भारतीय राजनीति के पुरोधा स्वर्गीय एनडी तिवारी की जयंति व पुण्यतिथि
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
दशकों तक भारतीय राजनीति की धुरी बने रहे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एनडी तिवारी की जयंती और पुण्यतिथि दोनों है। तिवारी का राजनीतिक जीवन जितना सफल रहा, निजी जीवन उतना ही विवादों से भरा हुआ। उज्ज्वला शर्मा ने जब उन्हें अपने बेटे रोहित शेखर का बायोलॉजिकल पिता कहा तो शुरुआती दिनों में उन्होंने इससे साफ इनकार कर दिया। उसी दौरान रोहित शेखर ने एक बार कहा था, मैं उनका अवैध बेटा नहीं वह मेरे अवैध पिता हैं. एनडी तिवारी का जन्म 18 अक्टूबर, 1925 को नैनीताल के बलूती गांव में हुआ था और निधन 18 अक्टूबर 2018 को। पिता पूर्णानंद तिवारी वन विभाग में अफसर थे, जिन्होंने असहयोग आंदोलन के दौरान नौकरी छोड़ दी थी। तिवारी हलद्वानी, बरेली और नैनीताल के अलग-अलग स्कूल-कॉलेजों में पढ़े।तिवारी राजनीति में स्वतंत्रता आंदोलन के जरिए आए. ब्रिटिश-विरोधी चिट्ठियां लिखने की वजह से 14 दिसंबर 1942 को अरेस्ट हुए और नैनीताल की उसी जेल में भेजे गए, जहां उनके पिता पहले से बंद थे. 15 महीने बाद रिहा हुए, तो इलाहाबाद यूनिवर्सिटी पहुंचे, जहां से आगे की पढ़ाई जारी रखी. 1947 में स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष बने. 1945-49 के बीच ऑल इंडिया स्टूडेंट कांग्रेस के सेक्रेटरी रहे।एनडी तिवारी आजादी के बाद उत्तर प्रदेश में 1952 में पहली बार हुए चुनाव में प्रजा समाजवादी पार्टी के टिकट पर नैनीताल से चुनाव लड़ा और विधायक चुने गए। 1957 में फिर नैनीताल से चुनाव जीते और असेंबली में नेता प्रतिपक्ष बने। 1963 में कांग्रेस में शामिल हुए । फिर काशीपुर से विधायक बने और यूपी सरकार में मंत्री बने। 1968 में नेहरू युवा केंद्र की स्थापना की, जो एक वॉलंटरी ऑर्गनाइजेशन है। 1969 से 1971 के बीच इंडियन यूथ कांग्रेस के पहले अध्यक्ष रहे।एनडी तिवारी तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री (1976-77, 1985-85, 1988-89) रहे और एक बार उत्तराखंड के मुख्यमंत्री (2002-2007) रहे। 1979 से 1980 के बीच चौधरी चरण सिंह की सरकार में वित्त और संसदीय कार्य मंत्री रहे। 1980 के बाद योजना आयोग के डिप्टी चेयरमैन रहे। 1985-88 में राज्यसभा सांसद रहे। 1985 में उद्योग मंत्री भी रहे। 1986 से 1987 के बीच तिवारी प्रधानमंत्री राजीव गांधी की कैबिनेट में विदेश-मंत्री रहे। 87 से 88 फाइनेंस और कॉमर्स मंत्री भी रहे।एनडी तिवारी 90 के दशक की शुरुआत में पीएम पद के दावेदार भी रहे, हालांकि तब अपना संसदीय चुनाव 11,429 वोटों से बलराज पासी से हार गए थे। तब जगह पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने। 1994 में कांग्रेस छोड़कर 95 में खुद की ऑल इंडिया इंदिरा कांग्रेस (तिवारी) बनाई अर्जुन सिंह के साथ, लेकिन बाद में फिर से सोनिया की कांग्रेस जॉइन कर ली। उम्र का हवाला देते हुए उत्तराखंड का सीएम बनने के दौरान उन्होंने इस्तीफे की पेशकश भी की थी, लेकिन पद बाद में कार्यकाल खत्म होने पर ही छोड़ा था।पहाड़ पर ही नहीं यूपी में भी विकास की बयार बहा देने वाले और यूपी एवं उत्तराखंड दो राज्यों के मुख्यमंत्री रहे नारायण दत्त तिवारी का एक और जन्म दिन एवं पुण्य तिथि 18 अक्तूबर को निकल गई। बल्यूटी गांव में अपने ननिहाल में जन्मे नरैण (एनडी) ने बचपन में गरीबी देखी एनडी तिवारी ने हाईस्कूल की पढ़ाई सीआरएसटी कॉलेज नैनीताल से की। दसवीं की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की। गरीबी के कारण वह इंटर में दाखिला नहीं ले सके और प्राइवेट विद्यार्थी के रूप में 1941 में इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की।घर की माली हालत ठीक नहीं होने के कारण उनके पिता पूर्णानंद तिवारी उनको आगे पढ़ाने के पक्ष में नहीं थे। तिवारी जुलाई 1944 में घर से भागकर प्रयाग चले गए। वहां उन्होंने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर अपनी पढ़ाई का खर्च जुटाया। उनके चाचा बच्चीराम ने 50 रुपये देकर घर से भागने में मदद की थी। साल 1952 में पहले चुनाव में एनडी तिवारी प्रजा समाजवादी पार्टी के टिकट पर जीतकर नैनीताल के विधायक बने. तब नैनीताल उत्तर प्रदेश का ही हिस्सा हुआ करता था. साल 1957 में एक बार फिर नैनीताल से विधायक बने और सदन में नेता विपक्ष बने. साल 1963 में उन्होंने पार्टी बदलते हुए कांग्रेस जॉइन कर लिया. इस बार काशीपुर से विधायक बने और यूपी सरकार में मंत्री भी बने. 1976 में पहली बार वो मौका आया, जब वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. इसके बाद उन्होंने 1985-85 और 1988-89 में भी सीएम का कार्यभार भी संभाला. वहीं, जब उत्तराखंड अलग राज्य बना तो, साल 2002 से 2007 तक सीएम रहे. एनडी तिवारी केंद्र की राजनीति में भी काफी सक्रिय रहे. 1979 से 1980 के बीच चौधरी चरण सिंह की सरकार में वित्त और संसदीय कार्य मंत्री रहे. 1980 के बाद योजना आयोग के डिप्टी चेयरमैन रहे. 1985-88 में राज्यसभा सांसद रहे. 1985 में उद्योग मंत्री भी रहे. 1986 से 1987 के बीच वह प्रधानमंत्री राजीव गांधी की कैबिनेट में विदेश मंत्री रहे. एक ऐसा भी मौका आया, जब वह पीएम बनने वाले थे. साल 90 दशक की शुरुआत में पीएम पद के दावेदर बने, लेकिन उनको पीछे छोड़ते हुए पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बन गए.और जब बड़े संघर्षों से शिक्षा हासिल कर उन्होंने राजनीति में पांव जमाए तो गरीबी-बेरोजगारी दूर करने के अपने भगीरथ प्रयत्नों के चलते विकास पुरुष बन गए।यूपी के मुख्यमंत्री और केंद्र में उद्योग मंत्री रहते उन्होंने यूपी के साथ उत्तराखंड में उद्योगों का जाल बिछाया। उत्तराखंड में अपने मुख्यमंत्रित्व काल में सिडकुल की सौगात दे हजारों हाथों को रोजगार भी उपलब्ध कराया। कुमाऊं वासियों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिलें इसके लिए एनडी तिवारी ने सुशीला तिवारी अस्पताल बनवाया। पहाड़ पर डॉक्टरों की भारी कमी थी, डॉक्टरों की नई पौध मिले जो पहाड़ पर सेवा कर सके, इसके लिए उन्होंने मेडिकल कॉलेज की भी स्थापना कराई। उनका सपना था कि एसटीएच को एम्स की तर्ज पर विकसित किया जाएकुमाऊं का पिछड़ापन और यहां के युवाओं का पलायन तिवारी जी के अंतर्मन को व्यथित करता था। यहां के युवा हाथों को रोजगार देने के लिए उन्होंने रानीबाग में हिंदुस्तान मशीन टूल्स (एचएमटी) की स्थापना कराई। घड़ी बनाने के लिए विदेश से मशीन लाकर लगाई गईं। 90 के दशक में फैक्टरी में उत्पादन भी बेहतर हो रहा था और एचएमटी घड़ी की मांग भी अधिक थी। कुछ अलग कारणों से धीरे-धीरे रानीबाग एचएमटी कारखाना रसातल में जाता रहा और इसे उबारने की ओर किसी भी सरकार ने ध्यान नहीं दिया।कुमाऊं का पिछड़ापन और यहां के युवाओं का पलायन तिवारी जी के अंतर्मन को व्यथित करता था। यहां के युवा हाथों को रोजगार देने के लिए उन्होंने रानीबाग में हिंदुस्तान मशीन टूल्स (एचएमटी) की स्थापना कराई। घड़ी बनाने के लिए विदेश से मशीन लाकर लगाई गईं। 90 के दशक में फैक्टरी में उत्पादन भी बेहतर हो रहा था और एचएमटी घड़ी की मांग भी अधिक थी। कुछ अलग कारणों से धीरे-धीरे रानीबाग एचएमटी कारखाना रसातल में जाता रहा और इसे उबारने की ओर किसी भी सरकार ने ध्यान नहीं दिया।एचएमटी को बचाने के लिए तिवारी जी ने केंद्र सरकार तक से संपर्क साधा। एचएमटी रानीबाग के बाहर धरने पर भी बैठे मगर, उनकी जैसी संवेदना किसमें होती? उन्होंने लालकुआं में सेंचुरी पेपर मिल की स्थापना कराई थी। पेपर मिल से लोगों को रोजगार मिला और आज भी कई परिवारों के चूल्हे इसी मिल की वजह से जल रहे हैं। इनके अलावा भीमताल और काशीपुर में औद्योगिक आस्थान भी इस इलाके को तिवारी जी की ही देन रहे।उत्तराखंड राज्य बनाने के साथ यहां के विकास में भी तिवारी जी का महत्वपूर्ण योगदान है। राज्य को विकास पथ पर आगे बढ़ाने की उनकी सोच की बदौलत ही राज्य में आज उद्योगों का जाल दिखाई देता है। एनडी तिवारी जब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने स्थानीय युवाओं को रोजगार देने के उद्देश्य से उद्योग लगाने की योजना पर काम किया। रुद्रपुर और हरिद्वार में सिडकुल जैसे औद्योगिक आस्थान की स्थापना हुई। स्व. तिवारी के व्यक्तित्व और प्रभाव के कारण ही देश की नामी कंपनियों ने यहां पर कंपनियां खोलीं। हजारों युवाओं को रोजगार मिला। आज कई कंपनियां बंद हो चुकी हैं और लोग रोजगार से हाथ धो चुके हैं। नारायण दत्त तिवारी ने केंद्रीय उद्योग मंत्री और यूपी व उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के कार्यकाल में जो विकास कार्य किए वह हमेशा याद किए जाएंगे।बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिलें इसके लिए एनडी तिवारी ने सुशीला तिवारी अस्पताल बनवाया। पहाड़ पर डॉक्टरों की भारी कमी थी, डॉक्टरों की नई पौध मिले जो पहाड़ पर सेवा कर सके, इसके लिए उन्होंने मेडिकल कॉलेज की भी स्थापना कराई। उनका सपना था कि एसटीएच को एम्स की तर्ज पर विकसित किया जाए।आज के युग में इस तरह के नेता बहुत मुश्किल से मिलते हैं.””अगर वो प्रधानमंत्री होते तो कोई बड़ी बात नहीं होती. इतना ज़रूर कह सकता हूँ कि वो इस पद की शोभा ही बढ़ाते, उसको नीचे नहीं लाते.”