पंडित राम प्रसाद बिस्मिल का क्रांतिकारी दर्शन भारत की सरकारें

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पंडित राम प्रसाद बिस्मिल का क्रांतिकारी दर्शन भारत की सरकारें

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

पं. राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून, 1897 को उत्तर प्रदेश में स्थित शाहजहांपुर में हुआ। राम प्रसाद बिस्मिल ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ लड़ने वाले सबसे उल्लेखनीय भारतीय क्रांतिकारियों में से थे। उन्होंने 19 साल की उम्र से ही बिस्मिल के नाम से उर्दू और हिंदी में शक्तिशाली देशभक्ति की कविताएँ लिखनी शुरु कर दी थी। उन्होंने भगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद जैसे नेताओं के साथ हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया और 1918 के मैनपुरी षड्यंत्र और 1925 के काकोरी षड्यंत्र में भाग लिया।काकोरी षडयंत्र में भाग लेने के लिए मात्र 30 वर्ष की आयु में 19 दिसंबर, 1927 को गोरखपुर जेल में वे शहीद हो गए थे। जेल में रहते हुए, उन्होंने ‘मेरा रंग दे बसंती चोला’ और ‘सरफरोशी की तमन्ना’ जैसे देश भक्ति गीत लिखे। राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म एक नगर पालिका कर्मचारी मुरलीधर और उनकी पत्नी के घर हुआ था। उन्होंने घर पर हिंदी और मौलवी से उर्दू सीखी। पिता की आपत्ति के बावजूद उन्हें अंग्रेजी मीडियम के एक स्कूल में भर्ती कराया गया।वह आर्य समाज के सदस्य थे और स्वामी दयानंद सरस्वती की किताबों से प्रेरित थे। धन की कमी के कारण उन्हें स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था। लेकिन फिर भी उन्होंने कविता पढ़ना और लिखना नहीं छोड़ा।  जब वे 18 वर्ष के थे तब एक भारतीय राष्ट्रवादी और आर्य समाज मिशनरी भाई परमानंद को मौत की सजा सुनाई गई। इसे देख उनमें देशभक्ति की भावना जागृत हो गई। परमानंद की मृत्युदंड को पढ़कर उन्होंने ‘मेरा जन्म’ (मेरा जन्म) शीर्षक से एक हिंदी कविता की रचना की। जिसका उन्होंने अंग्रेजी और बंगाली रचनाओं में भी अनुवाद किया। उन्होंने मातृवेदी नामक एक संस्था बनाई और स्कूल शिक्षक गेंदा लाल दीक्षित से संपर्क किया। वे दोनों क्रांतिकारी विचारों को साझा करते थे और देश के युवाओं को ब्रिटिश सरकार से लड़ने के लिए संगठित करना चाहते थे।इस बीच, बिस्मिल ने देशभक्ति और राष्ट्रवादी विषयों के साथ मूल और अनुवादित सभी कार्यों को जनता में वितरित करने के लिए प्रकाशित किया। · बिस्मिल 1918 के मैनपुरी षडयंत्र में शामिल थे जिसमें पुलिस ने बिस्मिल सहित कुछ युवाओं को किताबें बेचते हुए पाया, जिन पर सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया था। बिस्मिल यमुना नदी में कूदकर गिरफ्तारी से बच गए।उन्होंने अहमदाबाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1921 के अधिवेशन में भी भाग लिया। · बिस्मिल सचिंद्र नाथ सान्याल और जादूगोपाल मुखर्जी के साथ हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचआरए) के मुख्य संस्थापकों में से एक थे। संगठन की स्थापना 1924 में हुई थी और इसका संविधान मुख्य रूप से बिस्मिल द्वारा तैयार किया गया था।एचआरए ने कई पर्चे तैयार किए जो क्रांतिकारी गतिविधियों के माध्यम से लोगों को सरकार से लड़ने के लिए प्रेरित करने की मांग करते थे। बिस्मिल को शायद काकोरी षडयंत्र मामले के लिए सबसे ज्यादा याद किया जाता है। सरकारी पैसे लेकर ट्रेन लूटने की योजना के पीछे वह मास्टरमाइंड था। घटना 9 अगस्त 1925 को लखनऊ के पास काकोरी में हुई थी। बिस्मिल ने नौ अन्य क्रांतिकारियों के साथ ट्रेन रोक दी और सरकारी खजाने को लूट लिया। कट्टरपंथियों ने साजिश के लिए अर्ध-स्वचालित पिस्तौल का इस्तेमाल किया। इस घटना में दुर्घटनावश एक यात्री की मौत हो गई जिसने इसे हत्या का मामला बना दिया। · बिस्मिल के अलावा, ट्रेन डकैती में शामिल कुछ अन्य लोग अशफाकउल्ला खान, चंद्रशेखर आजाद, राजेंद्र लाहिड़ी, मनमथनाथ गुप्ता थे। जिसके बाद ब्रिटिश सरकार क्रांतिकारियों पर भारी पड़ी और काकोरी षडयंत्र मामले के संबंध में 40 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया। हालांकि जो लोग इससे संबंधित नहीं थे उन्हें सुनवाई के बाद छोड़ दिया गया।  इस पूरे मामले पर 18 महीने तक कानूनी प्रक्रिया चली। जिसके बाद बिस्मिल, लाहिड़ी, खान और ठाकुर रोशन सिंह को मौत की सजा दी गई। कुछ अन्य को पोर्ट ब्लेयर की सेलुलर जेल में भेज दिया गया, जबकि अन्य को अलग-अलग अवधि की जेल की सजा दी गई। · गोरखपुर सेंट्रल जेल में बंद रहने के दौरान, बिस्मिल एक राजनीतिक कैदी के रूप में व्यवहार करने की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर चले गए। मौत की सजा पर व्यापक आक्रोश और क्रांतिकारियों के लिए विभिन्न भारतीय राजनीतिक नेताओं के समर्थन के बावजूद, सरकार नहीं हिली।बिस्मिल को मात्र 30 साल की उम्र में 19 दिसंबर 1927 को गोरखपुर जेल में फांसी दी गई थी।जिसकी मदद से उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत का मुकाबला किया। काकोरी एक्शन में भी जिसका प्रयोग हुआ। पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की महत्वपूर्ण निशानी उनका रिवाल्वर मिल गया है। 97 साल बाद अब लोग अब उस शौर्यपूर्ण इतिहास की निशानी को देख सकेंगे। खास बात यह रही कि यह निशानी पंडित रामप्रसाद बिस्मिल की 125वीं जयंती पर दुनिया के सामने आई।  अब इसे शहीद संग्रहालय में रखवा दिया गया हैै। जिसे कोई भी देख सकेगा। शनिवार रात पंडित रामप्रसाद बिस्मिल की 125वीं जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में वित्‍त मंत्री की मौजूदगी में एसपी ने इसे मुख्य सचिव को सौंपा।काकोरी एक्शन के बाद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल पुलिस से छिप रहे थे। वह अक्सर आर्य समाज मंदिर के पास रहने वाले कुलआपुर परिवार के लाला सूरज प्रसाद के पास जाते थे। उन्होंने अपनी गिरफ्तारी से कुछ समय पहले इस रिवाल्वर को उनके सुपुर्द कर दिया। इसके बाद सूरज प्रसाद ने रिवाल्वर अपने बेटे राजेंद्र प्रसाद को सुरक्षित रखने के लिए दिया। राजेंद्र प्रसाद से यह रिवाल्वर उनके बेटों शरद कुमार व अजय कुमार के पास आया। दोनों से उनके पिता ने कहा था कि यह रिवाल्वर गलत हाथों में नहीं जाना चाहिए। यह अनमोल व महत्वपूर्ण वस्तु है इसे सुरक्षित रखना। दोनों उनसे कई बार मिले, लेकिन संकोच में इस रिवाल्वर के बारे में कुछ नहीं बता सके। करीब दस माह पहले जब उन्होंने शरद से काफी पूछा तो उन्होंने पूरी जानकारी दी। कहा कि बिस्मिल जी का रिवाल्वर हमारे पास है। उसे रख लीजिए। खन्ना ने बताया कि उन्होंने इस रिवाल्वर को एसपी एस आनंद की सुपुर्दगी में दे दिया, क्योंकि उस समय संग्रहालय नहीं बना था। 125वीं जयंती से बेहतर असवर नहीं हो सकता था इसे प्रशासन को सौंपने का। इसलिए एसपी से मुख्य सचिव के हाथों में यह रिवाल्वर दिलाया गया है।शहीद संग्रहालय में रखने के लिए दिया। जिसके बाद इसे सम्मान के साथ संग्रहालय में रख दिया गया। जहां अब आम लोग भी इसे देख सकेंगे। बिस्मिल की पहली पुस्तक सन् 1916 में छपी थी जिसका नाम था-अमेरिका की स्वतन्त्रता का इतिहास। बिस्मिल के जन्म शताब्दी वर्ष: 1997 में यह पुस्तक स्वतन्त्र भारत में फिर से प्रकाशित हुई। जिसका विमोचन भारत के पूर्व प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया।” उस कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक प्रो॰ राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैया) भी उपस्थित थे। इस सम्पूर्ण ग्रन्थावली में बिस्मिल की लगभग दो सौ प्रतिबन्धित कविताओं के अतिरिक्त पाँच पुस्तकें भी शामिल की गयी थीं। परन्तु आज तक किसी भी सरकार ने बिस्मिल के क्रान्ति-दर्शन को समझने व उस पर शोध करवाने का प्रयास ही नहीं किया। बिस्मिल सरीखे असंख्य शहीदों के सपनों का भारत बनाने की आवश्यकता है। जिससे हमारे युवाओं को इन क्रांतिकारियों के वास्तविक दर्शन और चिंतन का बोध हो सके। जनवरी 1928 के किरती में भगत सिंह ने काकोरी के शहीदों के बारे में एक लेख लिखा था। काकोरी के शहीदों की फाँसी के हालात शीर्षक लेख में भगतसिंह बिस्मिल के बारे में लिखते हैं:“श्री रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ बड़े होनहार नौजवान थे। गज़ब के शायर थे। देखने में भी बहुत सुन्दर थे। योग्य बहुत थे। जानने वाले कहते हैं कि यदि किसी और जगह या किसी और देश या किसी और समय पैदा हुए होते तो सेनाध्यक्ष बनते। आपको पूरे षड्यन्त्र का नेता माना गया। चाहे बहुत ज्यादा पढ़े हुए नहीं थे लेकिन फिर भी पण्डित जगतनारायण जैसे सरकारी वकील की सुध-बुध भुला देते थे। चीफ कोर्ट में अपनी अपील खुद ही लिखी थी, जिससे कि जजों को कहना पड़ा कि इसे लिखने में जरूर ही किसी बुद्धिमान व योग्य व्यक्ति का हाथ है।”सचमुच आज हमें अमेरिका से शिक्षा लेते हुए अपने इस महान क्रांतिकारी नेता पंडित राम प्रसाद बिस्मिल का पूजन उसी प्रकार करना चाहिए जैसे अमेरिका जॉर्ज वाशिंगटन का करता है। अपने क्रांतिकारियों के प्रति ऐसी असीम श्रद्धा उत्पन्न करने के लिए उन्हें क्रांति का सेनापति स्वीकार करते हुए हमें देश के युवाओं का जागरण करना चाहिए। भारत की सरकार को भी चाहिए कि अपने क्रांतिकारियों को उचित सम्मान देते हुए सरकारी स्तर पर इन लोगों के विषय में विशेष जानकारी उपलब्ध कराई जाए। जिन क्रांतिकारियों ने देश के स्वाधीनता संग्राम में बढ़ चढ़कर भाग लिया उनके चित्र नई संसद भवन के पार्क में आदमकद प्रतिमाओं के रूप में स्थापित किया जाएं। जिससे हमारे नेताओं को भी यह सीखने का अवसर उपलब्ध हो कि इन क्रांतिकारियों ने देश की आजादी के लिए किस प्रकार संघर्ष किया था और उनका आजाद भारत बनाने का सपना कैसा और क्या था?

लेखक के निजी विचार हैं वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरतहैं।