भगवान विश्वकर्मा को दुनिया का पहला वास्तुकार माना गया है

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भगवान विश्वकर्मा को दुनिया का पहला वास्तुकार माना गया है

 

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला 

विश्व के पहले इंजीनियर के जन्मदिवस को देशभर में विश्वकर्मा जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष विश्वकर्मा जयंती 17 सितंबर 2018 को सोमवार के दिन मनाई जाएगी। प्रत्येक वर्ष विश्वकर्मा पूजा सूर्य के कन्या राशि में प्रवेश होने पर या कन्या सक्रांति पर मनाई जाती है। इस दिन श्री विश्वकर्मा जी का जन्म दिवस होता है जिस कारण इसे विश्वकर्मा जयंती भी कहते हैं।
श्री विश्वकर्मा जी को पृथ्वी का प्रथम इंजीनियर या वास्तुकार माना जाता है। इस दिन कारखानों, उद्योगों, फेक्ट्रियों, हर प्रकार की मशीनों और औजारों की पूजा की जाती है। इनकी पूजा सभी कलाकार, बुनकर, शिल्पकार, औद्योगिक घरानों और फैक्ट्री के मालिकों द्वारा की जाती है। इस दिन अधिकतर कलकारखाने बंद रहते हैं और लोग हर्षोल्लास के साथ भगवान विश्वकर्मा जी की पूजा करते हैं। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, दिल्ली आदि राज्यों में भगवान विश्वकर्मा की भव्य प्रतिमा स्थापित कर उनकी सेवा आराधना की जाती है।बताया जाता है कि प्राचीन काल में जितनी भी राजधानियां थी, प्राय: सभी को विश्वकर्मा जी ने बनाया है। सतयुग कास्वर्ग लोक‘, त्रेता युग कीलंका‘, द्वापर कीद्वारिकाहस्तिनापुरऔर इन्द्रप्रस्थ आदि सभी विश्वकर्मा जी द्वारा ही रचित हैं। ‘सुदामापुरी’ की रचना के विषय में भी यह कहा जाता है कि उसके निर्माता विश्वकर्मा जी ही थे। हजारों साल से आर्किटेक्चर के जिन नायाब नमूनों के बारे में हमने पढ़ा है। इनमें से कुछ अब भी मौजूद हैं। इन सबका निर्माण विश्वकर्मा जी ने ही किया है। इस तरह भगवान विश्वकर्मा के जन्म को लेकर शास्त्रों में जो कथाएं मिलती हैं, उससे ज्ञात होता है कि विश्वकर्मा एक नहीं कई हुए हैं और समय-समय पर अपने कार्यों और ज्ञान से वो सृष्टि के विकास में सहायक हुए हैं। शास्त्रों में भगवान विश्वकर्मा के इस वर्णन से यह संकेत मिलता है कि विश्वकर्मा एक प्रकार का पद और उपाधि है, जो शिल्पशास्त्र का श्रेष्ठ ज्ञान रखने वाले को कहा जाता था। सबसे पहले हुए विराट विश्वकर्मा, उसके बाद धर्मवंशी विश्वकर्मा, अंगिरावंशी, तब सुधान्वा विश्वकर्मा हुए। फिर शुक्राचार्य के पौत्र भृगुवंशी विश्वकर्मा हुए। मान्यता है कि देवताओं की विनती पर विश्वकर्मा ने महर्षि दधीची की हड्डियों से स्वर्गाधिपति इंद्र के लिए एक शक्तिशाली वज्र बनाया था।
प्राचीन काल में जितने भी सुप्रसिद्ध नगर और राजधानियां थीं, उनका सृजन भी विश्वकर्मा ने ही किया था, जैसे सतयुग का स्वर्ग लोक, त्रेतायुग की लंका, द्वापर की द्वारिका और कलियुग के हस्तिनापुर। महादेव का त्रिशूल, श्रीहरि का सुदर्शन चक्र, हनुमान जी की गदा, यमराज का कालदंड, कर्ण के कुंडल और कुबेर के पुष्पक विमान का निर्माण भी विश्वकर्मा ने ही किया था। वो शिल्पकला के इतने बड़े मर्मज्ञ थे कि जल पर चल सकने योग्य खड़ाऊ बनाने की सामथ्र्य रखते थे भगवान विश्वकर्मा के जन्मदिन को विश्वकर्मा पूजा, विश्वकर्मा दिवस या विश्वकर्मा जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। कहते हैं, इसी दिन भगवान विश्वकर्मा ने सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा के सातवें धर्मपुत्र के रूप में जन्म लिया था। भगवान विश्वकर्मा को ‘देवताओं का शिल्पकार’, ‘वास्तुशास्त्र का देवता’, ‘प्रथम इंजीनियर’, ‘देवताओं का इंजीनियर’ और ‘मशीनों का देवता’ भी कहा जाता है।विष्णु पुराण में विश्वकर्मा को ‘देव बढ़ई’ कहा गया है। यही वजह है कि हिन्दू समाज में विश्वकर्मा पूजा का विशेष महत्व है। हो भी क्यों न, अगर मनुष्य को शिल्प ज्ञान न हो तो वह निर्माण कार्य नहीं कर पाएगा, निर्माण नहीं होगा तो भवन और इमारतें नहीं बनेंगी, जिससे मानव सभ्यता का विकास रुक जाएगा। मशीनें और औजार न हों तो दुनिया तरक्की नहीं कर पाएगी।कहने का अर्थ है कि सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक विकास के लिए शिल्प ज्ञान होना बेहद जरूरी है। उत्तराखंड स्थित हथिया देवाल भगवान शिव का एक अति प्राचीन मंदिर है. इस मंदिर को भगवान विश्वकर्मा द्वारा निर्मित माना जाता है. हालांकि, यहां शिवलिंग की पूजा नहीं की जाती है. दरअसल, यहां शिवलिंग का अरघा विपरीत दिशा में है. विश्वकर्मा ने एक ही हाथ से मंदिर और आरघा का निर्माण किया था. एक रात में निर्माण कार्य पूरा करने की शीघ्रता में यह भूल हुई, ऐसी लोक मान्यता है.अगर शिल्प ज्ञान जरूरी है तो शिल्प के देवता विश्वकर्मा की पूजा का महत्व भी बढ़ जाता है। भारतीय परम्परा में निर्माण कार्य से जुड़े लोगों को ‘विश्वकर्मा की संतान’ माना जाता है। अपने रचनात्मकता और सृजनशीलता से राष्ट्रनिर्माण में जुटे सभी प्रदेश के शिल्पियों को भगवान विश्वकर्मा जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं।

लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरतहैं।