हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिलाने में रहा अहम योगदान भारत रत्न प. गोविंद बल्लभ पंत

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हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिलाने में रहा अहम योगदान भारत रत्न प. गोविंद बल्लभ पंत

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला 

10 सितंबर 1887 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा स्थित खूंट गांव में जन्मे गोविंद बल्लभ पंत ने वर्ष 1905 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। 1909 में कानून की परीक्षा सबसे अधिक अंकों से पास करने पर पंत जी को लैम्सेन अवार्ड दिया गया। इसके बाद उन्होंने अपने गृहनगर अल्मोड़ा आकर वकालत शुरू कर दी, और वे जीवन भर अंग्रेजी हुकूमत से भारतीय जनता के हक की लड़ाई लड़ते रहे।गोविंद बल्लभ पंत ने वर्ष 1921 में सक्रिय राजनीति में आए। वह लेजिस्लेटिव असेंबली में चुने गए। उस समय उत्तर प्रदेश, यूनाइटेड प्रोविंसेज ऑफ आगरा और अवध कहलाता था। 1932 में पंत देहरादून की जेल में बंद थे। इस दौरान उनकी जवाहर लाल नेहरू से मुलाकात हुई।आजादी के बाद वह उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री और देश के चौथे गृहमंत्री गोविंद बल्लभ पंत ने राजनीति की शुरुआत बरेली से की थी। कांग्रेस ने देश के पहले विधानसभा चुनाव-1951 में बरेली शहर सीट से चुनाव लड़ने भेजा और जीतने में सफल रहे।भारत रत्न . गोविंद बल्लभ पंत केवल स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई वरन आजादी के बाद भी उन्होंने राष्ट्र के नवनिर्माण में अहम भूमिका निभाई। भारतीय संविधान में हिन्दी भाषा को राजभाषा का दर्जा दिलाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान था।14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से निर्णय लिया कि हिंदी ही भारत की राजभाषा होगी, लेकिन देश में जब 26 जनवरी 1950 को हमारा संविधान लागू हुआ तो इसमें देवनागरी में लिखी जाने वाली हिंदी सहित 14 भाषाओं को आठवीं सूची में आधिकारिक भाषाओं के रूप में रखा गया।जब भी हिंदी दिवस मनाया जाता है तो लोग भारत रत्न . गोविंद बल्लभ पंत को याद करना नहीं भूलते हैं। आजादी के बाद जब राजभाषा की चर्चा संविधान सभा में हुई तो हिंदी को लेकर काफी विरोध शुरू हुआ। एक धड़ा उर्दू मिश्रित हिंदुस्तानी भाषा को राजभाषा बनाने की वकालत कर रहा था।तब पंत जी ने मुखरता से देवनागरी में लिखे जाने वाली हिंदी भाषा को राजभाषा बनाए जाने की वकालत की। जिस पर महात्मा गांधी, पुरुषोत्तम दास टंडन आदि नेताओं ने अपनी सहमति जताई। जिसके बाद संविधान सभा में भी एकमत से निर्णय लिया गया। उनके इसी कार्य को देखते हुए 1957 में उन्हें भारत रत्न के सम्मान से नवाजा गया। हिंदी दिवस के मौके पर हिंदी के प्रोत्साहन हेतु कई पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं, जैसे- राजभाषा कीर्ति पुरस्कार और राष्ट्रभाषा गौरव पुरस्कार। कीर्ति पुरस्कार जहां ऐसे विभाग को दिया जाता है जिसने वर्ष भर हिंदी में कार्य को बढ़ावा दिया हो, वहीं राष्ट्रभाषा गौरव पुरस्कार तकनीकी-विज्ञान लेखन हेतु दिया जाता है। इसके अतिरिक्त, इस दिवस के अवसर पर देश भर के विद्यालयों, महाविद्यालयों व विश्वविद्यालयों में पुरस्कार वितरण, हिंदी कविता प्रतियोगिता, वाद-विवाद प्रतियोगिता, निबंध लेखन आदि का आयोजन किया जाता है। इस प्रकार के कार्यक्रमों से निश्चित ही हिंदी के प्रयोग को नागरिक व प्रशासनिक स्तर पर बढ़ावा मिलता है। उत्तर भारत के लगभग सभी हिस्सों में साधारण लोगों की बोलचाल, पढ़ाई-लिखाई से लेकर संस्थागत स्तर तक हिंदी को जगह मिली हुई है। लेकिन, इसके अलावा भी देश के ज्यादातर इलाकों में हिंदी ने जो जगह बनाई है, उसमें इसके विकास और प्रसार की बड़ी संभावनाएं हैं। पर यह तभी संभव हो पाएगा जब सरकार के स्तर पर इसके प्रयोग को बढ़ावा दिया जाएगा और कुछ मामलों में इसे अनिवार्य भी बनाया जाएगा। 

हिंदी हमारी आन है, हिंदी हमारी शान है,
हिंदी हमारी चेतना वाणी का शुभ वरदान है।

हिंदी हमारी वर्तनी, हिंदी हमारा व्याकरण
हिंदी हमारी संस्कृति हिंदी हमारा आचरण।।

कविता का उल्लेख करते समय आपकी आवाज में जोश होना चाहिए, ताकि सभा में बैठे सभी श्रोताओं के अंदर अपनी मातृ भाषा के प्रति एक जोश जाग उठे और वह आपकी प्रशंसा करने से खुद को ना रोक पाएं। विदेशों में अपनी मातृ भाषा में प्रोफेशनल एजुकेशन दी जाती है और इसी से प्रेरित होकर भारत में भी हिंदी भाषा में इंजीनियरिंग की पढ़ाई की शुरुआत की गई थी। लेकिन, ये कोशिश कामयाब नहीं हो सकी। भोपाल के अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय ने साल 2016 में इसकी शुरुआत की। ये देश का पहला विश्वविद्यालय है, जहां हिंदी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई की शुरुआत की गई।राष्ट्रवाद से प्रेरित ये प्रयोग सफल नहीं हो सका और कई परेशानियों के चलते कोर्स बंद करना पड़ा। इसके बाद इन छात्रों को अन्य संस्थानों में एडजस्ट कर दिया गया। सिविल, इलेक्ट्रिकल और मैकेनिकल में कुल 90 सीटी के लिए आवेदन मांगे गए थे, लेकिन सिर्फ 12 छात्रों ने आवेदन किया था। छात्रों की कम संख्या और साथ ही कोर्स को ऑल इंडिया काउंसिल ऑफ टेक्निकल एजुकेशन की मंजूरी भी हासिल नहीं थी। इसलिए, इस बात की चर्चा ज़ोर पकड़ने लगी कि हिंदी में इंजीनियरिंग करने के बाद रोज़गार के अच्छे मौके नहीं मिल पाएंगे। इस मामले में तत्कालीन कुलपति ने कहा था कि विश्वविद्यालय का लक्ष्य सिर्फ रोज़गार सुनिश्चित करना नहीं है, बल्कि हम चाहतें हैं कि छात्र नौकरी करने की जगह नौकरी प्रदान करें। हमारे देश की करीब आधी आबादी हिंदी बोलती, समझती है। इसके बावजूद उच्च शिक्षा और प्रोफेशनल कोर्सेज़ में एक माध्यम के तौर पर हिंदी के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। हिंदी भाषा के लिए अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय की कोशिश की तारीफ की जानी चाहिए। लेकिन, व्यवहारिकता को समझते हुए इसे नए तरीके से आगे बढ़ाए जाने की ज़रूरत है। दुनिया के कंप्यूटर युग में बदलने के बाद हिन्दी का प्रचार-प्रसार अत्यधिक तेजी से हुआ। कई तकनीकी विषयों की हिन्दी में पढ़ाई ने हिन्दी के प्रसार को नया आयाम दिया है। हिन्दी के प्रभाव क्षेत्र का यह कारवां आज यहां तक पहुंच गया है कि अंग्रेजी, स्पेनिश और मंदारिन के बाद हिन्दी दुनिया की चौथी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। भारतीय संविधान में हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान था. 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से निर्णय लिया कि हिंदी ही भारत की राजभाषा होगी, लेकिन देश में जब 26 जनवरी 1950 को हमारा संविधान लागू हुआ तो इसमें देवनागरी में लिखी जाने वाली हिंदी सहित 14 भाषाओं को आठवीं सूची में आधिकारिक भाषाओं के रूप में रखा गया. छोटे मोटे विरोध के बाद 26 जनवरी 1965 को हिंदी देश की राजभाषा बन गई. भारतीय संविधान में हिन्दी भाषा को राजभाषा का दर्जा दिलाने में पंत महत्वपूर्ण का उल्लेख योगदान था.

लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरतहैं।