंबाई करीब एक किलोमीटर और चौड़ाई 50 मीटर है। दरअसल वैज्ञानिक और विशेषज्ञ इस समय पिंडारी ग्लेशियर में प्रस्तावित रीवर लिंकिंग प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं। परियोजना के जमीनी सर्वेक्षण के दौरान विशेषज्ञों को यहां एक वी-शेप की झील मिली। जो कि कुवारी गांव के पास स्थित है ग्लोबल वॉर्मिंग और जलवायु परिवर्तन का भयावह रूप देवभूमि उत्तराखंड में एकबार फिर साफ नजर आने लगा है। यहां बागेश्वर के पास स्थित कुंवारी गांव के पास पिंडारी ग्लेशियर में अंग्रेजी के वी आकार की एक झील का निर्माण हो गया है। यह झील करीब 1 किलोमीटर लंबी और 50 मीटर चौड़ी है। कुदरत के इस बदलाव का पता भी नहीं चलता अगर वैज्ञानिक और एक्सपर्ट पिंडारी ग्लेशियर के पास प्रस्तावित रिवर-लिंकिंग प्रोजेक्ट को लेकर जमीन का सर्वे नहीं कर रहे होते। देश में इस तरह का यह पहला प्रोजेक्ट है। कुंवारी गांव समुद्र तल से करीब 1,700 मीटर की ऊंचीई पर स्थित है। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिंडारी ग्लेशियर के पास इस झील का निर्माण इलाके में 2013 और 2019 में हुए भूस्खलनों की वजह से हुआ है भूस्खलन और झील का असर यह पड़ा है कि पहाड़ की जिस ढलान पर कुंवारी गांव स्थित है, वह धीरे-धीरे नीचे खिसकने लगा है। यही नहीं इसके चलते पिंडार नदी के पानी के प्राकृतिक बहाव में भी बाधा खड़ी हो रही है। यह नदी चमोली जिले के कर्णप्रयाग में अलकनंदा नदी से आकर मिलती है। बागेश्वर जिला प्रशासन के अधिकारियों ने नाम नहीं जाहिर होने देने की गुजारिश करते हुए कहा है, ‘हालांकि, झील से इस समय पानी का प्राकृतिक तौर पर रिसाव हो रहा है, लेकिन इसके चलते बाद में भयानक बाढ़ की नौबत आ सकती है, जिससे पिंडार और अलकनंदा नदियों के किनारे बसी बस्तियों को गंभीर नुकसान हो सकता हैउत्तराखंड का पेयजल विभाग नदियों को जोड़ने की एक महत्वाकांक्षी योजना पर काम कर रहा है। इसका लक्ष्य कुमाऊं क्षेत्र में पिंडीरी ग्लेशियर पर आधारित नदियों को बागेश्वर और अल्मोड़ा जिलों की बारिश पर निर्भर नदियों से जोड़ना है। बता दें कि पिंडारी ग्लेशियर से निकलने वाली पिंडार नदी 105 किलोमीटर लंबी है। इस नदी को बैजनाथ घाटी की गोमती और अल्मोड़ा जिले की बर्षा नदियों से जोड़ने का प्लान है। कुछ हफ्ते पहले पेयजल विभाग के सचिव ने बताया था, ‘इस प्रोजेक्ट का लॉन्ग टर्म विजन बहुत ही महत्वाकांक्षी है, जिसका लक्ष्य अल्मोड़ा और बागेश्वर जिलों में पानी के मुद्दे का समाधान निकालना है, जहां विभिन्न पर्यावरणनीय और जलवायु से संबंधित वजहों से बर्षा नदियां सूख रही हैं।’
कुंवारी गांव पर मंडरा रहे खतरे के बारे में सोचकर भी बदन सिहर जाता है। वैसे फिलहाल उत्तराखंड के अधिकारियों का कहना है कि पिंडारी ग्लेशियर के पास बनी झील से फिलहाल ‘कोई तात्कालिक खतरा नहीं है।’ लेकिन,भूकंप के लिए भी संवेदनशील होने और जलवायु परिवर्तन की भयावह स्थिति ने हमेशा अलर्ट रहने को जरूर मजबूर कर दिया है। शंभू ग्लेशियर से निकलती है। नदी कुंवारी गांव से करीब पांच किमी आगे पिंडारी ग्लेशियर से निकलने वाली पिंडर नदी में मिल जाती है। ग्रामीणों के अनुसार झील बोरबलड़ा के तोक भराकांडे से करीब चार किमी और कुंवारी गांव की तलहटी से करीब दो किमी दूर कालभ्योड़ नामक स्थान पर बनी है जहां से करीब चार किमी आगे जाकर शंभू नदी पिंडर में मिल जाती है।शंभू नदी में बनी झील टूटी तो भारी मात्रा में पानी और मलबा बहेगा जो आगे जाकर पिंडर में मिलकर और शक्तिशाली बन जाएगा। पिंडर चमोली जिले के थराली, नारायणबगड़ से होते हुए कर्णप्रयाग में अलकनंदा में जाकर मिलती है। ऐसे में अगर झील टूटी तो चमोली जिले का बड़ा भूभाग नुकसान की जद में आ सकता है। भूस्खलन होने के कारण गांव से विस्थापन की प्रक्रिया शुरू हो गई है।अधिकारी ने बताया कि अतिसंवदेनशील के रूप में चिह्नित 18 परिवारों के विस्थापन का धन प्रशासन के पास आ गया है और उनमें से 10-12 परिवारों ने विस्थापन शुरू भी कर दिया है। उन्होंने कहा कि बाकी परिवारों को भी इस संबंध में नोटिस भेजे जा चुके हैं।उपजिलाधिकारी ने बताया कि कुवारी गांव के 70-75 परिवारों को विस्थापन के लिए चिह्नित किया गया है और चरणबद्ध तरीके से उन्हें विस्थापित किया जाएगा।
पर्यावरण और प्राकृतिक संतुलन के लिहाज से उत्तराखंड अतिरिक्त रूप से संवेदनशील है और इसका खास तौर पर ध्यान रखे जाने की जरूरत है।