उत्तराखंड के जनप्रिय थे ईमानदारी की मिशाल जसवंत सिंह बिष्ट
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तर प्रदेश के अल्मोड़ा जिले की रानीखेत तहसील की बिचला चौकोट पट्टी में स्याल्दे के निकट तिमली गांव में जनवरी 1929 में हुआ था। उनका बचपन बेहद गरीबी में बीता। उनकी सादगी और ईमानदारी के चर्चे आज भी लोग याद करते हैं।रानीखेत क्षेत्र का दो बार प्रतिनिधित्व कर चुके पूर्व विधायक स्व. जसवंत सिंह बिष्ट (जस्सूदा) धनबल के युग के नेताओं के लिए नजीर हैं। उनकी सादगी और ईमानदारी के चर्चे आज भी लोग याद करते हैं। विधानसभा जाने के लिए जहां वह रिक्शे का इस्तेमाल करते थे, वहीं रोडवेज की बस में लखनऊ आवाजाही होती थी। 1980 में विधायक बनने के बाद जब उनकी पत्नी का अचानक स्वास्थ्य बिगड़ा तो जानवरों के चारे के लिए उन्होंने स्वयं दराती थाम ली। चुनाव के दौरान कार्यकर्ता सुखी गलाड़, फाटी कोट, जस्सुदा कैं दियो वोट जैसे नारों के माध्यम से उनका प्रचार करते थे। उनका जन्म 12जनवरी 1923 को हुआ । सुदूरवर्ती स्याल्दे के तिमली गांव निवासी स्व. बिष्ट 1944 में ग्वालियर में पहली बार प्रखर समाजवादी नेता स्व. राम मनोहर लोहिया के संपर्क में आए। इसके बाद वह गांव लौटकर सामाजिक कार्यों में मशगूल हो गए। 1967 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी की तरफ से बिष्ट ने पहली बार रानीखेत उत्तरी द्वाराहाट क्षेत्र से चुनाव लड़ा और हार गए। इसके बाद 1972 में वह ब्लॉक प्रमुख बने।1979 में यूकेडी के उदय के साथ ही स्व. बिष्ट पार्टी में शामिल हुए और 1980 में रानीखेत क्षेत्र से कांग्रेस के प्रत्याशी स्व. पूरन माहरा को 251 वोटों से पराजित किया। 1980 से लेकर 1985 तक उत्तराखंड क्रांति दल के अध्यक्ष रहे 1989 में फिर से वह क्षेत्र के विधायक चुने गए। चुनाव लड़ने के लिए उनके पास पैसे नहीं होते थे, तो कार्यकर्ता एक नोट एक वोट का नारा देते थे। अलबत्ता उनकी सादगी के चर्चे आज भी याद हैं। सन 1929 में रानीखेत तहसील के बिचला चौकोट पट्टी स्याल्दे के तिमली ग्राम में एक साधारण परिवार में हुआ। उन्होंने अपना पूरा जीवन सादगीपूर्ण एवं ईमानदारी से जिया।सन 1944 को ग्वालियर में मजदूर यूनियन में रहते हुये प्रखर समाजवादी नेता डॉ राममनोहर लोहिया के संपर्क में आकर समाजवादी विचार के नेता बने। सन 1955 में स्व० जसवंत सिंह बिष्ट जी अपने ग्राम में वन पंचायत के सरपंच तथा सन 1962 तक कनिष्ठ प्रमुख पद पर रहे। सन 1972 में ब्लॉक प्रमुख बने। 1979 में जसवंत दा उत्तराखंड क्रान्ति दल मे शामिल हुए। तथा सन 1980 में रानीखेत विधानसभा से उक्रांद के प्रथम विधायक बनें। ईमानदारी की मिशाल और साधारण जीवन व्यतीत करने वाले व्यक्ति रहे है। जसवंत दा को कभी भुलाया नही जा सकता है। स्व०श्री जसवंत सिंह बिष्ट दोबारा सन 1989 में दोबारा विधायक बने। उत्तराखंड का बुद्धिजीवी वर्ग के साथ आमजन जसवंत दा को याद करते है। चर्चाओं एवम ऐशोआराम से दूर रहकर विधायक होते हुये भी असाधारण जीवनचर्या में रहते थे। सन 1980 में जब जसवंत दा विधानसभा के चुनाव लड़ रहे थे आपजन उनके लिये वोट मांगने के लिये एक ही नारा देते रहे कि ’सुकि गलड फटी कोट, जसुका कै दियो वोट’ अर्थात सुकडे हुए गाल और फटे कोट वाले जसवंत दा को वोट दें। ये शब्द श्री जसवंत दा के व्यक्तित्व को दर्शाता है। उनकी ईमानदारी की मिशाल और साधारण जीवन व्यतीत करने वाले व्यक्ति रहे है। जसवंत दा को कभी भुलाया नही जा सकता है। पृथक हिमालयी राज्य का प्रस्ताव लखनऊ विधानसभा के पटल तक ले जाने व सदन में पुरजोर वकालत करने वाले प्रखर पूर्व विधायक स्व. जसवंत सिंह बिष्ट का उनकी 17 वीं पुण्यतिथि थी।उत्तराखंड विधानसभा में उत्तराखंड राज्य आंदोलन के प्रणेता, पहाड़ के गांधी स्व०इंद्रमणि बड़ोनी व उत्तर प्रदेश की विधानसभा सदन में पृथक उत्तराखंड राज्य का संकल्प प्रस्ताव रखने वाले पूर्व विधायक स्व० जसवंत सिंह बिष्ट जी की प्रतिमा स्थापित की जाय। स्व. जसवत सिंह बिष्ट जी की स्मृति को नमन !