क्या उत्तराखण्ड के जंगलों से घास लाना ‘गुनाह’ है सरकार को क्यों बदनाम करवा रही है
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड के सीमांत जनपद चमोली से पहाड़ों की दास्तान वाली खबर सामने आ रही है, जहां राज्य के गठन के 21 साल पूर्ण हो चुके है। वहीं महिलाएं आज भी अपने हक के लिए जुझती हुई नजर आ रही है।वहीं कुछ महिला जंगल से घास लेकर आ रही थी, तभी कुछ पुलिस व सीआईएसएफ वालों ने उन्हें रोकर उनसे घास छीनने का प्रयास किया, बल्कि उन्हें थाना ले जाकर उनका चालान भी किया गया।वहीं यह वीडियो चमोली जिले के हेंलंग का है, जहाँ THDC कम्पनी की जल विद्युत परियोजना का काम चल रहा है। वहीं वर्षों से जहाँ गाँव के लोग अपने पालतू- पशुओं के लिए जिन चारागाह से चारापत्ती काटते थे अब उस पर भी रोक लगा दी गई है।बीते 15 जुलाई को इसी मामले में स्थानीय महिलाओं से सीआईएसएफ और स्थानीय पुलिस ने नोकझोंक भी की औऱ उनको उठाकर नजदीकी पुलिस स्टेशन भी ले जाया गया जहां बाद में उनका चालान भी हुआ। ग्रामीणों ने बताया कि THDC द्वारा उनके पारंपरिक चारागाह को खत्म किया जा रहा है ।वहीं बताया जा रहा है कि जहां चारागाह था वहां अब फिलहाल मिट्टी डंप की जा रही है औऱ भविष्य में यहाँ खेल मैदान बनेगा। ग्रामीण युवक ने बताया कि खेल मैदान बनाने का यहाँ कोई औचित्य नही है हमारे लिए तो पशुओं के लिए चारापत्ती का इंतज़ाम करना प्राथमिकता है। सुदूर पहाड़ की एक सीधी-साधी घसियारी की पीठ पर लदा घास का गट्ठर उतारना राज्य सरकार के गले की फांस भी बन सकता है, यह पंद्रह जुलाई को चमोली जिले के हैलंग इलाके में महिला से जोर-जबरदस्ती कर रहे पुलिसकर्मियों ने शायद ही सोचा हो। लेकिन प्रकृति के त्योहार हरेले से एक दिन पूर्व मंदोदरी देवी नाम की इस महिला के साथ हुई पुलिसिया बदसलूकी ने पूरे प्रदेश के लोगों को इतना उद्वलित कर दिया कि यह मामला निकट भविष्य में सरकार के लिए बड़ी परेशानी के रूप में देखा जाने लगा है। इस प्रकरण की पृष्ठभूमि की जानकारी के लिए बताते चलें कि उत्तराखंड के चमोली जिले में जोशीमठ शहर के पास टीएचडीसी की पीपलकोटी विष्णुगाड़ नाम की जल विद्युत परियोजना चल रही है। इसी परियोजना के लिए हैलंग नाम की एक जगह पर सुरंग का निर्माण किया जा रहा है। परियोजना को संचालित करने वाली कम्पनी के पास इस सुरंग से निकले मलवे को डंप करने के लिए जो स्थान उपलब्ध हैं, वहां मलवे का निपटारा करना खासा महंगा है। इसलिए कम्पनी सुरंग के इस मलवे को अपनी सुविधानुसार सीधे-सीधे अलकनंदा नदी में डंप करने की सोच रही है। लेकिन मलवा खुलेआम नदी के हवाले करने से होने वाले विवाद की वजह से कम्पनी ने बैकडोर का सहारा लेते हुए नदी के किनारे एक स्थान पर इस मलवे को डंप करना शुरू कर दिया जिससे भविष्य में यह मलवा बाढ़ आने पर खुद ही नदी में समा जाए। इस जगह पर गांव वाले अपनी चारागाह होने का दावा करते हैं। अभी कुछ समय पहले ही उत्तराखंड में चुनाव से पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में ‘मुख्यमंत्री घस्यारी कल्याण योजना‘ का शुभारंभ किया गया था। ताकि इस योजना के माध्यम से पशुपालकों को पौष्टिक पशु आहार उपलब्ध करवाया जाएगा। जिससे कि दुग्ध उत्पादन में वृद्धि हो सकेगी और लोगों की कृषि और पशुपालन में रुचि बढ़े और ये लोगों के आजीविका का साधन भी बन सके… लेकिन ऐसी स्थिति में क्या आपको लगता है कि उत्तराखंड की भोली भाली जनता के साथ ये सही हो रहा है.हालांकि दूसरी तरफ पुलिस का कहना है कि जिस जगह पर महिलाएं घास काटने पहुंची थी वो टीएचडीसी की पीपलकोटी विष्णुगाड जल विद्युत परियोजना के डंपिंग जोन हैयहां खेल मैदान और अन्य विकास योजनाओं का निर्माण प्रस्तावित है। और पुलिस का आरोप है कि निर्माण कार्य के दौरान ये महिलाएं चारापत्ती लेने गई थीं। शांति व्यवस्था बनाने के लिए उन्हें वाहन से थाने में लाया गया। उन्हें हिदायत देकर छोड़ दिया गया। लेकिन लोगों का सवाल है कि केवल घास काटकर लाने से कौन सी शांति भंग हो गई ? अगर गांव के लोग जंगलों से घास नहीं लाएंगे तो अपने जानवरों को क्या खिलाएंगे। वैसे भी उत्तराखण्ड के पहाड़ पलायन का दंश झेलने को मजबूर हैं, उसमें भी जो लोग यहां रहकर जंगल और जानवरों के बीच गुजर बसर कर रहे हैं, उनको परेशान करके पुलिस क्या संदेश देना चाहती है? उन महिलाओं को यूं पकड़कर गाड़ी में बैठाकर थाने ले जाना मामूली से चारा पत्ती के लिए… उनका चालान काटना… उनके साथ छीना झपटी करना शांत भंग करना नहीं था?अब आपको मन में डंपिग जोन को लेकर भी सवाल खड़े हो रहे होंगे तो आपको बता दूं कि टीएचडीसी इंडिया लिमिटेड (पूर्व नाम टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कारपोरेशन लिमिटेड) भारत सरकार एवं उ.प्र. सरकार का संयुक्त उपक्रम है। विद्युत घटकों के लिए भारत सरकार एवं उ.प्र. सरकार के बीच कुछ इक्विटी शेयर हैं। इस कंपनी का गठन जुलाई, 1988 में 2400 मेगावाट के टिहरी हाइड्रो पावर कॉम्पलैक्स और अन्य जल विद्युत परियोजनाओं के विकास, परिचालन एवं अनुरक्षण के लिए किया गया था। हालांकि इसकी गाइडलाइन के अनुसार ऐसे जोन में जाकर किसी प्रकार का नुकसान करना जरूर प्रतिबंधित है लेकिन क्या चारा पत्ती ले जाना इतना बड़ा अपराध है कि पुलिस इसके लिए आपको गिरफ्तार कर लेगी उपर से चालान काट लेगीअब इस पूरी घटना के पीछे ये सवाल भी खड़ा हो रहा है कि सरकार अगर विकास की बात करती है तो ये कौन लोग हैं जो सरकार का नाम ख़राब करने की कोशिश कर रहे हैं. और सरकार अब इन लोगों पर क्या एक्शन लेगी जो जनता का हक मारने के लिए बैठे हैंजो बिना कारण अपनी मर्जी चला रहे हैं और देवभूमि की भोली–भोली जनता का हक छीनना चाह रहे हैं। जल, जंगल, जमीन को बचाने की लड़ाई लड़ रहे तमाम जनता का साथ देने की और हमें यह पता है कि इस लड़ाई को आम जनता को ही लड़ना होगा, क्योंकि इतिहास गवाह है कि शासक और शोषक वर्ग केवल अपने हित का ही ख्याल रखेगा, चाहे कागजों पर ये कितने ही लक्ष्य तय क्यों न कर लें।
लेखक के निजी विचार हैं वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरतहैं