हिंदी कहानी के अनमोल सितारे नहीं रहे  शेखर जोशी

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हिंदी कहानी के अनमोल सितारे नहीं रहे  शेखर जोशी

    डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला 

शेखर जोशी का जन्म 10 सितम्बर 1932 को अल्मोड़ा जनपद के सोमेश्वर ओलिया गांव के एक निर्धन परिवार में हुआ था। शेखर जोशी ने अपनी प्राथमिक शिक्षा अजमेर और देहरादून से प्राप्त की थी। 12वीं कक्षा की पढ़ाई के दौरान ही उनका चयन ईएमई सुरक्षा विभाग में हो गया। वह 1986 तक विभाग में कार्यरत रहे। उन्होंने नौकरी से स्वैछिक रूप से त्याग पत्र दे दिया। छोटी सी उम्र में पहाड़ से पलायन के बाद भी उनसे पहाड़ नहीं छूटा। इंटर की पढ़ाई के बाद रक्षा मंत्रालय की कोर ऑफ इलेक्ट्रिकल एंड मैकेनिकल इंजीनियर्स में प्रशिक्षण के लिए चयन हुआ। लिखना-पढ़ना यानी साहित्यिक संस्कार स्कूली पढ़ाई के दौरान ही विकसित हो चुके थे।हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर शेखर जोशी के निधन से साहित्य जगत में शोक की लहर है। कुमाऊं के श्रम-साध्य, सरल, अभावग्रस्त जीवन का जैसा यथार्थ चित्रण उन्होंने किया है, वह अद्वितीय है।श्रमिकों के जीवन-संघर्ष, शोषण, वर्ग चेतना, मानवीय रिश्तों की ऊष्मा तथा गरिमा के वह विरले कथाकार रहे। कुमाऊं के जनजीवन पर साहित्य लिखने वाले कई कथाकार हुए, लेकिन शेखर जोशी उन सब में विशिष्ट थे। नई कहानी आंदोलन के प्रमुख हस्ताक्षरों में शामिल रहे शेखर जोशी निम्न एवं मध्य वर्ग के अति संवेदनशील तथा प्रगतिशील मूल्यों के प्रभावी प्रवक्ता कथाकार रहे। श्रमिक जीवन के विविध पहलुओं को कथाओं में उतारने वाले शेखर जोशी विरले कथाकार रहे। वर्ष 1951-54 दिल्ली में प्रशिक्षण के दौरान शेखर जोशी का होटल वर्कर्स यूनियन से संपर्क हुआ। जिसके बाद उनकी सामाजिक, राजनीतिक और वर्ग चेतना विकसित हुई। उन्होंने वर्ष 1954 में दाज्यू कहानी लिखी। 1955 में इलाहाबाद के आयुध कारखाने में तैनाती मिली। दिन भर कारखाने में ‘डांगरीवालों’ का साथ और छुट्टी के दिन लेखकों के बीच रहते। भैरव प्रसाद गुप्त के संपादन में ‘कहानी’ पत्रिका के 1956 के वार्षिकांक के लिए हुई कहानी प्रतियोगिता में शेखर जोशी की कहानी कविप्रिया भी इस विशेषांक के लिए भेजी गई थी। लेकिन वह बाद के अंक में प्रकाशित हुई। तब वह ‘चंद्रशेखर’ नाम से लिखते थे। कोशी का घटवार 1958, साथ के लोग 1978, हलवाहा 1981, नौरंगी बीमार है 1990, मेरा पहाड़ 1989, डागरी वाला 1994, बच्चे का सपना 2004, आदमी का डर 2011, एक पेड़ की याद, प्रतिनिधि कहानियां। शेखर जोशी प्रगतिशील कहानीकार थे। हिंदी जगत में उन्हें ख्याति दाज्यू तथा कोसी का घटवार जैसी प्रगतिशील कहानियों से मिली। उनकी कहानियों में पहाड़ी संस्कृति और प्रगतिशील मानवीय तत्वों को खास जगह मिली है। उनके निधन से जो साहित्यिक रिक्तता आयी है उस स्थान की भरपाई संभव नहीं है। महावीर प्रसाद द्विवेदी पुरस्कार (1987) , साहित्यभूषण (1995), पहल (1997), मैथिलीशरण गुप्ता सम्मान शेखर जोशी की कला इतनी बेमिसाल रही कि उन्हें एक नहीं कई मौकों पर सम्मानित किया गया. साहित्य के क्षेत्र में उनके अभूतपूर्व योगदान के लिए उन्हें 1987 में महावीर प्रसाद द्विवेदी पुरस्कार, 1995 में साहित्य भूषण दिया गया था. हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें श्रीलाल शुक्ल सम्मान से भी सम्मानित कि किया था. इस महान कथाकार को लेकर ये बात भी हमेशा प्रचलित रही कि इनकी कहानियों में पहाड़ों को खास जगह दी जाती थी. वे खुद क्योंकि उत्तराखंड से आते थे, ऐस में उनकी रचनाओं में पहाड़ों का जिक्र देखने को मिल जाता था. शेखर जोशी कथा लेखन को दायित्वपूर्ण कर्म मानने वाले सुपरिचित कथाकार थे। शेखर जोशी की कहानियों का अंगरेजी, चेक, पोलिश, रुसी और जापानी भाषाओं में अनुवाद हुआ है। उनकी कहानी दाज्यू पर बाल-फिल्म सोसायटी द्वारा फिल्म का निर्माण किया गया है। कथा लेखन को आजीवन दायित्वपूर्ण कर्म मानने वाले सुपरिचित वयोवृद्ध लेखक शेखर जोशी (शेखर-दा) नहीं रहे. हिंदी साहित्य जगत के लिए यह क्षति अपूरणीय हैनब्बे वर्ष में भी स्वस्थ और सजग. इतना कोमल, मधुर और प्रेरक व्यक्तित्व भुलाए नहीं भूला जा सकता. सादर श्रद्धांजलि, शेखर दा” लेखक र्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरतहैं।