अनेक पोषक तत्वों से भरी होती है ‘रसभरी’!
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल के पारंपरिक खानपान में जितनी विविधता एवं विशिष्टता है, उतनी ही यहां के फल–फूलों में भी। खासकर जंगली फलों का तो यहां समृद्ध संसार है। यह फल कभी मुसाफिरों और चरवाहों की क्षुधा शांत किया करते थे, लेकिन धीरे–धीरे लोगों को इनका महत्व समझ में आया तो लोक जीवन का हिस्सा बन गए। औषधीय गुणों से भरपूर जंगली फलों का लाजवाब जायका हर किसी को इनका दीवाना बना देता है।उत्तराखंड में जंगली फल न केवल स्वाद, बल्कि सेहत की दृष्टि से भी बेहद अहमियत रखते हैं। बेडू, तिमला, मेलू (मेहल), काफल, अमेस, दाड़िम, करौंदा, बेर, जंगली आंवला, खुबानी, हिंसर, किनगोड़, खैणु, तूंग, खड़ीक, भीमल, आमड़ा, कीमू, गूलर, भमोरा, भिनु समेत जंगली फलों की ऐसी सौ से ज्यादा प्रजातियां हैं, जो पहाड़ को प्राकृतिक रूप में संपन्नता प्रदान करती हैं। इन जंगली फलों में विटामिन्स और एंटी ऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं।रसभरी का वैज्ञानिक नाम फाइसेलिस पेरयूवियाना है और यह टमाटर और बैंगन परिवार के ज्यादा निकट का रिश्तेदार लगता है। पोषक तत्वों से भरपूर रसभरी को मकाओ, तेपारियो, पोपटी, रसपरी, चिरबोट, फोपती, बुसरताया, भोलां, टंकारी, तंकासी, कुंतली और तिपारी आदि नामों से हमारे अपने देश में जाना जाता है। रंग में पीली या नारंगी और छोटे से टमाटर की तरह दिखने वाले फलों के ऊपर एक झीना सा आवरण होता है। रसभरी का पंचांग अर्थात् फल, फूल, पत्ते, तना और मूल का औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है। जानकर आश्चर्य होगा की रसभरी में नींबू से दोगुना विटामिन-सी पाया जाता है। रसभरी में बहुत सारे पोषक तत्व पॉलीफिनॉल, केरिटिनॉयडस, विटामिन-ए, कैल्शियम, फोस्फोरस, फाइटोकैमिकल्स, एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं और रसभरी की पत्तियों में कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा, विटामिन ए, विटामिन-सी, कैरोटिन आदि भी पाया जाता है। रसभरी चित्त को प्रसन्न करती है और इसका स्वाद जुबान पर काफी देर तक बना रहता है। एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर रसभरी के सेवन से सर्दी-जुकाम और फ्लू के प्रकोप से खुद को बचाए रखा जा सकता है। इसमें मौजूद औषधीय गुण बंद नाक को बड़ी आसानी से खोलते हैं और इसे खाने से खांसी में भी आराम आता है।रसभरी में मौजूद विटामिन-सी और विटामिन-के आंखों की रोशनी को बढ़ाने में सहायक है। इसमें मौजूद आयरन भी आंखों के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक पोषक तत्व है। रसभरी के सेवन से बढ़ती उम्र से संबंधित मैक्युलर डिजनरेशन से संबंधित और मोतियाबिंद की समस्या से बचा जा सकता है। रसभरी में मौजूद ओलिक और लिनोलिक एसिड शरीर में खराब कोलेस्ट्रॉल (एलडीएल) की मात्रा को कम करते हैं। रसभरी के सेवन से हृदय के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक गुड कोलेस्ट्रॉल (एचडीएल) की वृद्धि व संतुलन में सहायता मिल सकती है।रसभरी पाचन प्रक्रिया को सामान्य बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह कब्ज़ से भी राहत दिलाती है।पेशाब को उत्तेजित कर के विषाक्त पदार्थों को समाप्त कर और लिम्फेटिक प्रणाली से अतिरिक्त वसा, नमक व अन्य विषाक्त पदार्थों को निकाल बाहर कर किडनी को स्वस्थ बनाए रखने में सहायता करती है।रसभरी का सेवन टाइप-2 डायबिटीज में भी बहुत ही अच्छा घरेलू उपचार है।रसभरी में पाए जाने वाले एनालॉयड्स पूरे शरीर में कैंसर कोशिकाओं के प्रसार की गति को कम करने में सहायता कर सकते हैं। व्यावसायिक खेती में प्रति एकड़ 25-30 क्विंटल रसभरी की पैदावार मिलती है। सामान्य तापमान पर 3-4 दिनों ये खराब नहीं होता। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग जैसे ड्राई और फ़्रोजन फ़्रूट्स तथा सॉस, प्यूरी, जेम, जूस, हर्बल चाय बनाने वालों के बीच रसभरी की माँग हमेशा रहती है। इसीलिए रसभरी का दाम भी अच्छा मिलता है। रसभरी से छोटे स्तर पर भी जैम और सॉस बनाकर अच्छी कमाई हो सकती है। रसभरी का पेड़ क़रीब दो फ़ीट ऊँचा और झाड़ीनुमा होता है। व्यावसायिक खेती में प्रति एकड़ 25-30 क्विंटल रसभरी की पैदावार मिलती है। सामान्य तापमान पर 3-4 दिनों ये खराब नहीं होता। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग जैसे ड्राई और फ़्रोजन फ़्रूट्स तथा सॉस, प्यूरी, जेम, जूस, हर्बल चाय बनाने वालों के बीच रसभरी की माँग हमेशा रहती है पेड़ से रसभरी के फल को खोल और डंठल समेत सावधानीपूर्वक तोड़ना चाहिए। फिर इसकी पैकिंग ऐसे करें कि इसमें हवा का आवागमन होता रहे। इसके लिए बाँस की टोकरी या प्लास्टिक का कैरेट इस्तेमाल करना चाहिए। पैकिंग सही हो तो रसभरी 72 घंटे ताज़ा बनी रहती है। इसीलिए इन्हें दूर की मंडी तक भेजकर बेहतर दाम पा सकते हैं। मंडी में स्वस्थ, बेदाग़ और सुन्दर फलों का बढ़िया दाम मिलता है। बतौर ताजा फसल के तौर पर इसे स्थानीय बाजार में बेचा जा सकता है। और दूसरे रुप प्यूरी और फ्रोजन (जमा हुआ) फल के तौर पर इसे अंतर्राष्ट्रीय बाजार में निर्यात कर दिया जाता है।इन फलों की इकोलॉजिकल और इकॉनामिकल वेल्यू है। इनके पेड़ स्थानीय पारिस्थितिकीय तंत्र को सुरक्षित रखने में अहम भूमिका निभाते हैं, जबकि फल आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरतहैं।