पेशावर विद्रोह के महानायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली की पुण्यतिथि  

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पेशावर विद्रोह के महानायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली की पुण्यतिथि  

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला 

वीर भूमि उत्तराखंड में पहले ही वीरों की कमी नहीं है. लेकिन वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली ने अंग्रेजों के आदेश न मानते हुए अपने ही लोगों पर गोली चलाने से इनकार कर एक नई क्रांति को जन्म दिया था.चन्द्र सिंह कभी अपने बुलंद इरादों के आगे किसी के आगे नहीं झुके भले ही स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद उन्हें सलाखों के पीछे ही क्यों न जाना पड़ा हो. चंद्र सिंह का जन्म 25 दिसंबर 1891 को जलौथ सिंह भंडारी के घर पर ​हुआ था। 3 सितंबर 1914 को वे सेना में भर्ती हुए, 1 अगस्त 1915 को उन्हें सैनिकों के साथ अंग्रेजों ने फ्रांस भेज दिया। 1 फरवरी 1916 को वे वापस लैंसडौन आ गये। इसके बाद 1917 में उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों की ओर से मेसोपोटामिया युद्ध व 1918 में बगदाद की लड़ाई लड़ी। प्रथम विश्व युद्ध के बाद अंग्रेजों ने उन्हें हवलदार से सैनिक बना दिया। चंद्र सिंह की सेना से छुट्टी के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से मुलाकात हुई। 1920 में चंद्र सिंह को बटालियन के साथ बजीरिस्तान भेजा गया। वापस आने पर उन्हे खैबर दर्रा भेजा गया और उन्हें मेजर हवलदार की पदवी भी मिल गई। इस दौरान पेशावर में आजादी की जंग चल रही थी। अंग्रेजों ने चंद्र सिंह को उनकी बटालियन के साथ पेशावर भेज दिया और इस आंदोलन को कुचलने के निर्देश दिए। 23 अप्रैल 1930 को आंदोलनरत जनता पर फायरिग का हुक्म दिया गया, तो चंद्र सिंह ने ‘गढ़वाली सीज फायर’ कहते हुए निहत्थों पर फायर करने के मना कर दिया। आज्ञा न मानने पर अंग्रेजों ने चंद्र सिंह व उनके साथियों पर मुकदमा चलाया। उन्हें सजा हुई व उनकी संपत्ति भी जब्त कर ली गई। अलग-अलग जेलों में रहने के बाद 26 सितंबर 1941 को वे जेल से रिहा हुए।इसके बाद वे महात्मा गांधी से जुड़ गए व भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई। चंद्र सिंह भंडारी को ‘गढ़वाली’ की उपाधि देते हुए महात्मा गांधी ने कहा था कि मेरे पास गढ़वाली जैसे चार आदमी होते तो देश कब का आजाद हो जाता। वहीं, आजाद हिद फौज के जनरल मोहन सिंह ने कहा था कि पेशावर विद्रोह ने हमें आजाद हिद फौज को संगठित करने की प्रेरणा दी। 22 दिसंबर 1946 में वामपंथियों के सहयोग से चंद्र सिंह ने गढ़वाल में प्रवेश किया। 1967 में इन्होंने कम्युनिस्ट के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा पर हार गए। एक अक्टूबर 1979 को उनका लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। 1994 में भारत सरकार ने उनके सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया गया। उत्तराखंड राज्य गठन के बाद उनके नाम से कई योजनाएं चलाई गई। जिनमें पर्यटन, स्वरोजगार और मेडिकल कॉलेज के नाम से संचालित हैं।गढवाली के नाम पर योजनाओं की बात है तो राज्य सरकारों ने जो-जो गढ़वाली जी के नाम पर योजनाएं चलाई हैं, दुर्भाग्यवश वे सभी भ्रष्ट्राचार का अड्डा बना ​हुआ है। भारत की सरकारें पेशावर विद्रोह के बारे में जनता को बताने से हमेशा बचती रही हैं। चन्द्र सिंह जैसे बहादुर सिपाही जिनकों लेकर सरकारें आज भी डरी व सहमी हुयी हैं। सरकार देश के सुरक्षा बलों को अंग्रेजी हुकूमत की तरह ही जनता के दमन का एक अस्त्र बनाकर रखना चाहती है। देश में आज जिस तरह से सुरक्षा बलों के नाम पर राजनीति की जा रही है ऐसे में चन्द्र सिंह गढ़वाली और 1930 का पेशावर विद्रोह आज और भी ज्यादा प्रासंगिक हो गये हैं। वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के बारे में और ज्यादा जानने के लिए उन पर लिखी राहुल सांकृत्यायन की पुस्तक ‘वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली’ अवश्य पढ़ी जानी चाहिए। महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर चंद्र सिंह गढ़वाली की पुण्यतिथि है। पेशावर कांड के नायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली जिन्हें जनता का रियल हीरो भी कहा जाता है, उनके वंशज आज भी कोटद्वार भाबर के हल्दूखाता में यूपी सरकार की ओर से लीज पर दी गई जमीन पर रह रहे हैं और यह अब भी उनके नाम पर नहीं हुयी है। गढ़वाली की मौत के बाद उनके दोनों बेटों का भी असामयिक निधन हो गया था, जिसके बाद इनका परिवार और दुर्दशा में चला गया। उनकी बहुएं जमीन का टुकड़ा अपने नाम पर कराने के लिए उत्तराखंड से लेकर यूपी सरकार के चक्कर काट रही हैं।गढ़वाली इस दुनिया को अलविदा कह गए। राज्य सरकार की तरफ से इस महान स्वतंत्रता सेनानी की याद में कई योजनाएं चलाई जा रही हैं।देश को अंग्रेजों से आजाद कराने और क्रांतिकारी व्यक्तित्व के लिए वीर नायक चंद्र सिंह गढ़वाली को हमेशा याद किया जाएगा लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरतहैं।